केरल का संकट नर्मदा घाटी के बांधों पर भी चेतावनी!

प्रेस विज्ञप्ति: 2 सितम्बर 2018: केरल में बड़ी बारिश के बाद करीबन् 35 बांधों के जलाशयों से पानी छोडना पड़ा और राज्य के 14 जिलों में से 12 जिलों के कई इलाके कुल 20 लाख लोग प्रभावित हो गये। हजारों घर का सामान, हजारों परिवारों की खेती-बाड़ी, जीविका के अन्य साधन इत्यादि बरबाद होने पर हाःहाकर मचा और आज तक न केवल निजी बल्कि सार्वजनिक संपत्ति का भी 50000 करोड रू. तक अनुमानित नुकसान की भरपाई और नवनिर्माण काफी संकटमय दिखाई दे रहा है।

केरल शासन तथा केरलीय समाज ने मिलकर और देशभर के सहयोगी-स्वयंसेवक तथा दाजा एवम् विदेश के (जैसे अरब देश से) शासकों और जनता से प्राप्त सहायता के साथ जो राहत कार्य चला उसकी प्रशंसा तो हो चुकी है। वहां की शालाएं महाविद्यालय शासकीय से सामाजिक धार्मिक संरचनाओं में समाकर परिवारों की बुनियादी जरूरतपूर्ति का कार्य निश्चित ही सराहनीय था। नर्मदा घाटी से सेंचुरी मिल्स के श्रमिकों का समूह तथा जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुडे सल्साबिल शाला, लोहिया विचारवेदी, भारतपुडा नदी सुरक्षा संगठन, खुदाई खिदमतगार आदि कई संगठनों से मकान सफाई से लेकर इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर आदि के तकनीकी कार्य जारी है। एर्नाक्युलम, त्रिशूर अलुवा, अलापुडा, वायनांड आदि जिलों में किसान, श्रमिक, दलित, आदिवासी आदि समुदायों तक पहुंचकर राहत शिविरों से लौटकर घर आ रहे परिवारों को हर सहायता के साथ विस्तृत सर्वेक्षण के द्वारा पुनर्वास नियोजन के लिए जानकारी इकट्ठी करने तक हर कार्य इसमें शामिल है।

बाढ और बांध:- जिम्मेदारी जवाब देहिता और सीख

 

केरल के इस भयावह संकट ने फिर एक बार बांध और बाढ के बीच संबंधों को राष्ट्रीय मंच पर विवाद के मुददे के रूप में लाया है। उत्तराखण्ड की त्रासदी और मौत के घाट उतरे लोगों के बाद परियोजनाओं को उसके लिए दोषी मानकर सुप्रीम कोर्ट ने ही रोक लगायी थी। केरल में पेरियार से शुरू होकर मीनाचिलार, मनीमलायार, पाम्बा, अचनकोविल आदि नदियों तक एकेक बांध के जलाशय से नियमित पानी की निकास न करते हुए बिजली उत्पादन के लिए अधिकतर बडी बारिश आने तक जलाशय भरे रखे गये।

लेकिन जब 1924 से बरसा था उतना 3000 मि.मी तक का पानी कुछ जगह और उससे कम अन्य जगहों पर बरस गया तब उसे समाना इडुक्की जैसे जलाशय में भी संभव नहीं था। मूल्ल पेरियार जैसे आंतरराज्य बांध की हकीकत और अलग रही। तमिलनाडू राज्य ने अपने विकेद्रित साढो में पानी एकत्रित करने की तैयारी न दिखाने से142 फीट तक पानी उस जलाशय में भी रखा गया | स्थानीय लोगों की, कई जनसंगठनों, जनवादी विशेषज्ञों की136 फीट तक ही 100 साल पुराने इस बांध में पानी भरा जाय, यह सुयोग्य, संतुलित मांग भी ठुकरायी गयी। यह हकीकत उत्तराखंड ही नहीं, गुजरात के उकई जैसे बांध में आयी बाढ और सुरत शहर की डूब के पीछे का कारण भी बनी रही। बांधों का सिलसिला (series) खडा करना आसान हो सकेगा लेकिन बडी नदियों, बडे प्रवाह, बडी बारिश इत्यादि के संदर्भ में आंतर बांध जलनिकास, जलनियोजन तथा लाभों की निगरानी और पूर्तता के साथ,बिना पुनर्वास विस्थापन न होने देने की जिम्मेदारी निभाना सालोसाल कठिन साबित हो रहा है।

बांधों का ही क्या, नदियों की प्राकृतिक व्यवस्था का अभ्यास, नदी के प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संविधान का सम्मान करना है तो आज जलसंसाधन व जल नियोजन संबधी कार्य में स्पष्ट दिखाई दी खामिया उजागर करना, समझाना खत्म करना जरूरी है।

केरल के अनुभव से नर्मदा की हकीकत को जोडना तत्काल करे तो ही समझेंगे नर्मदा पर मंडराते गहरे बादल कितने काले है? इस बात की चेतावनी केन्दीय मंत्रालय के पृथ्वीशास्त्र विभाग (earth science department) के सचिव श्री माधवन नैयर राजीवन ने स्वयं रविवार के इंडियन अेक्स्प्रेस में छपे उनके आलेख द्वारा दी है। नदी के संभाव्य बाढ क्षेत्र में केरल इतने नहीं, तो भी नर्मदा में भी निर्माण कार्य बढे हैं। जलग्रहण क्षेत्र उपचार से गाद जलाशय में न भर उससे बाढ की स्थिति में भी जलस्तर का नियमन हो पाये, इस दिशा में कार्य न होते हुए अवैध रेत खनन मरसक जारी रखा गया है, जो न केवल उच्च न्यायालय के, हरित न्यायाधिकरण बल्कि सर्वोच्च अदालत के आदेशों का और नदी सुरक्षा के लिए अहम् प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन है।

बांधों की श्रंखला में पानी रोकने छोडने की परिपूर्ण योजना न हि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पास, ना नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण से कोई वैज्ञानिक कार्यभाग संभाला जा रहा है। पर्यावरण और पुनर्वास के प्रमुख सदस्य,ननिप्रा श्री अफरोज एहमद को ही सिविल विभाग के प्राधिकरण के सदस्य याने प्रमुख अधिकारी बनाना इस खेल को उजागर करने वाली घटना है।

बडे बांधों के गेट्स खोलना कब, स्तर कितना रखना है, और जलाशय ना सूखे पडे न बाढ से बरबार्दी लाये,इस प्रकार से जलनियोजन करने के बदले नर्मदा का पानी अन्य नदियों में पहुचाने की नयी नयी लिंक परियोजना आगे धकेलकर सूखा और बाढ के चक्र को और गंभीर रूप देने का कार्य मध्यप्रदेश, केन्द्र शासन से खुली छूट लेकर कर रही है, यह विशेष।

नर्मदा घाटी के एकेक बांध के डूब क्षेत्र के माने गये लोग ही नहीं, नर्मदा पर निर्भर हर समुदाय, खेतीहर,मछुआरे, केवट, कारीगर भी इस प्रकार से नदी के साथ खिलवाड को भुगतेंगे, तब काफी देर हो चुकी होगी।

संजय चैहान, सुखवीन्दरसिंह, श्याम भदाने, राहुल यादव, जगदीश पटेल, मेधा पाटकर

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