प्रेस विज्ञप्ति । जनवरी 24, 2017
 
SRP – ‘विशेष पुनर्वास अनुदान’ की एक किश्त राशि लेने वालों को जमीन का हक बना रहेगा।
इंदौर उच्च न्यायालय से भी खेती आधारित पुनर्वास का अंतरिम आदेश।

सरदार सरोवर विस्थापितों को जमीन के बदले विशेष पुनर्वास अनुदान (SRP) देकर – कई विस्थापित जमीन से भ्रष्टाचार और अनुदान बचा ही कम  होने की वजह से वंचित रहे। 1505 परिवार अनुदान की एक ही किश्त लेकर जमीन नहीं खरीद पाये। शिकायत निवारण प्राधिकरण ने ऐसे विस्थापितों की अर्जी भी जमीन देने की बात नकार कर, उन्हें दूसरी किश्त ही देने का आदेश दिया। ग्राम कुंडिया (कसरावद) के मोहन मेहताब को दिए गए आदेश के खिलाफ इंदौर उच्च न्यायालय में 2015 में प्रस्तुत याचिका पर 17 जनवरी के रोज आदेश दिया गया कि मोहन मेहताब को केवल दूसरी किश्त की नगद राशि नहीं तो वैकल्पिक कृषि भूमि का अधिकार है और 14 फरवरी तक उन्हें वैकल्पिक जमीन दी जाये। आदेश में कहा है कि इसी वर्ग में आ रहे अन्य समान विस्थापितों को भी जमीन दी जाए। अधिवक्ता भरत पिंगले व मेधा पाटकर ने पैरवी की।

सरदार सरोवर के विस्थापितों के लिए 31 सालों के संघर्ष के दौरान उभरती कई पुनर्वास नीति का आधार नर्मदा ट्रिब्यूनल (न्यायधिकरण) के फैसलों में सम्मिलित प्रावधानों का रहा है। इसमें सबसे महत्व की भूमिका है, आजीविका सह पुनर्वास की। वैकल्पिक आजीविका याने किसानों को खेती और भूमिहीनों को दूसरा व्यवसाय, यह सिंध्दांत म.प्र. के शासन ने ही स्वीकारा और सर्वोच्च न्यायालय ने ही वर्ष 2000 तथा 2005 के नर्मदा बचाओ आंदोलन के विशेष फैसलों के द्वारा उसे अधोरोखित किया, उसकी सराहना की।

लेकिन विशेषतः 2005 के फैसले के बाद म.प्र. शासन ने भूमि के बदले नगद राशि देने वाला पैकेज (विशेष पुनर्वास अनुदान) के रूप में घोषित किया और प्रथम गुजरात में ही आज जमीन लेकर पुनर्वसित हो जाईए, इसके लिए अग्रह से लेकर जबरजस्ती तक की थी; और उसके बाद नगद राशि ही ली जाये, इसके लिए भी कई हथकंडे अपनाये। देश और दुनिया में ही नहीं सर्वोच्च अदालत ने हर फैसले में भी अधिक प्रभावित होनेवाले किसानों को 5 एकड़ सिंचित जमीन देने के प्रावधान व पुनर्वास नीति को सराहा और वह कानूनी आधार का उल्लंघन नहीं हो सकता, यह आदेश एक बार नहीं, कई बार दिया। म.प्र. शासन ने शासकीय लैण्ड-बैक की कई जमीन ही नहीं, निजी भूमि खरीद कर भी देगे और अपने पास हजारों हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है, यह अदालत के समक्ष शपथ पत्र के द्वारा कहा था। फिर भी म.प्र. के पुनर्वास कार्य के पिछड़ने पर सर्वोच्च अदालत ने 2000 के फैसले में कड़ी टिप्पणी की।

2000 के फैसले के बाद जमीन के बदले जमीन के कानूनी प्रावधानों के बदले एस. आर. पी. (SRP) की नगद राशि विशेष पुनर्वास अनुदान के नाम से देने की योजना बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का कारण बनी। न्या. झा आयोग का गठन म.प्र. उच्च न्यायालय से नर्मदा बचाओ आदोलन की याचिका में 2008 में होकर 2016 जनवरी में आयोग ने प्रस्तुत किये रिपोर्ट से 1589 रजिस्ट्रियां फर्जी निकली तो 1505 परिवार जिन्होने एस.आर.पी. की एक ही किश्त ली थी वे भी जमीन के साथ पुनर्वास न मिलने के कारण वंचित रहे। झा आयोग के आदेश के भी खिलाफ जाकर इसमें से करीबन् 400 परिवारों के बैक खाते में म.प्र. शासन ने दूसरी किश्त डाल दी जिस पर उच्च न्यायालय से मनाई आदेश दिया गया। लेकिन सर्वोच्च अदालत से उस आदेश पर केवल अंतिरम रोक म.प्र. शासन ने लगवा कर आजतक उसपर अंतिम आदेश नहीं आया। इसके बाद भी अन्य 1100 परिवार एक किश्त केवल लिये हुए परिवारों को 17 जनवरी 2017 का इंदौर उच्च न्यायालय का आदेश लागू होना जरूरी है। शिकायत निवारण प्राधिकरण इन परिवारों को उन्होने शपथ पत्र द्वारा नगदराशि (दूसरी किश्त) नकार कर जमीन ही मांगने के बाद भी बैक में राशि का भुगतान करने का आदेश नहीं दे सकती है।

14 फरवरी 2017 को इस याचिका पर इंदौर उच्च न्यायालय में अगली सुनवाई होगी।

 

शोभाराम भीलाला    कैलाश अवास्या    बालाराम यादव     राहुल यादव

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