पौधारोपण स्तुत्य कार्य है, लेकिन मध्य प्रदेश शासन कर रही मात्र दिखावा है।
सरदार सरोवर बाँध के गेट्स बंद करके सैकड़ों साल पुराने लाखों पेड़ों को डूबाने वाली है मध्य प्रदेश और केंद्रीय सरकार।।

बड़वानी | 02 जुलाई, 2017: वर्षाकाल आते ही हम और देशभर के ग्रामवासी तथा प्राकृतिक रक्षा में विश्वास करने वाले सभी नागरिक गण हर्षोल्लास के साथ पौधारोपण करते हैं। नर्मदा कछार में, मूलतः किनारे के गांवों में आज हो रहा पौधारोपण का कार्यक्रम मात्र अंक दिखावा साबित हो रहा है। 3 करोड़ पौधे, 7 जिलों (खरगौन, बड़वानी, अलीराजपुर, अमरकंटक, अनूपपुर, धार, जबलपुर) में हर एक में रोपें भी तो कौन से, कितने पौधे और कितने जी पाएंगे, यह सवाल कड़ा है।


दूसरा, पौधे रोपने वाले क्या सही में पर्यावरण के, उसकी रक्षा के पक्ष में हैं? अगर होते तो नर्मदा किनारे के मात्र एक सरदार सरोवर बांध की डूब में 13,385 हेक्टेयर जंगल जिसमें हर हेक्टेयर में कम से कम 1600 से 2000 पेड़ थे, नहीं डुबाते और अब निमाड के 192 गाँव और धरमपुरी नगर के कुछ दस लाख पेड़ डुबाने की तैयारी नहीं करते। इस म. प्र. सरकार ने डूब में आने वाले पेड़ों के बारे में बार-बार झूठी जानकारी केंद्रीय सरकार, पर्यावरण मंत्रालय के पर्यावरण उपदल को तथा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को दी। जैसे कि सरदार सरोवर के संबंध में वन जमीन डुबाने के पहले दी मंजूरी की शर्त थी, तीन गुना जंगल लगाना। यह काम म.प्र. में नहीं के बराबर हुआ, लेकिन रिपोर्ट में तो 100 प्रतिशत कार्यपूर्ति बतायी गयी। न हि पर्यावरण उपदल या मंत्रालय ने कभी धरातल की जाँच की। मात्र एक संचालक (पर्यावरण व पुनर्वास), डॉ. अफरोज अहमद जी पर छोड़ा, जिन्होंने पर्यावरण उपदल या नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक के कुछ ही दिन पहले किसी छोटे से हिस्से की भेंट लेकर रिपोर्ट किया व गंभीर त्रृटियां छुपायी गयीं।
 

सवाल यह भी है कि क्या वैकल्पिक वनीकरण से सतपुड़ा व विन्ध्य के घने साग के विविधता से भरे जंगलों का पुनर्निर्माण या हानिपूर्ति हो सकेगी या सकेगा? कई जानकारों के व हमारे सर्वेक्षण बताते हैं कि वनीकरण की जगह बबूल फैली हुई है।

 

निमाड के मैदानी क्षेत्र के पेड़ों की तो कभी कोई दखल शासन ने या नियंत्रण की जिम्मेदारी लेने वाले किसी शासकीय संस्था ने नहीं ली। सरदार सरोवर का ही डूब क्षेत्र देखें तो कुछ दस लाख घने, बड़़े तने के पेड़ डूब में हैं। जैसा कि सर्वेक्षण बताता है, 38 गांवों में 86,300 बड़े पेड़ हैं, जो 100 या अधिक साल पुराने हैं। तो बताइये, पूरे क्षेत्र में कितने होंगे? इन्हें डुबाने से हो रहा विनाश की न केवल हरे आच्छादन का, बल्कि नदी कछार का, हवा/जलवायु का (पेड़ सड़ने से) ग्रीन हाउस निर्मिती से क्या कभी भरपाई हो पायेगी?

शासन 3 करोड़ पौधे लगाने से किस लाभ का दावा करता है, यह पता नहीं चला है। नर्मदा के पानी का प्रदूषण सबसे अधिक बांधों से नदी को रोकने से हो रहा है, हुआ है। फल और फूल के पौधे भूक्षरण भी नहीं रोक सकेंगे। उन्होंने सलाह दी थी, स्थानीय प्रजातियों को बढ़ावा देने की। यह बात राष्ट्रीय प्राधिकरण, भोपाल के अध्यक्ष व विशेषज्ञ सदस्य ने बड़वानी के जिलाधीश को आमने-सामने रेत खनन के विरोध में चल रही आंदोलन की याचिका में ही सुनायी थी।
 

फिर भी मध्य प्रदेष शासन के दिखावे के कृत्य-कार्य जारी हैं। तो क्या इन्हें अब पर्यावरण सुरक्षा का भी पुरस्कार दिया जाये?

आज भी बड़वानी, धार, खरगोन व अलीराजपुर में नदी पात्र व कछार में रेत खनन भरपूर जारी है। यह हाईकोर्ट व एनजीटी के आदेशों के विपरीत है। इसी से तो सबसे अधिक गाद भरना और प्रदूषण हो रहा है, जो कि राजनेता व अन्य अधिकारियों के गठजोड़ से हो रहा है।
 

नर्मदा सेवा यात्रा में लाखों पेड़ लगाये उनकी स्थिति क्या है, जो बडवानी जिले 25 लाख पेड़ लगाने की बात कर रहे है, उसकी देख-रेख की जिम्मेदारी किसकी होगी, वह कोई भी कार्ययोजना सरकार के पास नहीं है, हर बार वृक्षरोपक्षण किया जाता है, परन्तु उसकी भविष्य में क्या होने वाला है, उसकी कोई भी बात नहीं करता है।

सरदार सरोवर डूब क्षेत्र में लाखों पेड़ जा रहे है, उसको सरकार काटने की बात या डूबानी की बात बार-बार कर रहा है, एक तरफ जो पेड़ लगाने वाले है, परन्तु सरकार लाखों पेड़ जो सैकड़ों साल पुराने भी है, उसका क्या होगा सरकार।

नर्मदा घाटी के विस्थापित द्वारा पेड़ बचाने के लिए व पेड़ों को रक्षा सूत्र में बाँध रक्षा का भी संकल्प लिया गया है।
 

गेंदालाल भीलाला      श्यामा बहन       मेधा पाटकर        राहुल यादव       कमला यादव       सुखलाल भाई
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