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सरदार सरोवर के सभी विस्थापितों को चाहिये संपूर्ण पुनर्वास!
2023 तक नुकसानी की संपूर्ण भरपाई का भुगतान|
बैकवाटर के पुनरीक्षित लेव्हल्स रद्द करें| पुराने लेव्हल्स तक 15946 परिवारों को पुनर्वसित करें|
सभी विस्थापितों का पुनर्वास होने तक सरदार सरोवर का जलस्तर रोके, 122 मी. पर|
15 जून 2024 से शुरू हो रहा अनिश्चितकालीन उपवास|
नर्मदा घाटी करें सवाल| जीने का हक मौत का जाल?’ यही सवाल फिर से उठाना जरूरी है, करीबन 39 सालों के हमारे अहिंसक जन आंदोलन के बाद भी! सरदार सरोवर जैसे महाकाय बांध से विस्थापन की बड़ी चुनौती, अन्य सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक पहलूओं के साथ, सतत भुगतान पड़ती है| नर्मदा बचाओ आंदोलन ने ‘बिना पुनर्वास डूब’, गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण होते हुए पहाड़ी आदिवासियों से, निमाड़ी मैदानी किसान, मजदूर, मछुआरे, कुम्हार, केवट, पशुपालक, दुकानदार सबके हकों के लिए अहिंसक सत्याग्रह किया है और आज भी वह जारी है| करीबन 50000 परिवारों का तीनों राज्यों में पुनर्वास हो चुका है, लेकिन जिन्हें आबंटित भूमी में समस्या है, लाभों का भुगतान बाकी है; ऐसे तीनों राज्यों में उर्वरित आदिवासी, दलित और प्रकृति निर्भर तथा मेहनतकश परिवार पीड़ा, वंचना भुगत रहे हैं| कई भूखे हैं, तो कई बेघर! उनकी हकीकत वैकल्पिक भूमी का अधिकार, मकान के लिए भूखंड और अनुदान नहीं पाने से, आजीविका पर हुआ आघात भुगतने से आज भी गंभीर है| पुनर्वास स्थलों पर कानूनन उपलब्ध करने की पानी, रास्ते, नालियां जैसी सुविधाओं की त्रुटियां न्यायालयीन फैसलों का उल्लंघन है| राज्य और केंद्र की शासन, विविध निर्णयकारी, जिम्मेदार शासकीय संस्थाओं की संवाद और संवेदना के साथ उन्हें न्याय दिलाने में देरी, अन्यायकारी है| दलित, आदिवासियों के साथ यह अत्याचार है| इसमें नर्मदा ट्रिब्यूनल का फैसला (ट्रिब्यूनल अवार्ड), विशेष पुनर्वास नीति तथा न्यायालयीन आदेशों का उल्लंघन है|
पिछले साल 2023 में आयी डूब, जो नर्मदा घाटी के कई बांधों के जल प्रवाह के नियमन में बड़ी त्रुटियां तथा सरदार सरोवर के गेट्स समय पर न खोलने से मध्यप्रदेश के करीबन 150 गांव में और महाराष्ट्र की वनखेती में तथा गुजरात के नीचेवास के आदिवासी, किसान, मछुआरे, व्यापारियों शहरवासियों तथा मंदिरों पर आघात कर चुकी है|
मध्यप्रदेश के निमाड़ी गावों में, बैकवॉटर लेव्हल्स अवैध रूप से 2008 में पुनरीक्षित करना गलत, अवैध और अवैज्ञानिक साबित होकर, 15946 परिवारों को उनके मकान भूअर्जित करने के बाद, उनमें से कईयों को भूखंड देने के बाद भी संपूर्ण पुनर्वास से वंचित रखा गया है| इन्हें ‘डूब से बाहर’ घोषित करना गलत साबित होकर, नर्मदा किनारे रहते हुए इन्हें डूब से घर- सामान ध्वस्त होने से बर्बादी भुगतनी पड़ी है| आज भी इनमें से कई शासकीय भवनों में है| इन 15946 परिवारों का संपूर्ण पुनर्वास का हक पुराने (1984 में) केंद्रीय जल आयोग से निश्चित किये गये बैकवॉटर लेव्हल्स तत्काल मंजूर करना जरूरी है!
सरदार सरोवर नर्मदा घाटी के 30 बड़े बांधों में से सबसे नीचे का महाकाय बांध है| उसके नीचे 151 किलोमीटर का नीचेवास में गुजरात के तीन जिलों के गांव, शहर हैं! उपरवास के मध्यप्रदेश के 192 गांव और धरमपुरी नगर महाराष्ट्र के 33 गांव और गुजरात के 19 गांव में आज भी संपूर्ण, सही पुनर्वास के बिना डूबग्रस्त परिवार है| 2017 में बांध का कार्य पूरा किया और 2019 में पानी पूर्णजलाशय स्तर तक भरा! बर्गी से ओम्कारेश्वर तक के विस्थापितों को भी खेती- आजीविका दिये बिना उजाडा! उन बांधों से निकासित जल प्रवाह का नियमन नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और मध्यप्रदेश का नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, गुजरात का सरदार सरोवर नर्मदा निगम (SSNNL) जैसे की सबसे अहम जिम्मेदारी न निभाते हुए कम- अधिक वृष्टी की स्थिति में डूब आयी उसी से कानून, फैसलों का उल्लंघन हुआ| बिना पुनर्वास हजारों परिवारों ने डूब भुगती है| किसानों की कुछ हजार एकड़ जमीन बिना भूअर्जन डूब में आने से नियोजन की गलती साबित हुई है| 62 से भी यह हुआ तो क्या आगे भी भुगतते रहेंगे? साल की सबसे अधिक वर्षा (1:100 वर्ष की वर्षा बाकी है!) 16-17 सितंबर 2023 में आयी डूब से यह स्पष्ट हुआ है!
16 सितंबर तक जलाशय 25 प्रतिशत रिक्त रखने के नियम का उल्लंघन होकर, गांव- मकान, खेत भी डूबते हुए, 17 सितंबर के रोज प्रधानमंत्री जी का जन्मदिन मनाने के लिए, देर तक सरदार सरोवर के गेट्स पर्याप्त मात्रा में न खोलने से डूबग्रस्त हो ध्वस्त हुआ गाव-गाव का, धरमपुरी का भी जीवन! एक साथ 18 लाख क्यूसेक्स पानी नीचेवास में छोड़ने से भरुच, अंकलेश्वर जैसे शहर, केवड़िया, वाघोडिया सहित तीन जिलों के गांव के खेत, मकान, दुकाने, मंदिर, तीर्थ, सभी ने भुगती बर्बादी! मध्यप्रदेश में त्वरित संघर्ष करना पड़ा, तो संवाद हुआ, राहत मिली लेकिन आज तक पूर्ण भरपाई नहीं मिली! कईयों को राहत राशि भी नहीं! 1200 मवेशी और 6 इंसानों की मौत की पूरी भरपाई राशि नहीं मिली! बिना भूअर्जन के, अवैध रूप से डूबे खेत और फसल के बाद आजतक कारवाई नहीं हुई!
2019 में डूब से निकालकर टिनशेड में रखे गये, गर्मी वर्षा, ठंड के आघात भुगतने वाले करीबन 500 परिवारों को; बयडीपुरा, (निसरपुर), बड़ा बड़दा, कटनेरा, एक्कलबारा, जांगरवा, पिछोड़ी,कुकरा- राजघाट जैसे गांव-गांव के कईयों को पात्रता अनुसार जो लाभ देना बाकी है, वह ट्रिब्यूनल फैसले का उल्लंघन है| तो बोधवाडा, करौंदिया के अलावा सभी अ-सामाजिक ईकाई बने परिवारों का संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है| कुछ मध्यप्रदेश के धार तहसील (जिला धार) में अतिक्रमित जमीन में और कुछ गुजरात में खेती के लिए अनुपयोगी जमीन में फंसाये गये परिवारों की समस्या का निराकरण सालों से आश्वासन के बावजूद न होकर वे वंचित है! मकान निर्माण के लिए मंजूर हुई (2017) 5.80 लाख रु. की अनुदान राशि न मिलने से हजार से अधिक गरीब परिवार बेघर रहे है!
मछुआरों को मध्यप्रदेश राज्य की मत्स्यव्यवसाय नीति के तहत्, पंजीकृत सहकारी समितियां बनाने के बावजूद, जलाशय में मत्स्यखेट संघ को पंजीकृत करके हक देना बाकी है| जबकि महाराष्ट्र ने उनके क्षेत्र में दिया है, मध्यप्रदेश में क्यों नहीं? क्यों नहीं नाव, जाल, बीज, खाद और प्रशिक्षण का लाभ? केवटों को, कुम्हारों को आजतक 2017 के आदेशों तथा बैठकों में लिए निर्णय और आजीविका सुरक्षा और निश्चिति के कानूनी अधिकार नहीं मिले हैं| कई दुकानदारों को भूखंड याने स्थान मिलना बाकी है! कहां है रोजगार निर्माण, प्रशिक्षण की व्यवस्था- पुनर्वास नीति का पालन?
इन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए जरूरी है पुनर्वास अधिकारी, कर्मचारी... जिनके हर तहसील में (मध्यप्रदेश के चार जिलों के- बड़वानी, धार, खरगोन, अलीराजपुर) पद खाली पड़े है| त्वरित पदभर्ती जरूरी है| शिकायतों के निराकरण के लिए नियुक्त शिकायत निवारण प्राधिकरण में पांच के बदले 3 ही भूतपूर्व न्यायाधीश सदस्यों की नियुक्ती हुई है, जबकि 5 सदस्यों की नियुक्ती होनो चाहिये| कई महीनों तक पद रिक्त होने बाद और 6000 से अधिक शिकायतें प्रलंबित हैं| सैकड़ो परिवारों के पात्रता के आदेशों का पालन भी बाकी है| शिकायत निवारण प्राधिकरण की प्रक्रिया समयबद्ध, न्यायपूर्ण, विकेंद्रित रूप से होना भी जरूरी है!
इस परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र को नियोजित बिजली का लाभ भी न देने वाले, हजारों करोड़ों की मांग पर बहस जारी होते हुए, 90,000 करोड रुपए तक खर्चाकर बने सरदार सरोवर बांध से विस्थापितों को यह अन्याय, अत्याचार भुगतने के लिए मजबूर करना हमें नामंजूर है! कच्छ के खेतों तक नहरे न पहुंचने से, सौराष्ट्र की नहरों की टूटफूट से वे भी चिंतित और पीड़ित है| हम अहिंसक सत्याग्रही रहे हैं, पिछले करीबन 39 साल! काफी मात्रा में हजारों का पुनर्वास पाने के बाद भी आज जीवट संघर्ष की अहम जरूरत है! नर्मदा जैसी आदिम नदी घाटी के पीढ़ियों पुराने निवासी, जिन्होंने नदी, जंगल, पर्यावरण की रक्षा की, जिनकी आजीविका उसी जीवनाधार पर निर्भर रही, उन्हें न्याय दिलाने की बेहद जरूरत है!
इसलिए पिछले सालों में, विशेषत: अगस्त 2022, से कई बार मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (NVDA), नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (NCA) के उच्च अधिकारियों से चर्चा, कुछ निर्णय और निर्देश, NCA के अधिकारियों का घाटी का संक्षिप्त दौरा, और 2023 की डूब के बाद भी बुनियादी मांगों पर विस्तृत चर्चा के बावजूद निर्णय और कार्य बाकी है| 2024 की बारिश द्वार में पहुंची है!
कानून- फैसलों के अनुसार जरूरी है; बिना पुनर्वास किसी की संपदा- जीने का आधार- मकान, खेत डूबने नहीं देना, उसके लिए सरदार सरोवर का जलस्तर 122 मीटर पर, सभी प्रभावितों का संपूर्ण पुनर्वास, भरपाई होने तक, नियंत्रित रखना जरूरी है|
उपरोक्त सभी मांगे हकदारी के तहत् है| भीख नहीं मांग रही नर्मदा घाटी की जनता!
इसलिए 15 जून, 2024 से गांव चिखल्दा (तहसील कुक्षी, जिला धार) के ही ‘खेड़ा’ वंचित फलिये में (राजघाट- निसरपुर के पुराने रास्ते पर) ‘अनिश्चितकालीन उपवास’ शुरू करने जा रहे हैं|
सवाल लेकर बैठेंगे| जवाब लेकर उठेंगे|
मध्यप्रदेश और केंद्र शासन से अपेक्षा है, न्यायपूर्ण निर्णय की! हम चाहते हैं, सत्याग्रह के दौरान वंचितों के बारे में निर्णय और त्वरित कार्यवाही भी हो!
आप सबका समर्थन और सहयोग मिलेगा, इस विश्वास के साथ,