जलसंकट: डूब का या सूखे का? निमाड को उजाडकर लाभ भी नहीं।
बड़वानी, 28 मार्च 2018 – सरदार सरोवर बांध परियोजना में मध्यप्रदेश की 22,822 हेक्टर्स जमीन, जिसमें 7883 हेक्टर्स उपजाऊ खेती जमीन सम्मिलित है, जो भी डूबनी निश्चित है। शासन ने 15946 परिवारों के घर, आधे अधूरे भू-अर्जन के बाद डूब से बाहर कर दिये हैं तो भी 32,679 परिवारों का स्थलांतर देश और दुनिया में एक अभूत मात्रा का विस्थपन है। यहां मात्र 38 गांवो के सर्वेक्षण से देखा गया कि निमाड़ के 140 मैदानी गावों में अंदाजन 3.5 लाख पेड़ खडे है तो मवेशियों की संख्या भी 3.5 लाख हैं। मंदिरों की संख्या सैकडों में हैं जो कि 10 वीं और 12 वीं सदी के होते हुए भी इन्हें पुरातत्व शास्त्रीय सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है। इस बांध पर खर्च किये गये कुल 55631 करोड रू. शासकीय अहवाल बताते हैं, प्रत्यक्ष में इसके अलावा 9754 करोड रू. केन्द्रीय सरकार से अन्य मद में (Accelerated Irrigation Benefit Programme) प्राप्त हुए है। इस लागत में आज तक म.प्र. के करीबन 6000 करोड रू. खर्च हुए लेकिन नर्मदा घाटी की समृद्धि और संस्कृति का एक बड़े हिस्से की इसमें आहुति दी जाने की बात है, जो कि अमूल्य है।
प्रत्यक्ष में इस परियोजना से इतनी बड़ी कीमत चुकाकर भी मध्यप्रदेश को न अपेक्षित लाभ प्राप्त हो रहे हैं, न ही परिवारों को पुनर्वास या पर्यावरणीय हानिपूर्ति का कार्य संपन्न हुआ है। मात्र झूठे दावे और झूठे आकड़ों का खेल मध्यप्रदेश शासन और केन्द्रीय नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने आज तक जारी रखा है।
मार्च 2017 तक के वार्षिक रिपोर्ट में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने पुनर्वास और पर्यावरण के तमाम कार्य पूरे होने का दावा किया जबकि जून 2017 से अगस्त 2017 तक 900 करोड के पैकेज म.प्र. शासन ने, जनसंघर्ष चोटी पर पहुंचते ही घोषित किये, और सर्वोच्च अदालत के 8 फरवरी 2017 के आदेश से 5 एकड़ जमीन प्राप्ति के बदले नगद राशि न लिये परिवारों को 60 लाख और फर्जीवाडे में दलाल अधिकारियों से फंसाये सभी परिवारों को 15 लाख रू. का अनुदान मिलने का आदेश हुआ।
आज तक 734 परिवारों को 60 लाख रू प्राप्त होने पर भी सैकडो परिवार बाकी है जिनमें सर्वोच्च अदालत में प्रथम याचिकाकर्ता कैलाश अवास्या का परिवार भी शामिल है। शासन के ही अनुसार 1358 परिवारों के बदले मात्र 993 परिवारों को 15 लाख रू. दिये गये है।
नये पैकेज से 5.80 लाख रू. देने का वायदा था, जिसमें सूचियों की धांधली इतनी है कि कितने पात्रता होकर बाकी है यह भी कहना मुश्किल।
हर राशि आबंटन में अपात्र परिवारों को बंदरबाट का फायदा दिया जाने की पोलखोल हुई है।
पुनर्वास स्थल पर सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश, सर्वोच्च अदालत ने, फिर उच्च न्यायालय ने 28/11/2017 के रोज शिकायत निवारण प्राधिकरण ने भी दिया किन्तु आज तक उसका 1 प्रतिशत भी पालन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने नहीं किया है। 31/12/2017 तक चरागाह, 31/1/2018 तक समतलीकरण और 31/03/2018 तक मकान के लिए दिये भूखण्डों का पटटा आबंटित हुआ है। 31/04/2018 तक हर वसाहट में जल आपूर्ति, नर्मदा नदी से पानी लाकर देने से करने का आदेश है जबकि नर्मदा घाटी ही अब सूखे का जलसंकट भुगत रही है। हजारो परिवारों का स्थलांतर क्यों और कैसे? यह सवाल इस बारिश में भी खड़ा होना ही है। जवाब तो शासन को ही देना पडेगा।
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के तमाम अहेवाल जलग्रहण क्षेत्र विकास, डूब में आए जंगल और पेडों की तीन गुना भरपाई तथा भूकंप मापन से निगरानी, मंदिरों का पुनर्वास आधी सभी मुददों पर 100 प्रतिशत कार्यपूर्ति बताते हुए, धरातल की स्थिति तो स्पष्ट है कि दावे झूठे है। जबकि कुछ साल पहले से ही डूब क्षेत्र के पेड काटे जाने की और मंदिरों का स्थलांतर हो जाने की घोषणा हो चुकी है तो अब इन कार्यो के लिए टेंडर क्यों पारित किये जा रहे है?
इसके बावजूद आज सबसे गंभीर संकट खडा है, नर्मदा नदी लुप्त होने का। ऊपरी क्षेत्र से कंपनियों व शहरों के लिए लाखों लीटर्स पानी उठाने की योजनाओं के अलावा नयी लिंक परियोजनाएं अब नर्मदा की धारा को मोड़कर निमाड को सूखा छोडने जा रही है। मालवा के 70 शहर और 3000 गावों को नर्मदा से जल आपूर्ति की घोषणा हो चुकी है। शिप्रा, गंभीर, काली सिंधु, माही और पार्वती नदी से नर्मदा को जोड़ना मात्र एक ‘‘ वोट बंटोरने के लिए पानी बंटोरने ‘‘ की बात है। निमाड और मालवा के बीच युद्ध खड़ा करके अंततः मालवा के किसान, गाँव वासियों को भी फंसायेगी म.प्र. शासन।
सरदार सरोवर बांध परियोजना के लाभ गुजरात को भी, ‘‘ लोकार्पण ‘‘ के बावजूद 18 लाख हेक्टर्स के बदले मात्र 6 लाख हेक्टर सिंचाई तक बताये जा रहे है जबकि 3 लाख हेक्टर से अधिक प्राप्त नहीं हुई है। बिजली घर बंद पडा है तो मध्यप्रदेश को 2.05 रू प्रति युनिट के दाम पर भी हर साल अपेक्षित मात्रा से 50 प्रतिशत से भी कम बिजली प्राप्त होने की जानकारी अधिकृत रेकॉर्ड बताते है। गुजरात में किसानों को, उद्योगों को तथा शहरों को पानी नहीं देने की घोषणा मुख्यमंत्री को इस साल करनी पडी और बांध के नीचेवास की नदी सूखकर समुंदर 60 कि.मी. अंदर घुस आयी है।
सरदार सरोवर बांध क्या ‘‘ सफल संपूर्ण ‘‘ गिना जाएगा?
हरेसिंह दरबार राहुल यादव मुकेश भगोरिया मेधा पाटकर
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