प्रेस नोट
दिनांक 13.05.2017
 
 
मध्यप्रदेश शासन का देखा खेल। 8000 परिवारों का नहीं है मेल ।।
 
हजारो परिवारों को उजाडने पर करोडों का खर्च करने की तैयारी है,
 
लेकिन नहीं विस्थापितों की सही गिनती, सूची, नहीं बाकी कार्य की माहिती।।
 
 
 
सरदार सरोवर से प्रभावित गांवों के बडवानी, धार, खरगोन व अलिराजपुर जिलों से हजारों हजार परिवारों की जिंदगी आज तक यहां की प्रकृति, सांस्कृतिक और खेती से जुडी, जीवित है। यही से ‘नर्मदा सेवा यात्रा‘ गुजरी, यहां कि रोटी यात्रा करीने खायी लेकिन अब कानून, अधिकार, भ्रष्टाचार या अत्याचार तक किसी भी बात पर न सोचते हुये राज्य शासन गुजरात और केन्द्र को साथ लेकर और देकर हजारों परिवारों को उजाडने की अघोरी बात कर रही है।  
 
सरकार का अज्ञान या आकडांे का फर्जीवाडा?
 
शासन सर्वोच्च अदालत के आदेश का हवाला देकर कह रही है कि सरदार सरोवर से विस्थापित परिवारो को 31.07.2017 तक गांव खाली करने का आदेश है तो हमें यह कार्य करना होगा। इस पर बैठके आयेाजित की जाकर चर्चा, निर्णय हो रहें हैं और अधिकारी अपने अपने तरीके से वक्तव्य दे रहें हैं। इन वक्ताओं और इनके हर कतिकर्म से पूरी हकीकत उजागर हो रही हैं। डूबक्षेत्र की बांध पूरा करने से, गेटस बंद करने का निर्णय और कार्य हुआ तो क्या स्थिति होगी, इसकी जानकारी मानो शासन के पास आज तक नहीं हैं। अगर ऐसा है तो इसलिए कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण नहीं, करोडो रूपये खर्च सालभर में करने वाला नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण भी कानून, नीति और फैसलों पर अंमल हो रहा है या नहीं, इस पर निगरानी न रखते हुये, अपने रिपोर्ट और शपथ पत्र प्रस्तुत करते आये हैं। बांध की उंचाई हर स्तर पर बढाते वक्त ये दोनों प्राधिकरण और राज्य शासन, राजनीतिक रूप से बताते आये कि पुनर्वास पुरा हो चुका है।
 
हकीकत यह है कि डूबक्षेत्र के गांवों में प्रत्यक्ष में कितने परिवार आज भी बसे है, उनकी खबर लेने के लिए अभी अभी पटवारी तहसीलदार एसडीएम जैसे अधिकारी गांव में पहुंचकर पूछताछ कर रहें है। गांव में परिवारेां की सही संख्या, जो 2011 की गणना के आधार पर, घोषित-अघोषित का फर्क न करते हुए गिनती चाहिए, घंटे भर में मिलना नामुमकिन हैं। गांव में मकानों से लेकर मंदिरों तक जो जो भी जीवन का हिस्सा बने है उन सार्वजनिक धार्मिक स्थलों/स्थानों का पुनर्निमाण या स्थलांतर नहीं हुआ है, यह वस्तुस्थिति पूरी तरह से जचने के पहले से ही कैसे पेश किये शपथ पत्र सर्वोच्च अदालत के समक्ष? कैसे किया तय कि नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसले की शर्तो के बावजूद बिना पुनर्वास, देगे जल समाधि?
 
इन्दौर में इस संबंध में हुई बैठक में आयुक्त, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने घोषित किया कि सरदार सरोवर के गेटस बंद करने से 4 जिलो के 112 गांवों के 8000 लोग डूबेंगे। बंद करने का निर्णय तो अभी हुआ नहीं है, पुनर्वास और पर्यावरण उपदल, दोनेां की सहमति के बाद ही नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) तय कर सकती हैं। दूसरा 8000 लोग नहीं, आयाुक्त महोदया (जिनका इस बैठक के बाद तबादला भी हुआ है) को कहना था, 8000 परिवार किन्तु नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ चर्चा में बडवानी के अधिकारियेां ने कहां अकेले बडवानी जिले के 57 गांवो के ही 8000 परिवार डूब में आ सकेंगे। क्या सच और क्या झूठ? 
 
आंदोलन का स्पष्ट कहना है कि सरदार सरोवर के समूचे डूब क्षेत्र में 40000 से 45000 तक परिवार निवासरत है। शुगलू कमिटी के अनुसार 6486 परिवार, सर्वेक्षण के दौरान ऐसे पाये गये जिनकी गिनतती नहीं हुई थी। और बाद में 15946 परिवार बैक वाटर लेव्हल बदलने के नाम पर शासन ने, मुआवजा देने के बाद बाहर किये। इस खेल के बावजूद गांव में ऐसे भी परिवार है, जिनका नामोनिशान शासन के कागजातो में नहीं है लेकिन डूब आयी तो वे बेघरबार हो जाएगे जरूर। 
 
लाभार्थीयों की न गिनती, न लाभों की पूर्ति
 
सुर्पिम कोर्ट ने अपने आदेश में जबकि विस्थापित किसानों को 2 हेक्टर्स जमीन की पात्रता मानकर लाभ देने कहां है, और उसके लिए कानून की हर दृष्टि से पात्रता जांचकर, उच्च न्यायालय के आदेशो का तथा शिकायत निवारण प्राधिकरण से पारित हुए कई आदेशो का पालन तक न करते, 
 
म0प्र0 शासन मात्र 31.07.2017 तक पानी भरने की बात कह रही हैं। सर्वोच्च अदालत का आदेश सशर्त है। पुनर्वास स्थल जब तैयार नहीं है तब अदालत क्या जीने के अधिकार को कुचलकर हजारों परिवारों, लाखो लोगों को बेघरबार, बेरोजगार करना मंजूर कर सकती है? 
 
म0प्र0 शासनकर्ता लोगो को 192 गांवों को और मंदिर मस्जिदों को भी उजाडने के लिए युद्व जैसी तैयारी में जुटने के बजाय पुनर्वास के बाकी कार्य, गरीबों को घरप्लाट, भूमीहीनों को भूखंड, जमीन की पात्रता वाले सभी को जमीन इत्यादि कार्य पूरा करके दिखाये, यही हमारी स्पष्ट चुनौती है। मानो तो ऐलान और विनती भी। 
 
नर्मदा सेवा यात्रा का ढोल पीटने में दंग मुख्यमंत्री जी का पीछे की इस क्षेत्र में बिलकुल ही नर्मदा घाटी के खिलाफ युद्व का बिगुल बजाना धोखाधडी है। 
 
गांवों की संख्या भी पहले से आज तक रही है, 192 उनमें से 55 डूब के बाहर अचानक और अवैज्ञानिक रूप से करने के बाद भी बचते हैं 137 गांव। सच तो यह है कि जहां बैकवाटर प्रभावित कम हुए, वहां भी बाकी परिवार रहंेगे ही। तो गांव का ही नाम सूची से निकालना हर जगह कैसे होगा? धरमपुरी नगर के पहले 1387 फिट 88 और अब 0 परिवार विस्थापित होने की बात उतनी ही फर्जी है जितनी नर्मदा यात्रा की हर घोषणा धरमपुरी के मछुआरे मोहल्ले 2/3 वार्डस डूबते आये है मकान नम्बर के डूब क्षे के तो 17 मीटर उचाई बढने पर क्या बचेगे ?
 
 
 
 
देवराम कनेरा राहूल यादव मेधा पाटकर

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