सेंचुरी श्रमिक सत्याग्रह आंदोलन
ग्राम – संत्राटी, जिला – खरगोन, मध्यप्रदेश
प्रेस विज्ञप्ति | 29/3/2018
सेंचुरी व वेयरईट कम्पनीयों के खिलाफ अपराध प्रकरण दर्ज
सेंचुरी यार्न और डेनिम मिल्स के श्रमिकों का संघर्ष पिछले पांच महीनों से खरगोन जिले में ग्राम सत्राटी इंदौर मुंबई हाईवे के पास सत्याग्रह के रूप में जारी है |
कुमार मंगलम बिरला समूह की सेंचुरी यार्न/डेनिम मिल्स कलकत्ता की वेयरईट कम्पनी को बेचने की साजिश अब फर्जी साबित हो भी चुकी है किन्तु बिरला समूह सेंचुरी मिल्स के गेट्स खोलकर श्रमिकों को रोजगार का हक देना मना कर रहे है |
हकीकत यह है कि अगस्त 2017 से बिरला समूह ने दोनों सेंचुरी मिल्स बेचने का तय किया, तब से श्रमिकों ने उठाई आवाज उनको मजबूर करती गई और उन्होंने लिखीत मंजूर भी किया की मिल्स सुचारू रूप से चलाई जायेगी और अगर बिक्री या लीज पर देना हुआ तो श्रमिकों को VRS शासकीय नियमानुसार दिया जायेगा | लेकिन 5 ही दिन बाद 22 अगस्त को उन्होंने मिल्स बेचने का कारोबार बढाया और मजदूरों को मात्र एक ही आश्वासन दिया की नई वेयरईट ग्लोबल कम्पनी उन्हें रोजगार और तनख्वाह जारी रखने में सहायभूत होगी | बिक्री की यह बात नामंजूर करते हुए श्रमिकों का कहना रहा की वेयरईट ग्लोबल का इतिहास और आज भी खरगोन जिले में ही भीलगाँव गावं में चल रही उनकी कम्पनी वंहा के मजदूरों पर अत्याचार कर रही है और अंधाधुंध पद्धती से मजदूरों को निकालने का काम भी कर रही है | इसीलिए सेंचुरी के तहत काम करने के लिए तैयार श्रमिकों ने जब वेयरईट ने अक्टूबर में कब्ज़ा ले ही लिया तब सेंचुरी मिल्स के गेट के बाहर सत्याग्रह शुरू किया जो अहिंसक अनिश्चितकालीन आन्दोलन के रूप में आज तक जारी है |
विशेष बात यह है कि जब श्रम आयुक्त ने इस बिक्री की प्रक्रिया को गहराई से देखकर मजदूरों की मांग पहले मंजूर कर चुकी बिरला समूह को श्रमिकों का रोजगार जारी रखने के लिए हस्तक्षेप करना था तब भी श्रम आयुक्त ने अपने अधिकार के तहत भूमिका बजाने के बदले मात्र इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल यानि ओद्योगिक न्यायाधिकरण का आसरा लिया और कहा कि क्या VRS इन श्रमिकों को दिया जा सकता है या नहीं, इसपर न्यायाधिकरण फैसला दे |
दोनों कम्पनीयां भी न्यायाधिकरण के सामने अर्जी लगाकर मांग करती रही की श्रमिकों का काम बंद किया जाए, आन्दोलन अवैध ठहराया जाये इन दोनों मुद्दों पर न्यायाधिकरण ने यानि इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए कहा की मिल्स की बिक्री संदेहास्पद है जो की स्वभाविक था , क्योंकि नाहिं रजिस्ट्री हुई थी, नाहि सेंचुरी मिल्स ने स्टेम्प ड्यूटी का भुगतान किया था । 83 एकड़ जमीन के साथ बिल्डिंगस ओर मशीनरी समेत कूल 250 करोड़ की संपत्ति मात्र 2.5 करोड़ रुपये की बताकर बेचने का फर्जीवाड़ा इसमें शामिल है। मजदूरों को नहीं केवल, शासन को भी इस प्रकार फसाकर बिक्री हो गई है ।इस बात का दावा करने वाली सेंचुरी मिल्स की पोल खोल हो गई। और तो ओर क्योंकि श्रमिकों ने सेंचुरी मिल्स अपना कार्य चला रही थी तब तक अपना पसीना बहाया और जब वेयरईट ने इस अवैध प्रक्रिया में कब्ज़ा लिया तभी बाहर आकर सत्याग्रह शुरू किया | इस बात पर इस सत्याग्रह आन्दोलन को भी ट्रिब्यूनल ने जायज ठहराया । याचिका में पैरवी एड. आनंद मोहन माथुर, एड. अभिनव धानोतकर, एड.बी एल नागर, एड. प्रत्युष मिश्र ने की ।
इस बड़ी जीत के बाद लगातार और विशेषत: 10 दिसम्बर 2017- मानवअधिकार दिवस पर श्रमिकों ने कम्पनीयों के पास अर्जी व नोटिस चिपका कर जाहिर किया । कि वह कम्पनी सेंचुरी कम्पनी मिल्स के साथ काम करने के लिये हर्गिज तैयार है, लेकिन वेयरईट के साथ नहीं । जबकि इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ उसकी अवमानना करते हुए वेयरईट ग्लोबल कि पदाधिकारी CEO श्रीमति दीपाली प्लाव्त ने एक नोटिस ही गेट पर चिपकाकर जाहिर किया कि उन्हें इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल का फैसला अमान्य है। इस प्रकार के धृष्टता करने वाली कम्पनी मजदूरों का पक्ष कभी भी नहीं ले सकती इस बात की निश्चिती होकर सत्याग्रह जारी रहा |
दोनों कम्पनीयों ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में शरण लेकर अपनी याचिकाएं दाखिल करते हुए कहा की इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल का फैसला मौकूफ़ रखा जाये और रद्द भी किया जाये | उच्च न्यायालय ने उनकी मांग नामंजूर करते हुए आज तक कोई स्टे आर्डर नहीं दी लेकिन उनकी याचिकाओं पर सुनवाई फरवरी 7, 2018 के रोज तक पूरी होने के बावजूद आज तक उच्च न्यायालय के आदेश की राह देखते हुए श्रमिकों ने अपना सत्याग्रह जारी रखा ।
इस पूरी हकीकत से साबित हुआ है की मध्यप्रदेश शासन और उनके नुमाइन्दे श्रम आयुक्त काफी हद तक कमजोर भूमिका लेकर श्रमिकों के पक्ष में जो हस्तक्षेप जरूरी और जायज होता उसमें टालमटोल करती रही | श्रमिकों का इंदौर में श्रम आयुक्त कार्यालय पर चला क्रमिक अनशन और आंदोलन इस बात पर आखिर उन्हें मजबूर करता ही रहा कि वे नोटिस देकर बिरला समूह के मुंबई के अधिकारीयों को इंदौर बुलाकर आदेश दे कि जब सेंचुरी के साथ काम करने के आठ दिन के कार्यकाल की भी तनखवाह नहीं दी गई है तो वह तत्काल दी जाये| अन्य करीबन 160 दिनों की तनख्वाह कि मांग पर अभी तक श्रम आयुक्त ने दोनों पक्षों की सुनवाई और निर्णय देना बाकी है। यह देरी और दिंरगाई निश्चित ही अन्यायकारक है|
लेकिन 8 दिन की तनखवाह भी देने के लिये वेयरईट ग्लोबल या सेंचुरी मिल्स तैयार नहीं है यह बात भी साबित हो चुकी है और अनिल दुबे जी जो कि पहले सेंचुरी के और अब वेयरईट ग्लोबल के मेनेजर बन गए हैं उन्होंने यह राशी कानून के खिलाफ जाकर श्रम कल्याण मंडल में डिपोजीट की जिससे भी केवल देरी के साजिश की स्थिती में श्रम आयुक्त से (उनके ही आदेश की अवमानना का दावा करते हुए)श्रमिकों की और से एटक के महामंत्री मोहन निमजे जी के द्वारा अनिल दुबे, प्रबंधक वेयरईट ग्लोबल एवम भूतपूर्व प्रबन्धक सेंचुरी मिल्स के खिलाफ फौजदारी अपराध प्रकरण दाखिल करने की मंजूरी ली गई | सेंचुरी श्रमिकों के साथ आज तक एटक,मध्यप्रदेश इंटक, मध्यप्रदेश सेंचुरी कामगार एकता, और भारतीय मजदूर संघ चारों यूनियनस के अधिकारी साथ सहयोग में रहे है और श्रमिकों ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन को भी जोड़कर उसके तहत संघर्ष जारी रखा है | एटक के मोहन निमजे जी ने कल 28 मार्च को ही चीफ ज्युडीशियल मजिस्ट्रेट के खरगोन जिले के कोर्ट में अब कम्पनीयों पर के खिलाफ सेंचुरी मिल्स और वेयरईट ग्लोबल के खिलाफ अपराध प्रकरण दर्ज किया है | ओध्योगिक विवाद अधिनियम के धारा 18 का उलंघन और धारा 29 के तहत आरोपित प्रकरण दर्ज करने से संघर्ष का एक नया दौर शुरू हो चुका है |
सेंचुरी के श्रमिकों की यह लड़ाई केवल उनके अपने हित में नहीं बल्कि तमाम श्रमिकों के रोजगार और किसी भी कम्पनी से अनुबन्धों की तथा श्रम आयुक्त एवं औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसलों का पालन के पक्ष में है | आज मध्यप्रदेश में पिथमपुर जैसे औधोगिक क्षेत्र में और अन्यथा भी कम्पनीयों की मनमानी भुगत रहे श्रमिक इस आन्दोलन के साथ है | यह कहना भी जरुरी है कि राज्य शासन कम्पनीयों एवं कार्पोरेट्स का साथ अधिकतर लेते हुए ऐसे संघर्षों को सुलझाव की दिशा में ले जाने में अक्षम, असमर्थ एवं राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव प्रगट कर चुकी है इसीलिए सेंचुरी मिल्स के श्रमिकों का यह संघर्ष आगे बढता रहेगा और हम लोग आज भी उच्च न्यायालय से तथा औद्योगिक न्यायालय से यह अपेक्षा करते रहेंगे कि वह केवल फैसला न करें किन्तु न्याय दिला दे|
सेंचुरी के श्रमिकों को अब एक निर्माण का रास्ता भी अपनाना पड़ा है । महिलाओं के द्वारा सिलाई, पापड़ उद्योग से रोजगार से कमाई तथा बच्चों की पढाई एवम भोजन एवम सहभोजन सत्याग्रह पर शुरू हो चुका हैं| जितेन्द्र धनगर मात्र 27 साल की उम्र में ही आर्थिक तंगी के कारण संघर्ष में सहभागी होते हुए भी आत्महत्या कर चूका है तब उसके शव यात्रा में श्रमिकों के शामिल न होने देते पुलिसों ने महिलाओं पर लाठीचार्ज करना उनके साथ अभद्र व्यक्तव्य का व्यवहार करना तथा मेधा पाटकर….सहित कई श्रमिकों के खिलाफ हाईवे चक्काजाम का झूठा आरोप पत्र लगाना इस बात की गवाह है कि, शासन श्रमिकों के अहिंसक आन्दोलन के सामने भी आत्महत्या के बावजूद, शव यात्रा के वक्त भी सामने नहीं आती है बल्कि कम्पनीयों के पदाधिकारीयों के उनके कर्तव्य से भी परे रहने में भी मददरूप होती है।
इस परिस्थिति में कम्पनीयों से और शासन से भी संघर्ष करे बिना श्रमिक चूप नहीं बैठ सकते अन्यथा कम्पनीयों ओर श्रमिकों के बीच की दूरी बढ़ती जायेगी और शासन – कम्पनीयों का गठजोड़ अधिक प्रबल होगा । इस बात की समझ के साथ आन्दोलन चाहता है कि समाज और विविध जन संगठन उसे समर्थन दे।
जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के विविध राज्यों के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस संघर्ष को अपना समर्थन घोषित करते हुए कहा है, कि अगर न्याय न मिले तो वे भी इस संघर्ष में उतर आएंगे | समर्थकों में प्रमुख है अरुणा रॉय, मजदूर किसान शक्ति संगठन; प्रफुल सामंतरा, उड़ीसा अन्त राष्ट्रीय पर्यावरणवादी;गेब्रीयला, स्त्रीवादी लेखिका, तमिलनाडू; प्रो.कुसुमम जोसेफ,केरला;अखिल गोगोई, असाम; डॉ. सुनिलम, किसान संघर्ष समिति, मध्यप्रदेश और अन्य|
मोहन निमजे रूपसिंह चौहान राजकुमार दुबे मेधा पाटकर
(महामंत्री) एटक, मध्यप्रदेश प्रदेश अध्यक्ष ,एटक सेंचुरी श्रमिक नबआं/जआंरास
प्रेमशंकर मिश्रा रीटा भाटी, नीतू भट्ट शांतिलाल खेडेकर
सेंचुरी कामदार एकता सेंचुरी श्रमिक परिवार इंटक,म.प्र.
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