नर्मदा की हत्या मात्र वोटबैंक और अवैध कमाई के लिये! देश भर के नदी व जन, जल बचाने के लिए होगा समन्वय और संघर्ष के साथ निर्माण भी
साधुओं की समिति और राज्यमंत्री का दर्जा देकर गठित की गयी कमिटी, क्या विशेषज्ञ है या राजनीतिक लाभार्थी ?
4 अप्रैल 2018, भोपाल: नर्मदा नदी के नाम पर मध्य प्रदेश में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर काफी यात्राएँ, घोषणाएं एवं परियोजनाएं एक सिलसिले के रूप में जारी है, तब दूसरी ओर मध्य प्रदेश की यह मातेसरी मौत की कगार पर धकेली जा रही है, इससे भयावह संकट उभरा है। इस जलसंकट के कारण मीमांसा नजरंदाज करते हुए मात्र शासकीय तिजोरी से करोड़ों रुपये व्यर्थ गंवाते हुए नर्मदा के जल संसाधनों की भी लूट जारी है । निमाड़ और मालवा दोनों क्षेत्रों को नर्मदा के पानी का आश्वासन बटोरने वाली मध्य प्रदेश सरकार नदी व घाटी के निवासी तथा मालवा के भी किसानों -मजदूरों, शहरवासियों के साथ भी खिलवाड़ कर रही है।
पुण्यपावन सलीला मानी गयी, वर्षभर पानी किलकिलती बहाने वाली 1300 किमी. नर्मदा अब सूखी पड़ी है और भी सूखती जा रही है। यह मात्र पिछले साल कम बारिश होने से पड़ा सूखा नहीं है, यह नर्मदा की कछार, नर्मदा घाटी के जंगल, नर्मदा की उपनदियाँ और नर्मदा के पानी का आबंटन, हर एक में दुर्लक्षित व्यवहार और अवैध व्यापर बढ़ा है, उसका नतीजा है। सबसे अधिक नुकसान विकास के नाम पर बनाए गये नर्मदा नदी पर और उपनदियों पर बनाये गये बड़े बांधों से और अवैध रेत खनन से हो रहा है। सरदार सरोवर का डूब क्षेत्र और जलाशय भी खाली पड़ा है।
नर्मदा सेवा यात्रा और पौधारोपण के नाम से करोड़ों रूपये खर्च करने वाली शासन ने अवैध रेत खनन को प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष प्रोत्साहित किया है। न हि प्रदेश में संदीप शमतिक कई अधिकारियों, पत्रकारों की हत्या होते हुए कोई सशक्त नियम- कानून बनाये गए हैं, न हि उपलब्ध कानून और सर्वोच्च अदालत के फैसलों के तहत सजा दी जा रही है। सरदार सरोवर या अन्य बांधों के लिए अर्जित भूमि, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की मालिकी होते हुए अवैध खनिज उत्खनन जारी है। ट्रैक्टर्स, नाव- बोट रंगे हाथ पकड़ने पर भी पुलिस खनिज विभाग प्रशासन माफिया की गठजोड़ और राजनेताओं की भागीदारी के कारण कार्यवाही नहीं की जा रही है। रेत अंधाधुंध पैमाने पर निकालकर नदी के किनारे और कछार ध्वस्त करने वाले प्रदेश में राज कर रहे हैं पर नर्मदा में मिटटी फेंककर गाद से भर रहे हैं।
सरदार सरोवर और हर एक बाँध के जलनियोजन में काफी धांधली और गैरकानूनी कार्य हो रहा है जो कि म. प्र. और गुजरात चुनाव के राजनीतिक स्वार्थ के चलते, नर्मदा नदी की ही आहुति देने जैसा है।17 सितम्बर 2017 को हुए मोदी जी के सरदार सरोवर के लोकार्पण के वक्त मध्य प्रदेश ने गुजरात के आँचल में पानी डाला जो बाँध के नीचे वास में नहीं, गुजरात के शहर और कंपनियों की ओर मोड़ दिया, गुजरात के चुनाव से पहले। ओंकारेश्वर जैसे जलाशय से नर्मदा –क्षिप्रा, नर्मदा- मही, नर्मदा-गंभीर, नर्मदा – कालीसिंध और इंदिरा सागर से नर्मदा पार्वती जैसी नर्मदा से प्रति सेकेंड 5 से 15 हजार लिटर्स पानी उठाने वाली लिंक परियोजनाओं द्वारा मालवा के 70 शहर और 3000 गांवों को पानी देने की जाहिरात, उद्घाटन यह सब म. प्र. के आने वाले चुनाव के मद्देनजर मालवा की वोटबैंक ध्यान में लेते हुये हो रहा है। नर्मदा किनारे के तहसीलों में, गाँव गाँव में और बड़वानी, कुक्षी जैसे शहरों को जब जबकि नियमित पानी नहीं मिल रहा है, खेतों में फसल खड़ी हैं लेकिन हजारों हेक्टे यर्स में सूखी पड़ी है, किसानों को हजारों रु. खर्च करके भी पाइपों से पानी नहीं मिल पा रहा है, तब मालवा को स्थानीय जलस्त्रोतों के विकेन्द्रित विकास के बदले नर्मदा का मृगजल दिखाकर भ्रमित किया गया, फंसाया जा रहा है। दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर व पीथमपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्र में हर एक कंपनी को हर माह करोड़ों लिटर्स पानी देकर नर्मदा खाली की जा रही है तो मध्य प्रदेश की सत्ताधीश पार्टी कंपनियों से चुनावी चंदा जरूर ले लेगी, क्या उन्हीं के वोट्स पर जीत जायेगी?
सरदार सरोवर में म. प्रदेश के 6 से 8 हजार करोड़ रूपये ही नहीं, पीढ़ियों पुरानी धरोहर, हजारों परिवार, हजारों हेक्टर उपजाऊ खेती, लाखों पेड़, हजारों 10 वीं/12 वीं सदी के मंदिर, कुछ मस्जिद, घाट आदि की आहुति देने पर न ही बिजली मिल रही है जो की 56% मिलनी थी, न ही एक बूँद पानी पर अधिकार। इस स्थिति पर गुजरात में ही नहीं, म. प्र. में भी हाहाकार है और साधुओं को दिया गया राजमंत्री का दर्जा एक राजनीतिक चाल है।
नर्मदा के किनारे प्रस्तावित चुटका परमाणु तथा अनेकों ताप विद्युत् परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। यह परियोजना नर्मदा नदी से भारी मात्रा में पानी भी लेंगे तथा विकिरण तथा राखड से नदी के अस्तित्व को ख़त्म करेगी। यह पानी उद्योग की पेयजल तथा सिंचाई सुविधा को समाप्त कर दिया जा रहा।
साधुओं को क्या संभव है बचाना नर्मदा, जन, जीवन और अधिकार?
नर्मदा नदी पर विविध प्रकार से ढिंढोरा पीटने के बाद करोड़ों रु. की यात्रा व योजनाओं पर खर्च व्यर्थ जाने के बाद अब नई राजनीतिक चाल खेली गयी है। तीन साधू बाबा और राजनेताओं के साथ संवाद और गुरु शिष्य का रिश्ता रखने वाले भैय्यु महाराज चारों का राज्यमंत्री का दर्जा देकर शासन ने अपने साथ लिया है। क्या नदी घाटी, नदी और जलस्त्रोत बचाने, विकसित करने में ये सफल होंगे? शासन के अवैध, गैरकानूनी, अन्यायपूर्ण कारनामों के खिलाफ आवाज उठाएंगे? लाल गाड़ी सनात्व बचायेंगे? जग्गी वासुदेव जैसे सद्गुरु ने करोड़ों रूपये जुटाकर कोई नदी नहीं बचाई, वे नर्मदा घाटी 100 एकड़ जमीन की मांग मात्र बढ़ा रहे हैं, तो क्या साधुओं की समिति नर्मदा बचाएगी? मध्य प्रदेश शासन जवाब दे।
नर्मदा जनसंवाद –
नर्मदा घाटी के अमरकंटक से निमाड़- मालवा और गुजरात के भरूच जिले तक के लड़ने वाले किसान ,मजदूर ,मछुआरे सभी के साथ देश के विविध जनसंगठन और सामाजिक संस्थाएं खड़ी होकर चलाएगी नर्मदा जन संवाद। हम ऐलान करते हैं कि देश के युवा, विद्यार्थी, कार्यकर्ता, शोधकर्ता, अधिवक्ता, पत्रकार, कलाकारों व नदी का समाज से रिश्ता मानने वालों को कि वे आने वाले दिनों में घाटी में आये और इस अभियान में शामिल हो जाए। अप्रैल 3 और 4 के रोज गाँधी भवन, भोपाल में हुयी संगोष्ठी में यह निर्णय हुआ है। इसका ब्यौरा बाद में जाहिर होगा।
नर्मदा घाटी की जनता के अलावा नर्मदा और देश की हर नदी को जीवित रखना चाहने वाले सभी को हमारा ऐलान होगा कि नर्मदा के पानी को विकेन्द्रित रूप से संजोगना, यहाँ के पेड़-पौधे, जंगल बचाना, नदी पर आज तक न बने छोटे बाँध या जलग्रहण क्षेत्र नियोजन को बढ़ाना और इंडस्ट्रीज और शहरों अंधाधुंध पानी देने के लिए किसानों को ग्रामवासी, आदिवासियों को और नदी को भी सूखा छोड़ना नहीं होने देना जरूरी है। संघर्ष के साथ निर्माण भी आगे बढ़ाएंगे, यही संकल्प है।
सौम्या दत्ता, विमल भाई, जगदीश पटेल, राजकुमार सिन्हा, मेधा पाटकर, चिन्मय मिश्रा
संपर्क – 9179617513
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