चिखल्दा आवाहन | नर्मदा सत्याग्रह | 12 अगस्त 2017
हम सभी सरदार सरोवर बाँध से प्रभावित, नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता और प्रतिनिधि, जिसमें से कुछ 27 जुलाई से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे हैं और कुछ पुलिसिया दमन के विरोध में 7 अगस्त से बैठे है, ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि शासन कितना भी दमन कर ले लेकिन हमारे 40000 सरदार सरोवर बाँध के डूब प्रभावित परिवारों के लोकतांत्रिक, अहिंसक और हकों की लड़ाई को दबा नहीं सकती, हम दृढ़ निश्चय के साथ हमारे अधिकारों के लिए पिछले 32 सालों से लड़ते आ रहे है और आगे भी लड़ते रहेंगे।
पिछले कुछ महीनों में आन्दोलन ने अलग तरह के खुलासे और प्रदर्शन करके पूरी दुनिया में मध्य प्रदेश सरकार की पूर्ण पुनर्वास के झूठ का पोल खोल कर दिया है, और यह साबित कर दिया है कि हजारों परिवार अभी भी डूब प्रभावित क्षेत्र में निवास कर रहे हैं जब तक उन्हें सम्पूर्ण और न्यायपूर्ण पुनर्वास नहीं मिल जाता है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्षों से पुनर्वास पूरा बताने का झूठ, स्कीम और पैकेज की घोषणा के समय पूरी दुनिया के सामने आ चुका है और सरकार के पुनर्वास के आंकड़ों के खेल की स्वतः सरकारी पोल खोल भी हो चुकी है जिसे आन्दोलन कई वर्षों से कह रहा था।
यह तथ्य है कि आज सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये 31 जुलाई के अंतिम तारीख के बाद भी लाखों लोग यहाँ बसे हुए हैं और उधर गुजरात में आयोजित नर्मदा महोत्सव जिसमें 12 बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और 2000 साधु आने वाले थे, वो भी नहीं हो पाया, यह जन आन्दोलन और पूरे देश – विदेश से उमड़े समर्थन की जीत है। पूरे भारत और दूसरे देशों में सैकड़ों जगहों पर नर्मदा घाटी के समर्थन में प्रदर्शन हुए और सरकार से आग्रह किया गया कि वो आन्दोलन की मांग को गंभीरता से सुने और दमन ख़त्म करते हुए संवाद शुरू करें।
गुजरात में आये विध्वंशक बाढ़, और सारे जलाशयों का भरना यह दिखलाता है कि प्रकृति ऐसी मुश्किल घड़ी में भी नर्मदा घाटी के साथ है जहाँ पानी अभी नहीं भरा है। गुजरात सरकार अपनी अन्य परियोजनाओं की नाकामियों को सरदार सरोवर परियोजना से पानी लेकर छुपाना चाहती है। आन्दोलन ने बार बार कहा है कि बिना गहन योजना, जिसमें विकेंद्रीकृत जल संग्रहण का प्रावधान हो, के बिना बड़ी परियोजनाओं पर निर्भर होना विध्वंशक हो सकता है और लोगों का बहुत पैसा बर्बाद होकर सिर्फ विनाश लाएगा। अब जब गुजरात सरकार लगातार परियोजना पर आगे बढती जा रही सिर्फ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए तब यह समय आ चुका है कि बाँध प्रभावित और सूखा प्रभावित एक साथ आकर इस जन विरोधी और कॉर्पोरेटपोशी विकास के मॉडल को बढ़ावा देती सरकार को चुनौती दे।
किसान विरोधी, गरीबों के खिलाफ काम कर रही सरकार का चेहरा पूरी तरह सामने आ चुका है। सरकार के संवाद के दावे भी खोखले दिखाई देते है जब मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायकों द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा करने, लोकसभा राज्यसभा में सांसदों द्वारा इसपर चर्चा करने के प्रस्ताव, और प्रधानमंत्री को लिखे पत्र पर भी जब सरकार कोई ध्यान नहीं देती है। अभूतपूर्व अन्याय की दास्ताँ और भी जाहिर होता है जब संवैधानिक मूल्यों को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट के 2000 और 2005 के फैसले को नजर अंदाज़ करते हुए अभी हाल का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आता है।
जल्दी में बनाये गए अस्थायी पुनर्वास के लिए टिन शेड्स यह दिखलाते है कि स्थायी पुनर्वास स्थलों की क्या स्थिति है, हजारों भूमिहीन परिवारों के लिए वैकल्पिक आजीविका सुनिश्चित करने के लिए कोई योजना न होना, बैक वाटर लेवल से अन्यायपूर्ण तरीके से निकाले गए 15,946 परिवारों का अनिश्चित भविष्य, विस्थापितों को नहीं दिए घर-प्लाट, ऐसे बहुत सारे बिन्दुओं में कुछ बिंदु है जो साबित करते हैं की नर्मदा वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल अवार्ड, सुप्रीम कोर्ट के 2000 और 2005 के फैसलों का उल्लंघन हुआ है। सरकार द्वारा बिना सम्पूर्ण और न्यायपूर्ण पुनर्वास किये सरदार सरोवर बाँध के गेट्स बंद करना सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी 2017 के फैसले का सीधा सीधा उल्लंघन है।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने तीन दशक लम्बे संघर्ष में अभी के विनाशकारी जन विरोधी विकास के मॉडल के खिलाफ कई मूलभूत प्रश्न उठाये है और जनपक्षीय विकास की बात को लोकतंत्र के चारों स्तंभों तक अपनी बात पहुंचाई है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन, बड़े विकास की परियोजनाओं से होने वाले सामाजिक, पर्यावरणीय, आर्थिक और सांस्कृतिक विनाश का गवाह रहा है और एक यह बतलाता है कि इतने संघर्षों के बाद भी मानवीय और संवैधानिक न्याय मिलना अभी बाकी है।
हम सभी एक स्वर में सरकार के संवादहीनता का खंडन करते है और उसके नाम पर बर्बरता 7 अगस्त को किये हिंसक कार्यवाही, इंदौर में मेधा पाटकर को सुरक्षा और स्वास्थ्य के बहाने किसी से ना मिलने देना, जबरन अस्पताल में अनशनकारियों को बंधक बनाने जैसी स्थिति में रखना, और सैकड़ों लोगों पर झूठे आरोप लगा कर झूठे केस डालने की जोरदार भर्त्सना करते हैं। यह सिर्फ लोगों की एकता को तोड़ने के लिए और अपनी नाकामियों को छिपाने की सरकार की मंशा जाहिर होती है।
ऐसा सही ही कहा गया है, जब अन्याय कानून बन जाए संघर्ष और कर्तव्य के बीच तो नर्मदा घाटी के हम सभी लोग संविधान में विश्वास रखते हुए और संघर्ष और सत्याग्रह के बल पर अपना अहिंसक लड़ाई जारी रखेंगे और ना सिर्फ अपने अधिकार और हक बल्कि पूरे मानवीय समाज, पर्यावरण और प्रकृति को बचाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे। लड़ेंगे, जीतेंगे!
मेधा पाटकर, गायत्री बहन (कड़माल), विमला बाई( खापरखेडा), धर्मेन्द्र कन्हेरा( खापरखेडा), भगवती बहन ( निसरपुर), मंजुला बाई(निसरपुर), पुष्पा बाई (निसरपुर), रामेश्वर (अवल्दा), बाउ (अवल्दा), रुकमनी बाई (निसरपुर), भगवती बाई (छोटा बड़दा), सेवंती बहन ( छोटा बड़दा), नानी मछुवारा (चिखल्दा), सरस्वती बहन(सेमल्दा), कमला यादव(छोटा बड़दा), लक्ष्मी पाटीदार (कड़माल ), रेवा पाटीदार( निसरपुर), भूपेंद्र कुमावत (कोठड़ा), प्रवीण श्रीवास (निसरपुर), राकेश पाटीदार (निसरपुर), हरिओम कुमावत( एकलरा).बच्चूराम भिलाला (पिछौडी)