प्रेस नोट

नर्मदा घाटी में 17 दिनों से 21 जगह क्रमिक अनशन के बाद अब अनिश्चितकालीन सामूहिक उपवास – 27 जुलाई से नर्मदा किनारे

  • विकास के नाम पर क्रूरता और बर्बर हिंसा के विरोध में !
  • नर्मदा का पानी पहुँचते ही गुजरात में बारिश के पानी से मचा हाहाकार
  • न गुजरात को इस साल पानी की जरूरत, न ही मध्यप्रदेश को बिजली की!
  • सरदार सरोवर की जरूरत मात्र चुनावी राजनीति की !
  • गुजरात के सूखाग्रस्तों के नाम पर निमाड़ की समृद्ध खेतीप्रकृति और आदिमानव से चलती आई संस्कृति का विनाश

 

भोपाल, 25 जुलाई 2017:  सरदार सरोवर परियोजना से आँका गया और अब हजारों परिवारों के पुनर्वास कार्य को पूरा किये बिना म.प्र शासन डूब क्षेत्र से उनके मकान,खेती,बाल बच्चे, मवेशियों को भरी बारिश के मौसम में मात्र 180 वर्ग फिट चौड़ी टीनशेड में,जहाँ न सामान आये,न इंसान! ऐसी स्थिति में फेंकने की तैयारी कर रही है|

 

कल बडवानी में पुलिस ने बंदूके उठाकर मौकड्रिल की और उसकी खबर फैलाकर 31 जुलाई के पहले घर–गाँव खाली करने के लिए धमकी जाहिर कर दी |

 

जबकि देश के कांग्रेस, वाम मोर्चा, जद (यू), आप जैसे कई राजनितिक दलों के जन प्रतिनिधियों ने इस संघर्ष की आवाज सुनी और जनतांत्रिक मंचो पर उठाना शुरू किया है| उन्होंने लोगो  के अधिकारों का समर्थन करते हुए,बिना पुनर्वास डूब का विरोध किया है | तब भी 31 जुलाई के बाद हिंसा का मार्ग अपनाने की सोच मध्यप्रदेश शासन की है | हर 10-20 दिनों में कुछ मीटर्स पानी चढाने,अक्टूबर तक का समय पत्रक जारी कर धीरे धीरे जहर पिलाकर मौत लाने जैसा है |

 

इस पूरी साजिश के खिलाफ अहिंसा को चोटी पर पहुंचाने का रास्ता अपनाएगा नर्मदा बचाओ आन्दोलनजो परसो 27 जुलाई से अगला कदम उठाएगा अनिश्चितकालीन उपवास कासांगठनिक शक्ति के साथ |

 

शासकीय राजपत्र (25-5-2017) के अनुसार 141 गाँव के 18386 परिवारों को गाँव छोड़ना होगा| इस सूची में गाँव में न रहने वाले,दशकों पहले गाँव छोड़कर चले गए और बैकवाटर लेवल बदलकर जिन्हें डूब से बाहर कर दिया गया,उनके नाम सम्मिलित है| जब की बरसो से निवासरत, घोषित विस्थापितों को छोड़ दिया गया है | लेकिन हकीकत में 1980 के दशक में सर्वेक्षित 192 गाँव और 1 नगर में बसे 40,000(चालीस हजार) परिवार सरदार सरोवर बाँध की 139 मीटर ऊंचाई से आज बाढ़ की स्थिति में जी रहे है |

 

सरदार सरोवर से एक बूँद पानी का लाभ न होते हुए मात्र गुजरात को पानी की जरूरत मानकर, विकास की परियोजना बनाकर, मध्यप्रदेश के जीते जागते गांवो की आहुती देने में जरा भी न हिचकिचाती शासन ने, आजतक झूठे शपथपत्र भी दिए और परियोजना को विकास का सर्वोच्च प्रतीक मान, देश विदेश में घोषित किया |

 

प्रत्यक्ष में आज की स्थिति यह है कि गुजरात ने नहरों का जाल, 35 वर्षों में न बनाते हुए मात्र गुजरात के बड़े शहर और कंपनियों को अधिकाधिक पानी दान करना तय किया, लेकिन नाम रहा सूखा ग्रस्तों का| जिनके लिए विविध मार्गों से पानी पहुंचाना था, जिन बांधों में भरना था उन बाधों में आज प्रकृति ने इतना पानी भर दिया कि सुरेन्द्र नगर राजकोट में बाँध भरके ओवर फ्लो की स्थिति में आ गए| कहीं आर्मी लानी पड़ी और नर्मदा घाटी के निमाड़ के लोगो से पहले गुजरात के 5000 लोगो को स्थानांतरित करना पड़ा |

 

कुछ सालो में एक बार यह हकीकत बनती आई है और इसी से सवाल उठता है, क्या गुजरात अपने जलग्रहण क्षेत्र और जल का सही विकेन्द्रित नियोजन नहीं कर सकता? क्या निमाड़ के   पीढ़ियों पुराने गाँवों का विनाश, खेतीहरों की बरबादी बच नहीं सकती? मध्यप्रदेश को मात्र 56 फीसदी बिजली की भी क्या जरूरत है जबकि राज्य ने बरगी सहित अपने कई शासकीय बिजली घर बंद रखे है | तो क्या शासनकर्ता पुनर्वास कानूनी व न्याय पूर्ण स्वेच्छिक क रूप से पूरा होने तक रुक नहीं सकते ?

 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री न भ्रष्टाचार पर, न अत्याचार पर, कोई भी बात संगठित विस्थापितों के आन्दोलन के साथ नहीं करते है, क्योंकि परियोजना के हर पहलू पर पुनर्वास के गैरकानूनी तौर तरीके और त्रुटियों पर उन्हें जवाब देना पड़ेगा| वे मात्र अपने पार्टी परिवारजनों के साथ, घोषणाओं के ही द्वारा बातचीत करते है | अभी अभी दो बार उन्होंने बातचीत की, जिनमे  आम विस्थापितों, गरीबो, आदिवासी-दलितों को लूटने वाले दलाल भी शामिल रहे | यह स्पष्ट हुआ कि उनकी यह दलाली किसके आशीर्वाद से और रिश्ते के आधार पर चलती आई है और झा आयोग की 7 साल की जांच रिपोर्ट के बाद भी शासन ने उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की ?

 

आज जबकि मोदी शासन में बाँध संबंधी तमाम मुद्दों को विशेषतः सामाजिक, पर्यावरणीय पहलुओं को उनमे त्रुटियाँ ही नहीं धांधली को भी छिपाने, दुर्लक्षित करते हुए बाँध को अंतिम ऊँचाई 139 मीटर, तक पहुंचाई तब लाखो लोगों की बलि देने के लिए शासन की तैयारी और पुलिस बल का सहारा साफ़ नजर आ रहा है |

 

सर्वोच्च अदालत के फैसले का (8-2-2017) भी सुविधाजनक अर्थ लगाकर कोर्ट द्वारा तय किसानों को नया पैकेज से भी आधे से अधिक लोगो को वंचित रखकर मध्यप्रदेश शासन आगे बढ़ना चाहती है | पुनर्वास स्थलों पर स्थायी आवास और मूल गाँव से स्थानान्तर की स्थिति बनाने के बदले अस्थायी निवास करोडो रुपये के टीनशेड के निर्माण पर पीने के पानी के टैंकर्स  पर, हज़ारो लोगो को प्रतिदिन 66 रुपये के हिसाब से चार महीने भोजन खिलाने के करोड़ों के ठेके पर, रास्ते निर्माण के बदले मात्र कुछ दिन टिकने वाली चुरी डालने पर खर्च कर रहे है | किसानो –मजदूरों ही नहीं, डॉक्टर्स, दुकानदार या अन्य कारीगरों को भी भाड़े के मकान में चले जाने या 180 फीट चौड़ी फीट के टीन शेड में समाने के लिए कह रहे है| सुविधाओं के बिना पुनर्वास स्थलों पर मकान निर्माण भी हज़ारो का बाकी होते हुए गाँव से निर्दयतापूर्वक, ग्रामीणों को हकालकर गाँव की हत्या कर रहे है |

 

“विस्थापितों का दर्द समझता हूँ” ऐसा जवाब देने वाले मुख्यमंत्री जी सच्चाई बरतने, शपथ पत्रों में झूठे आंकड़े देकर अदालत की अवमानना न करने, तथा विस्थापितों पर युद्ध स्तरीय हमला करने के बजाय संवाद से सुलझाव का रास्ता नहीं चाहते, यह स्पष्ट हो चुका है | मोदी जी आज भी प्रधानमंत्री के बदले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में ही पेश आकर 12 अगस्त को 12 राज्यों के भाजपा के मुख्यमंत्रियों व् 2000 साधुओ के साथ नर्मदा की आरती उतारने की तैयारी में है | विकास का यह विकृत चित्र व् राजनितिक चरित्र असहनीय है | हिंसा का आधार न्याय पालिका भी मंजूर नहीं कर सकती | और धरातल की स्थिति की जांच परख के बिना आदर्श पुनर्वास का दावा मान्य नहीं कर सकती| विकास की अंधी दौड़ में मेहनतकश जनता को ही नहीं, गाँव, किसानी, प्रकृति, संस्कृति को कुचलना हमें स्वीकार नहीं |

 

इसलिए अब हर प्रकार से संगठित शक्ति से आवाज उठाने के बाद 32 साल के अहिंसक आन्दोलन ने परसों 27जुलाई 2017 से सामूहिक अनिश्चितकालीन उपवास का रास्ता तय किया है | समाज को इस विनाश को रोकने का ऐलान करते हुए, शासन को सद्बुद्धि हो इस अपेक्षा के साथ, हम डटेंगें, बड़ी तादाद में, नर्मदा किनारे |

 

कमला यादवमेधा पाटकरडॉ सुनिलमभागीरथ  

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