नर्मदा जीवनशालाओं के 25 वर्ष हुए पुरे, 25 मोमबत्तिया जला कर किया बालमेला का उद्घाटन
9 जीवनशालाओं से आये बच्चों ने बड़े उत्साह के साथ लिया खेलकूद, नृत्य,
नाट्य, निबंध जैसी प्रतियोगताओं में भाग!
प्रेस विज्ञप्ति: 16 फरवरी 2017, जावदेवाडी, नंदुरबार: बालमेला का पहला दिन, देशभर से आये अतिथियों और 9 जीवनशालाओं के 700 से अधिक बच्चों ने ढ़ोल और ताशों के साथ निकाली रैली, अपने स्कूलों के झंडे फेहराये और अतिथियों ने 25 मोमबत्तियां जला कर, महाराष्ट्र के शहादा तहसील के (जिला नंदुरबार) जावदेवाडी पुनर्वसाहट में ने किया बालमेला उद्घाटन| उद्घाटन समारोह में उपस्थित अतिथि थे छत्तीसगढ़ के गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और वीणा बहन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर, व्ही.जे.टी.आई इंजीनियरिंग कॉलेज, मुंबई के डीन रहे उर्जा विशेषज्ञ प्रा. संजय मं.गो., सुनीति ताई व साथी, हिमशी सिंह, जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मीना नाईक, बच्चों की नाट्य तथा कठपुतली कलाकार, मुंबई, दिल्ली से अस्वथी बहन व अन्य फिल्मकार ‘चलती तस्वीरें’ लेकर तथा हनीफ भाई व साथी कलाकार मुम्बई की ‘फिल्मसिटी’ से, पूर्व खेलमंत्री पद्माकर वलवी, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, मध्यप्रदेश के आन्दोलनकारी तथा अन्य स्थानीय नेता व जनप्रतिनिधीयों |
नर्मदा घाटी में चल रही जीवनशालाओं से पिछले 25 सालों से 6000 से अधिक आदिवासी बच्चों को शिक्षा मिली है| नर्मदा बचाओ आन्दोलन के इस नव निर्माण के कार्य को कई पुरस्कार प्राप्त हुए है | जीवनशालाओं से निकले कई बच्चे क्रीडा में प्रवीण हो कर सुवर्णपदक व अन्य पदके हासिल कर पाए हैं | जीवनशालाओं से निकले बच्चे अब पदवीधर, उच्च पदवीधर वैसे ही आदिवासी शिक्षक व कार्यकर्ता बन चुके हैं | आज तक शासन से मात्र बिना अनुदान मान्यता ही दी गयी है, तो भी समाज के शिक्षाप्रिय, विचारशील उदार नागरिक, समूह संस्था और घाटी के किसनों के योगदान से यह कार्य जारी रहा है, रहा|
हर साल, बालमेला का इंतज़ार न सिर्फ जीवनशालाओं के बच्चों को ही बल्कि उनके परिवार, अध्यापकों व जीवनशालाओं से जुड़े सभी लोगों को, बड़ी बेसबरी से रहता है | इसका आयोजन सिर्फ इन जीवनशालाओं के अध्यापक ही नहीं करते बल्कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़े गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के सभी सरदार सरोवर डूब प्रभावित परिवार, संसाधनों के द्वारा या व्यक्तिगत तौर पर मदद करते हैं और इससे जुड़ते हैं| इस बार निमाड़, मध्यप्रदेश के किसानों ने बालमेला के लिए गेहूं और मक्का का सहयोग दिया तो जावदेवाडी पूनर्वसाहट के आदिवासियों ने हज़ार से अधिक लोगों का अपने घरों में स्वागत किया | बालमेला, बच्चों, अध्यापकों, उनके परिवारों और इससे जुड़े समर्थकों के लिए मात्र एक प्रतियोगिता समारोह नही बल्कि एक आदिवासी संघर्ष, एकता और हिम्मत का स्वरुप है| इन प्रतियोगिताओं का आयोजन हार-जीत के मकसद से नहीं किया जाता बल्कि सभी को एक जगह पर लाकर अपने हुनर और कला को सबके साथ बांटने, दूसरों से सीखने और आगे बढ़ने के लिए किया जाता है|
स्वर्णपदक व अन्य कई पदक हासिल करने वाले धनखेडी गाँव के भीम सिंग वसावे जी ने इस क्रीडा प्रतियोगिता के लिए चुने गए आदिवासी विद्यार्थियों को जीवनशालाओं से प्राप्त हुई शिक्षा, स्वाभिमान और मेहनत से अधिकार लेने की दिशा के बारे में बताया| आज तक हर स्तर पर पाए पुरुस्कारों के सम्बन्धी कहते हुए उन्होंने क्रीडा के द्वारा आगे बढ़ने का संकल्प व्यक्त किया! भीम सिंग ने अपनी पढाई जीवनशाला से की है | उनके जैसे करीबन 50 पूर्व विद्यार्थी बालमेला में शामिल हुए|
संजय मं.गो जी ने बच्चो के साथ ‘साथियों सलाम है’ नामक गीत लिया तो मीना ताई नाईक, नाट्य तथा कठपुतली कलाकार ने कहा कि मै आप लोगों तक अपनी कला को पहुंचना चाहती हूँ| उन्होंने बच्चों के साथ बैठ कर उन्हें कठपुतली बनाना भी सिखाया |
छत्तीसगढ़ के हिमांशु कुमार जी ने बहुत दूर से, वीणा बहन के साथ पधार कर कहा कि हमारे देश के विकास का मोडल हिंसा और गैर बराबरी आधारित है| गांधी जी ने कहा था, जिसके पास पूंजी और साधन होंगे, उन्हें ही विकसित माना जाता है, यह गलत है| आदिवासियों ने ही हमले होते हुए भी अपन जंगल, ज़मीन नदी पहाड़ बचाया है| बालकों की इस दुनिया में आ कर मै खुश हूँ!
मेधा पाटकर जी ने बालमेला के 20 वर्ष पुरे होने पर उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा की हमारी जीवनशालाये गाँव के लोग ही चलाते हैं और हमारा मन्ना है कि यह अधिकार, की हमारी शिक्षा किस प्रकार की हो, उसका स्वरुप क्या हो, उस निर्णय में गाँव के लोगों की ही भागीदारी होनी चाहिए | नर्मदा बचाओ आन्दोलन, मध्यप्रदेश से आये निमाड़ के किसानों द्वारा, मेधा पाटकर जी की स्वर्गीय माँ, श्रीमती इंदु ताई की स्मृति के नाम पर कुक्षी जिले में दसवीं जीवनशाला शुरू की जाएगी, जो की वो नायका समाज के बच्चों के लिए होगी| साथ ही उन्होंने यह भी कहा की जीवनशालाओं के बच्चो के लिए, जो जिला और राज्य स्तर पर स्वर्णपदक व अन्य कई पदक हासिल करते आये हैं, एक क्रीडा संकुल की शुरआत की जाएगी|
पूर्व क्रीडामंत्री पद्माकर वलवी जी ने कहा, जीवनशाला नर्मदा आन्दोलन की पहचान है| यही आदिवासियों का भविष्य उजागर करने का रास्ता है|
जीवनशाला के सुखलाल गुरूजी ने जीवनशाला का इतिहास बयान हुए कहा की सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए बनाई गयी शालाएं हमारे बच्चों को सिखा नहीं पाई लेकिन जीवनशालाओं से हमारी कई पीढियाँ शिक्षित हुई हैं, और यही हमारी विशेषता है| हम अपने बच्चों को पढाई के साथ साथ जीवन का दर्शन भी करते हैं और यही जिवनशाला का महत्त्व है| उन्होंने कहा कि नर्मदा बचाओं आन्दोलन से जुड़े हमारे पूर्वजों ने हमें भी अधिकारों की लडाई में आगे रहना सिखाया है|
शासन पर निर्भर न रहकर, जन सहयोग के आधार पर जीवनशालाओं को चलाने की बात रखते हुए, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, महाराष्ट्र के कार्यकर्ता लतिका राजपूत और चेतन सालवे ने देश के लोगों को वर्त्तमान में चल रहीं नर्मदा जीवनशालाओं को प्रोत्साहन और समर्थन देने की बात रखी|
आज कबड्डी, खोखो, तीरकमठा, आदि के साथं वक्तृत्व, निबंध, चित्रकला के आयोजन के साथ कई स्टाल भी लगाये गए | आज बालमेला का पहला दिन, सभी प्रतियोगिताओं में बच्चों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया | खोखो की छोटी लड़कियों की प्रतियोगिता में भारी भीड़ उमड़ी और ढोल ताशों का बजना भी बंद नहीं हुआ| रोज़ शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और बच्चों से जुडी कुछ फ़िल्में दिकाई जाएँगी | आज शुरू हुए बालमेला का अंतिम समारोह 18 फरवरी को शाम 5 बजे जावदेवाडी, नंदुरबार में होगा| इस बार का बालमेला भी जीवनशालाओं में पढ़ रहे बच्चों के लिए, जीवनशाला के नारे ‘ जीवनशाला की क्या है बात, लडाई पढाई साथ साथ’ की तरफ बढ़ने का एक और कदम साबित होगी, यही कोशिश रही है जीवनशालाओं और नर्मदा नव निर्माण अभियान की!
योगिनी, विजय, तुकाराम, ओर सिंग
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