बड़वानी, मध्य प्रदेश | 14 अगस्त, 2017 : मेधा पाटकर व 11 विस्थापितों द्वारा किये लगातार 17 दिन अनिश्चितकालीन उपवास, और 10 साथियों द्वारा किये 5 दिन का अनिश्चितकालीन उपवास जब 12 अगस्त को समाप्त हुआ तो उस समय 7 अगस्त के दिन हुए पुलिस की बर्बर आक्रामक कार्यवाही जिसमें करीब 3000 की संख्या में पुलिस बल द्वारा चिखल्दा में चल रहे अनशन के पंडाल में तोड़ फोड़ की, लोगों पर कील लगे डंडे बरसाए, और महिलाओं, युवाओं और अन्य साथियों के साथ मारपीट करने के बाद, पुलिस वालों ने ही 55 लोगों और 2500 अज्ञात लोगों पर हिंसा और अन्य मामलों में प्रकरण दर्ज कर दिए।
आज मेधा पाटकर, धुरजी भाई, विजय भाई, सनटू भाई को पांच दिन हो चुके है जेल में बंद हुए, सभी प्रकरण झूठे और बेबुनियाद रूप से लगाये गए है ताकि नर्मदा घाटी में 40000 परिवारों के गैर कानूनी और अन्यायपूर्ण डूब और जबरन बेदखली के खिलाफ चल रहे आन्दोलन को कुचला जा सके। पुलिस वाहन दिन रात गाँव गाँव घूमकर लोगों के मन में डर पैदा कर रहे हैं और अपने हक के लिए मजबूती से खड़े लोगों को निशाना बना रही है। संकलित जानकारी के अनुसार, बड़वानी में कुल 9 प्रकरणों में 72 लोगों के ऊपर FIR दर्ज हुए है और कुक्षी, जिला धार में कुल 12 प्रकरणों में 94 लोगों पर FIR दर्ज हुए है। इनमें कई गंभीर आरोप और गैर जमानती भी है। जहाँ विस्थापित अपने अधिकारों के लिए सरकार के मौन से संघर्ष कर रहे है तो दूसरी तरफ पुलिस कई अन्य सक्रिय कार्यकर्ता और विस्थापितों को नामजद करने में व्यस्त है।
आज जब पूरी दुनिया नर्मदा बचाओ आन्दोलन के अहिंसक और सत्याग्रही मार्ग पर चलते आये 32 सालों के संघर्ष की मिशाल देता है तब मध्य प्रदेश की पुलिस, सरकार के इशारे पर मेधा पाटकर, इनके साथियों और विस्थापितों पर धारा 307 लगाकर ह्त्या करने जैसे इरादे की आशंका का आरोप लगा रही है। जो बेहद शर्मनाक है और सरकार की नाकामियों को छिपाने के लिए पुलिस द्वारा किया गया घोर निंदनीय करतूत है। पुलिस को जनता की रक्षा और कानून व्यवस्था बनाने के लिए कार्यरत होना चाहिए ना कि लोगों के हक के लिए संघर्ष कर रहे साथियों पर दमन करने के लिए। यह सरकार का पुराना रवैया रहा है जिसमें उन्होंने देश भर में अलग अलग आंदोलनों की लोकतांत्रिक आवाज़ को दबाने के लिए ऐसे हथकंडे का सहारा लिया है।
ऐसी परिस्थिति में सरकार की भूमिका और पुलिस का कानून को जनता की रक्षा ना करने के बजाये उन्हें मजबूर और उनके जनहक की आवाज को दबाने के लिए किये जा रहे प्रयास का नर्मदा बचाओ आन्दोलन मजबूती से निंदा करती है और फिर से बताना चाहती है कि नर्मदा घाटी में हिंसक आन्दोलनकारी नहीं, पुलिस बल हो रही है और दूसरी तरफ मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और केंद्र सरकार बिना सम्पूर्ण और न्यायपूर्ण पुनर्वास के बाँध के गेट्स बंद कर, झूठे विकास के नाम पर लाखों लोगों के खिलाफ हिंसक हो रही है।
कल स्वंतंत्रता दिवस पर हम सभी देशवाशियों को संघर्ष और आज़ादी की शुभकामनायें देते है, लेकिन क्या ऐसी आज़ादी नर्मदा घाटी के लोगों, जेल में झूठे प्रकरणों में फ़साये अहिंसक आन्दोलन के प्रतिनिधि मेधा पाटकर व तीन अन्य साथी के लिए नहीं है? क्या जनहक की बात करने से हमारी आजादी ख़त्म हो जाती है? क्या आज़ाद रहने के लिए देश में चुपचाप सरकारी दमन सहने का फरमान जारी हो चुका है? ऐसे ही कुछ अनसुलझे सवाल, नर्मदा घाटी में संकट की स्थिति में रह रहे लाखों विस्थापित, देशवासियों और आज़ाद लोगों से पूछना चाहते है। जब विकास के नाम पर विस्थापित हो रहे हैं इस देश के लाखों लोग तो ऐसी आज़ादी पर बोलो गर्व क्या कर पायेंगे?
ऐसा सही ही कहा गया है, जब अन्याय कानून बन जाए, तो संघर्ष कर्तव्य बन जाता है। और इसी कर्तव्य का पालन करते हुए नर्मदा घाटी के हम सभी लोग संविधान में विश्वास रखते हुए और संघर्ष और सत्याग्रह के बल पर अपना अहिंसक लड़ाई जारी रखेंगे और ना सिर्फ अपने अधिकार और हक बल्कि पूरे मानवीय समाज, पर्यावरण और प्रकृति को बचाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे।
लड़ेंगे, जीतेंगे!
श्यामा बहन, भगवती बहन, पुष्पा बहन, राहुल यादव, गेंदाराम भाई, बच्चूराम भिलाला, रोहित, पवन यादव, मुकेश भगोरिया
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