प्रेस विज्ञप्ति|                                                                                                                                                   दिनांक 31अक्टूबर 2018

सरदार पटेल जयंती मनानी है तो किसान – खेतिहरों को कर्जमुक्त करें और उपज का सही दाम दे, मोदी सरकार!

गुजरात के आदिवासियों को वंचित, विस्थापित रखकर चीन और भारत के ठेकेदार-कंपनियों को लाभ देना अन्याय है।

गुजरात के अहिंसक आंदोलन के 90 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी कायरता की निशानी हैराष्ट्रीय एकता की नहीं!

सरदार पटेल के वारिस हो तो जात पात छोड़ोधर्मभेद तोड़ोसांप्रदायिक हिंसा रोक दो।

नर्मदा घाटी के हजारों लोग आज सरदार पटेल जयंती के रोज राष्ट्रीय एकता के नाम पर हो रहे आदिवासी-किसानों के साथ अन्याय का निषेध कर रहे है। एक ओर गुजरात के आदिवासियों ने अहिसंक सत्याग्रह के द्वारा हजारों परिवारों के चूल्हे बंद रखकर उनके जल, जंगल,जमीन छीनने की खिलाफत की है। सालों से थोपे गये विस्थापन पर और नर्मदा को दूषित और बरबाद करते हुए, घाटी के तीर्थ भंगार करते हुए, पर्यटन योजना का शृंगार और उससे 72 अन्य गांवों के नियोजित विस्थापन पर आदिवासियों ने उठाये सवाल गंभीर और सत्यवादी है, मोदी-रूपाणी शासन से हो रही आदिवासी ग्राम सभाओं की अवमानना की पोलखोल करते हैं। सरदार सरोवर और अब पुतला, महान किसान नेता सरदार पटेल जी के नाम पर निर्मित करवाने वाले शासनकर्ताओं ने न कभी नर्मदा नदी के जीवन और भविष्य का सोचा, न कभी विस्थापितों की कदर की। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 33 सालों से संघर्ष करते हुए ही अपने अधिकार पाते रहे आदिवासी-किसान, मजदूर,मछुआरे, जात-पात-धर्म-पंथ-प्रांत और लिंगभेद ना मानते सही अर्थ से एकता का परिचय देते आये है। वे ही सच्चा सम्मान करते आये है, सरदार पटेल जी का और आज भी कर रहे है।

आज, मध्य प्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में, बडवानी जिले के ग्राम बगुद में और खरगोन जिले के खलघाट में, नदी किनारे सैकडों लोग, बहन भाई नर्मदा किनारे एक होकर गुजरात के संघर्ष को साथ और शासनकर्ताओं के धिक्कार की बात जाहीर करेंगे।

सरदार पटेल भारत के पहले गृहमंत्री ही नहीं, भारत भर अंग्रेज़ सरकार के अन्यायपूर्ण टैक्स के खिलाफ एक जबरदस्त अहिंसक आंदोलन खड़ा करने वाले और छीनी गयी जमीन सत्याग्रही किसानों को वापस दिलाने वाले नेता थे। उनकी हैसियत ऐसी थी कि उन्होंने कई सारे राजसंस्थानों को आजाद भारत में स्वेच्छा से सम्मिलित करवाया और ‘लोह पुरूष’ होते हुए जिन्होंने विरोध किया, उन्हें संपत्ति से वंचित करवाया। सांप्रदायिकता की खिलाफत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना, भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद हुए हिंसक दंगों में सभी धर्म-प्रांत के लोगों को मनवाना इत्यादि में अपना लोहा बताया।

आज देश में किसानों की लूट ऐसी मची है कि उपज का सही (लागत के डेढ गुना) दाम देने के बदले भावांतर और फसल बीमा से करोडों किसानों के करोडो रू. छीने जा रहे हैं। अब फिर म.प्र. जैसे राज्य में, चुनाव के मद्दे नजर MSP बढाने की और जनवरी 2019 में याने चुनाव के बाद भावांतर देने की घोषणाएँ हो रही है। हम किसान(खेत, मजदूर, मछुआरे, वनोपज पर जीने वाले, पशुपालक सभी) हमारे प्रकृति और मेहनत का सही दाम, स्वामीनाथन आयोग के सिफारिश के अनुसार मांग रहे है तो मात्र थोडा सा लाली-पॉप केन्द्र सरकार दिखा चुकी है; सही अमल नहीं।

भावांतर के नाम पर आज भी बडवानी मण्डी में मक्का 1200 रू तक बेची जा रही है। आपदाग्रस्तों को बीमा से कोई लाभ नहीं। सरदार पटेल के वारिस हो तो किसानों को ये लाभ दो, मात्र पुतले खडे ना करो, यही हमारा कहना है।

नर्मदा के भर बीच, आदिवासियों का श्रध्दास्थान रही वराता बावा टेकडी पर 182 मी. का पुतला खड़ा करना एक बात है। लेकिन पुतले के लिए सरदार सरोवर निगम से करोडों रू खर्चने वालों ने सार्वजनिक उद्योगों से लिया 200 करोड़ का चंदा देश के CAG (ऑडिटर) ने अवैध घोषित किया है। एक ओर विस्थापितों के पुनर्वास के लिए पैसा नहीं और दूसरी ओर पुतले से जोड़कर बिना मंजूरी,अध्ययन की उपभोगवादी पर्यटन योजना गलत है|जमीन पर, आदिवासियों पर, उनके प्राकृतिक संसाधनों पर संक्रात लायी जा रही है। यह कौन सा न्याय?

हम नर्मदा घाटी के लोग जानते हैं कि गुजरात के किसानों को, कच्छ के सूखाग्रस्तों को कम से कम लाभ दिया जा रहा है, जबकि अधिकांश पानी गुजरात की कंपनियों को सरदार सरोवर से और मध्य प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों के लिए नर्मदा लिंक परियोनाओं से दिया जा रहा है। नर्मदा से गंभीर,क्षिप्रा, पार्वती, कालीसिंध, मही और चंबल नदी भी कहां से भर सकती है शासन?

हम जानते हैं कि नर्मदा और पूरी घाटी के निवासियों के साथ खिलवाड़ हो रही है। अब नर्मदा कभी सूखा और कभी बाढ के चक्र में फंसायी गयी है। क्या अभी भी नर्मदा के नाम पर चुनाव लडे जाएगे? हम चुनावी राज चलाने नहीं देंगे। घाटी और नदी की बरबादी और राष्ट्रीय एकता की बुनियाद पर आदिवासियों सहित जन-जन का अधिकार और जीवन सुरक्षित रखेंगे। आज चिखल्दा, बगुद,खलघाट और महाराष्ट्र के सरदार सरोवर बांध के करीब के पहले गांव मणिबेली में यही कहा गया और संकल्प लिया गया।

आज नर्मदा घाटी में गुजरात में जबकि आदिवासियों ने संघर्ष किया और कुछ 100-150 कार्यकर्ताओं को (केवड़िया में, डेडियापाड़ा में, संखेड़ा में, राजपिपला में, जगह जगह) गिरफ्तार करके  मोदी सरकार ने उस पुतले का अनावरण आखिर कर ही दिया| तब भी नर्मदा की पूरी घाटी में ही नहीं देश में आज सरदार पटेल के नाम से क्या हो रहा है, उसकी खबर फैली हुई है| नर्मदा घाटी के मध्य प्रदेश के सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र के हिस्से में भी आज धार जिले के चिखल्दा में, बड़वानी जिले के बगुद में, और खरगोन जिले के खलघाट में, महाराष्ट्र के मणिबेली में नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर विस्थापितों ने आज सैकड़ो की संख्या में अपनी आवाज उठाई| चिखल्दा में जो लोग आए थे, वे चिखल्दा गाँव के (जहां पिछले साल कड़ा संघर्ष हुआ था) तथा कडमाल, खपरखेड़ा जैसे गाँव के भी थे| उन्होने सरदार पटेल जी को, उनके आजादी आंदोलन में योगदान को याद किया|

भागीरथ धनगर ने कहा की, सरदार ने किसानों को एकत्रित किया, उनके हित में हर एक बात उठाई और वो भी अंग्रेज़ो  की सरकार होते हुए, आज की सरकार हमारी है कहते है, लेकिन किसानों के पक्ष में नहीं है| उन्होने कहाँ की जिन 562 रियासतों को सरदार पटेल जी ने एक किया, वह एक राष्ट्रीय एकात्मता की बात हो गई, लेकिन आज राष्ट्रीय एकता विभाजित करने वाले लोग सत्ता में बैठे है, यह बहुत दुखद बात है| इसलिए नर्मदा बचाओ आंदोलन,महात्मा गांधी और बाबा साहब अंबेडकर जी व अन्य  तत्ववेदताओं के साथ-साथ सरदार पटेल जी के आदर्श को मानते है|यहाँ जात-पात, पंत, धर्म-भेद को हम नकारते है|और सरदार पटेल ने भी यही किया था|

वाहिद भाई मंसूरी ने कहा की नर्मदा बचाओ आंदोलन ने 33 साल से जिस नर्मदा को बचाने की बात की है, उस नर्मदा के भर बीच एक टेकरी पर इतना बड़ा पुतला हजारों करोड़ खर्च करके बांधने की क्या जरूरत थी? गुजरात के किसानों में आक्रोश है की, पानी क्यों नहीं मिल रहा है| विस्थापितों के पुनर्वास के लिए पैसा नहीं है सरकारे बोल रही है, और दूसरी बाजू यह पर्यटन का तमाशा क्यों?,उन्होने कहा की आज हिन्दू मुस्लिम एकता संपुष्ट में आ रही है, ऐसी स्थिति में सरदार पटेल को याद करना जरूरी भी है|

देवराम भाई कनेरा, विजय भाई सभी ने अपनी अपनी बात रखी है, और बैंगलोर से आए विधार्थियों ने आजादी आंदोलन का गीत सुनाकर सबकी प्रेरणा जगाई|

मेधा पाटकर जी ने कहा की सरदार पटेल जी के पुतले ने वही काम किया है जो उन्होंने आजादी आंदोलन में एक नेता के रूप में किया था| उनका विरोध था भ्रष्टाचार को, उनका विरोध था सांप्रदायिकता को; आज ये दोनों मुद्दे बहुत अहम मुद्दे है, और पुतला ही मानो पोलखोल का यह काम कर रहा है| इस पुतले के पैरो तले और नीचे आदिवासियों की जो जल जंगल जमीन है उसे बचाने के बदले उन आदिवासियों को विस्थापित कर के अभी तक उनका पुनर्वास नहीं हुआ है,और अब बड़ी पर्यटन की योजना जिसमें शॉपिंग मॉल, स्टार होटल्स, रेस्ट हाऊसेस, टेंट सिटी, बाजार आदि, तथा राज्य-राज्य के भवन आ रहे है मार्केट जैसा उससे और 72 आदिवासी गाँव प्रभावित होने जा रहे है|उन्होने अहिंसक आंदोलन किया तो उन्होने गिरफ्तारियाँ कल 30 तारीख से ले ली; यह सरकार को शोभा देने वाली बात नहीं है| आज सरदार पटेल जी को अगर याद करना है तो, इसलिए भी करना चाहिए की उन्होने एक अहिंसक सत्याग्रह, गांधी जी के विचारो के आधार पर ही, असहकार के आधार पर किया था, लेकिन आज अगर आंदोलन करते है गरबों के, किसानों के, मजदूरों के पक्ष में,तो दमनकारी रुख सरकारे अपनाती है| नर्मदा बचाओ आंदोलन के लोगो ने संकल्प लिया की वे आज की राजनीति नहीं, आज के राजनेताओं के नहीं, तो आजादी आंदोलन के नेताओं के ही कदमों पर कदम रखकर चलेंगे| आज की शासन के प्रतीक के रूप में एक पुतला मोदी जी के चेहरे के साथ बनाया गया थाजिसको आज नर्मदा में डुबोकर हम पुतले पर नहीं जीवित इंसान और इंसानियत पर विश्वास करते है; यह बात भी लोगो ने जताई|

ग्राम बगुद में भी इसी प्रकार का कार्यक्रम हुआ जहां राहुल यादव, बाला भाई, रेहमत मंसूरी, डॉ. विनोद यादव आदि ने भगु बहन और अन्य सभी बहनों के साथ मिलकर, सरदार पटेल जयंती पर राष्ट्रीय एकता की बात को उजागर किया और खलघाट में नर्मदा की घाटी के साथ साथ सेंचुरी मिल्स के श्रमिकों ने भी एकत्रित होकर उन्होने भी ‘कौन बनाता हिंदुस्तान? भारत का मजदूर किसान!’इस नारे के साथ और संकल्प के साथ आजादी आंदोलनकारियों के सपने जो आजादी आंदोलन में प्रतिबिम्बित हुए है, उसको दोहराये| कहा की आज समता, न्याय, स्वावलंबन, सर्वधर्म सदभाव,समाजवाद, के मूल्यों को ठुकराया जा रहा है, वही लोग अगर सरदार पटेल की जयंती मनाते है तो हम उन पर विश्वास नहीं कर सकते|

महाराष्ट्र के पहले गाँव मानिबेली में जो की बांध से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर है, महाराष्ट्र के आदिवासी भी मूल गांव के और वसाहट के एकत्रित हुए और समर्थन किया अपने आदिवासी भाइयों के बहनों के संघर्ष का|

महाराष्ट्र का भी पानी गुजरात को देने की साजिश मोदी शासन सत्ता में आने के बाद चली है,जिसे भी धिक्कारा है आदिवासियों ने, नर्मदा बचाओ आंदोलन ने| महाराष्ट्र के हिस्से का पानी जो नदी घाटी में ही रोककर सतपुड़ा में डूब क्षेत्र से लगत पर ऊंचे स्तर पर रहे गाँव और फलियों को देना था,उसी पानी को अब अन्य जगह मोड़ने के लिए डूब का नाम लेकर महाराष्ट्र ने आधा तापी की ओर मोड दिया और आधा गुजरात को दे दिया| महाराष्ट्र के विस्थापितों का पुनर्वास भी पूरा नहीं हुआ है|4000 परिवारों को करीबन जमीन तो दे दी गई है, लेकिन आज भी सैकड़ों बाकी है| और जमीन देने पर पुनर्वास स्थल पर सुविधा भी चाहिए, जिसका कार्य जारी है पूरा नहीं हुआ है, खेर मानिबेली जैसे मूल गाँव में कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होंने गुजरात में अपनी जमीन पसंद की तो भी उन्हें गुजरात में नहीं मिला है अभी तक पुनर्वास| और दोनों राज्यों के बीच में खेल जैसा, गेंद जैसा हर विस्थापित को खेला जाता है, जिसका हम सब धिक्कार करते है|

सभी जगह लोगों ने कहा की अगर सरदार पटेल के भक्त या शिष्य है तो, किसानों को सम्पूर्ण कर्ज मुक्ति, जिसमें खेत मजदूर, मछुआरे, पशुपालक, वनोपज पर जिने वाले आदिवासी भी शामिल है,और उनके हर प्राकृतिक उपज का लागत के डेढ़ गुना याने सही दाम देना जरूरी है|  नर्मदा घाटी के लोग भी 29 नवंबर को निकलकर 30 नवंबर को दिल्ली पहुचेंगे और इन दो मुद्दो पर देश में कानून लाने के लिए अपनी शक्ति जुटाएँगे|

वाहिद मंसूरीभागीरथ धनगरकालूराम यादवभागीराम भाईमुकेश भगोरियानूरजी वसावेचेतन साल्वे, पवन यादवसौरव राजपूत,  राहुल यादवमेधा पाटकर

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