नर्मदा को बहने दो… नर्मदा में विशाल चुनौती…
सरदार सरोवर बाँध के गेट खोले जाए, बिना सम्पूर्ण पुनर्वास डूब नामंजूर।
नर्मदा पर आदिवासी, किसान-मजदूर-मछुआरों का पहला हक।
नर्मदा की कॉर्पोरेटी लूट की राजनीति नामंजूर।
किसानों को कर्जमुक्ति और उपज का डेढ गुना दाम, राजनीतिक दल दे बयान।
बड़वानी, मध्य प्रदेश : कल, सिंतबर 29 के रोज, नर्मदा घाटी के किसान, खेत मजदूर, कुम्हार, केवट मछुआरे, आदिवासी, दलित और सभी, अभूत एकता के साथ एकत्रित हुए। पूरे देश के लगभग 300 संगठनों की ताकत 28 सिंतबर 1989 के रोज हरसूद (जिला खण्डवा) में जुटी थी, उसे 30 साल पूरे हुए हैं और नर्मदा बचाओ आंदोलन को 33 साल पूरे हुए हैं। इस वक्त नर्मदा किनारे के गांव, नगर, घाटी की मेहनतकश जनता विस्थापन देख रही है, न केवल खुद का, घर-जमीन, पेड़-जंगल, संस्कृति से, बल्कि नर्मदा नदी का ही विस्थापन, उसकी कछार से, उसके अपने खेत-खलिहान, मंदिर-घाट, मस्जिदों से, पेड़-जंगल जैसे प्राकृतिक संसाधनों से…
 
एक ओर पुनर्वास स्थलों तक पीने का पानी भी नहीं पहुंचा है, और दूसरी ओर “नर्मदा” सूखा और बाढ़ के चक्र में फंसी है। साथ ही पानी रूकने से प्रदूषित होकर जलकुम्भी से ढकती जा रही है। पशुओं के शव तक अटके तैरते पाये हैं। पानी पीने लायक नहीं रह गया है। मातेसरी की यह हालात हमें मंजूर नहीं है। बांध के नीचेवास में नदी सूखने से समुंदर 80 कि.मी. तक अन्दर आकर खेत, भूजल, नदी को खारी कर गयी है। यह कैसा विकास?
पुनर्वास भी 35000 परिवारों का पूर्ण होना बाकी है। सर्वोच्च अदालत के 8 फरवरी 2017 के फैसले का भी पूर्णपालन नहीं हुआ है। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश के पहाड़ी आदिवासीयों के वनअधिकार और पुनर्वास के अधिकार आधे अधूरे मिले हैं… कईयों को घर-प्लॉट या आवास योजना का अनुदान मिलना बाकी है। पुनर्वास स्थलों पर शालाएं स्थलांतरित की गयी हैं लेकिन हजारों बच्चे मूलगांवों में हैं, जिनकी शाला छुड़वाने का काम सर्व शिक्षा अभियान का डिंडोरा पीटने वाली वर्तमान सरकार ने किया है। बिना पुनर्वास सैकड़ों घर, आदिवासीयों के भी तोड़े या डूबाये गये… लेकिन 35000 परिवार मूल गांवों में आज भी हैं।
 
आज एकजुटता के साथ सभी ने सरदार सरोवर बाँध के गेट खुले रखकर नर्मदा को बहने देने की मांग पुरजोर रूप से उठायी और उसके लिए संघर्ष की चेतावनी दी। 
नर्मदा घाटी के संघर्ष और निर्माण के समर्थन में आये वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ताओं ने सरदार सरोवर के झूठे लोकार्पण के बाद 1 साल के लाभ-हानि की पोलखोल करते हुए कहा कि शिवराज सिंह शासन भी मध्यप्रदेश के जलाशयों से कंपनियों के लिए मध्य प्रदेश की अन्य बड़ी नदियों में नर्मदा पहुँचाने की चुनाव पूर्व साजिश कर रही है, जिससे कि वोट बैंक बनानी है। 
 
किसानों के लिए दो कानूनों पर मांगी राजनीतिक दलों की भूमिका। किसान नेता धनश्याम चौधरी जी जो स्वाभिमानी शेतकरी संघटना के नेता पदाधिकारी है, उन्होने किसानों की कर्जमुक्ति व उपज का सही याने लागत के डेढ़ गुना दाम पर लोकसभा और राज्यसभा के समक्ष रखे गये विधायक कोे संक्षित ब्यौरा प्रस्तुत किया।
 
इस पर कांग्रेस, भाजपा, आमआदमी पार्टी और जयेश संगठनों को आमंत्रित किया गया था। कॉग्रेस के मनेन्द्रसिंह रायसिंह पटेल (बिट्टु) अध्यक्ष जनपद पंचायत बडवानी ने मंच पर आकर अपना समर्थन घोषित किया और कानूनों के मसौदे पर हस्ताक्षर किया। 
 
प्रमुख वक्ताओं के वक्तव्य सभा में तमिलनाडू के आंतरराष्ट्रीय कलाकार पेंटर, श्री ओवियार पुगले दी ने कहा कि वे अपनी कला के द्वारा नर्मदा का बदलता चित्र, जो कि मानवीय हिंसा का हैं, दुनिया के सामने उजागर करेंगे। उन्होने मंच पर अपनी चित्रकला कॅनव्हास पर प्रगट की। 
 
केरल से पधारे जीओ जोस ने केरल की हकीकत कितनी प्राकृतिक और कितनी शासकीय, इसका चित्र सामने लाया। उन्होंने कहा कि जो केरल में हुआ, वह बड़े बांधों की निगरानी नहीं, उनका जलनियोजन नहीं, इसीलिए आयी आपदा थी। नर्मदा में भी यह हो सकता है, इसीलिए नदी को बहती रखकर आपके संघर्ष के द्वारा ही, सही विकेद्रित विकास से निर्माण हो, यह हमारी भी इच्छा है। हम प्रेरणा लेते हैं, 33 साल के आंदोलन से, जिसने लड़ेंगे-जीतेंगे नारे के साथ लड़ने की हिम्मत हमें दी हैं।
 
किसानों की कर्जमुक्ति का आग्रह लेकर पधारे स्वाभिमानी शेतकरी संघटना के पदाधिकारी धनश्याम भाई चौधरी ने कहा कि सांसद राजू शेट्टीजी के नेतृत्व में महाराष्ट्र से आकर मध्यप्रदेश के किसानों के साथ देश भर के किसानों को भी संपूर्ण कर्जमुक्ति मिलनी ही चाहिए। उन्होने कहा कि दो कानूनों के मसौदे (बिल्स) लोकसभा में पेश किये गये है, जिनके बारे में हमे संघर्ष कर संसद को जगाना होगा। किसानों का पतन शासन की गलत नीतियों के कारण हो रहा है।
 
मधुरेश कुमार ने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की ओर से 30 नवंबर के रोज संसद मार्ग पर 28-29 नवंबर से चलकर दिल्ली को लाखों की तादाद में घेरना होगा। हम किसानों को कम दाम, जमीन का जबरन् अधिग्रहण जैसी नीति का विरोध करना होगा। 
 
महाराष्ट्र के नूरजी वसावे और गुजरात के दिनेश भीलाला ने बताया कि वहां भी सैकडों परिवारों का पुनर्वास बाकी है। जलाशय और पहाड पर भी हमारा हक है। उसके बिना सरदार पटेल जी के पुतले का पर्यटन का महोत्सव करना अन्याय है।
 
महाराष्ट्र के बाबा आमटेजी से वर्षों से जुडे सामाजिक कार्यकर्ता अनिल हेब्बरजी ने कहा कि नर्मदा हो या सेंचुरी, संघर्ष लम्बा चलाने की आपकी ताकत हमें भी प्रेरणा देती है। हम आपके सहयोगी है और रहेंगे। 
 
इप्टा की शर्मिला बहन ने ‘‘ओ गंगा तुम, निःशब्द बहती हो क्यू?” यह गीत नर्मदा को संबोधित करते हुए गाया, जो लोगों के दिलों को छू गयी। मंच पर सरदार सरोवर बांध की प्रतिकृती के गेट समर्थकों ने खोलकर नर्मदा का पानी बहता किया। राहुल यादव के ऐलान पर हजारों भाई-बहनों ने इस मांग का पुरजोर समर्थन किया।
जयन्त भाई ने कहा कि बडे बांध खर्चीले होते है, इसमें किसान-मजदूरों का शोषण होता है। छत्तीसगढ के बांधों के बारे में पूरी बात रखी गई थी, नर्मदा की धारा बहते रहने दो।
 
विजय शर्मा ने कहा कि नर्मदा के पानी पर पीथमपुर उद्योग क्षेत्र चल रहा है लेकिन वहॉं भी मजदूरों का शोषण जारी है। सेचुरी हो या प्रतिभा सिन्टेक्स सभी जगहों पर मेहनतों की लूट जारी है। हम सभी को मिलकर न्याय के लिए लड़ना होगा।
 
आज 30 सितंबर 2018 के रोज बड़े बांधों पर आगे बहस होगी और इसका स्थान इंदौर होगा। 
 
 
 
देवराम कनेरा, कमला यादव, भागीरथ धनगर, सनोवर बी मंसूरी, सरस्वती बहन, कैलाश यादव, बालाराम यादव, सुरेश पाटीदार
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