प्रेस नोट
दिनाक 22/12/ 2016
सरदार सरोवर विस्थापितों के करीबन हज़ार प्रतिनिधि बड़वानी, धार, अलीराजपुर, एवं खरगोन जिले से आपके प्राधिकरण के सामने आ खड़े हैं|
नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण इंदौर में अधिकारियो से चर्चा हुई
नर्मदा विकास प्राधिकरण के अधिकारी पवन कुमार जी व अन्य दो अधिकारियों के सामने आन्दोलन की ओर से 16 मुद्दे उठाये गए उस पर यह आश्वासन दिया है कि इन मुद्दों की जाँच की जाएगी।
नर्मदा विकास प्राधिकरण के संचालक श्री अफरोज अहमद से फोन पर लम्बी चर्चा हुई। पूरी चर्चा में मेधा पाटकर ने बताया कि अगस्त 2016 में जो रिपोर्ट दी है गलत है, मध्य प्रदेश के 192 गांवों व एक नगर का जायजा लीजिये आज भी 45000 परिवारों का पुनर्वास नहीं हुआ है इस पर जवाब दीजिये, इस पर अफरोज अहमद जी चुप रहे।
सरदार सरोवर डूब क्षेत्र में आज भी हजारों लोग बसे हुए है तथा मैदानी क्षेत्र के पश्चिम निमाड़ के बड़ी जनसंख्या के गावों में तमाम शासकीय नगरीय सुविधाएँ कार्यरत है| पहाड़ी क्षेत्र के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा गुजरात के गावों में भी आज तक सैकड़ों-सैकड़ों परिवारों का पुनर्वास बाकी हैं| नर्मदा ट्रिब्यूनल का फैसला, हर राज्य की पुनर्वास नीति एवं सर्वोच्च अदालत के सभी फैसलों के आधार पर पुनर्वास के बिना किसी भी परिवार की संपत्ति डूबोना अमाना व अपराध है| इस स्थिति में सरदार सरोवर की ऊंचाई बढाकर गेट्स बंद करना एवं 139 मीटर तक पानी भरना अन्याय है| सरदार सरोवर का सम्पूर्ण डूब क्षेत्र अनुसूचित जनजाति होते हुए आदिवासियों की जीविका तथा आबादी डूबाना उनके सांस्कृतिक स्थलों का विनाश करना अत्याचार भी है| आप इस अन्याय, अत्याचार तथा कानून की अवमानना को रोकें तथा डूब क्षेत्र की पर्यावरणीय एवं पुनर्वास के डूब क्षेत्र की वास्तविक स्थिति केन्द्रीय प्राधिकरण एवं न्यायालयों के सामने पेश करें यह जरूरी है|
NCA और GRA दोनों के निर्णय, सर्वोच्च न्यायालय के 2000 के फैसलें के अनुसार बंधन कारक है|
१. क्या इस मुद्दे पर हजारों परिवारों की कानूनी अधिकार सुरक्षित रखने के सम्बन्ध में अपनी भूमिका निभाना जरूरी नहीं है?
२. आप यह भी जानते है कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में कुछ हज़ार परिवार, तथा गुजरात के कुछ परिवार नगद राशि स्वीकार न करते हुए अपने जमीन के अधिकार पर ही अडिग है| क्या इन्हें जमीन-ट्रिब्यूनल एवं 2005 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार खेती लायक, सिंचाई लायक व घर-प्लाट सहित, सभी सुविधाओं के साथ उपलब्ध करवाना शासन का फ़र्ज़ नहीं है? आपने इस कार्य पर निगरानी क्यों नहीं रखी है? विस्थापितों के अधिकार सुनिश्चित करने के बदले आपने जीरो बैलेंस बताना गैर-कानूनी तथा भ्रामक है और NCA अदालत में भी आपके रिपोर्ट के आधार पर पुनर्वास में जीरोबैलेंस बताती है यह धक्कादायक है| आपसे अपेक्षा है कि सत्यवादी शपथ पत्र आप दाखिल करें|
३. आज महाराष्ट्र शासन मान रही है कि 500 से अधिक घोषित विस्थापित परिवार जमीन के साथ बसाना बाकी है तथा अन्य कुछ सौ परिवार घोषित होना भी बाकी है| महाराष्ट्र में कईयों का सीमांकन एव खेत-जमीन का पट्टा देना बाकी है और कईयों का भू-अर्जनं भी नहीं हुआ है|
४. मध्य प्रदेश में डूब क्षेत्र के गावों में हमारे अंदाज से करीबन 45000 परिवार यानि डूब क्षेत्र में होते हुए जिनमे से अधिकांश 122 मीटर बांध की ऊंचाई पर प्रभावित है, मूल 192 गावं एवं 1 नगर में आज भी में तथाउपजाऊ खेती, फलोउद्यान, शालाएं, मंदिर-मस्जिद, पंचायत कार्यरत होते हुए आपने बाँध के गेट बंद कर इस दिशा में कोई भी पहल करना गैर-कानूनी तथा अन्याय व अत्याचार से कम नहीं है| सरदार सरोवर का डूब क्षेत्र पूर्ण रूप से अनुसूचित जनजाति क्षेत्र होते हुए PESA कानून के तहत हर ग्राम सभा को पूछ कर ही पुनर्वास कहा तक पूरा हुआ है या नहीं, इस पर निर्णय लेना जरूरी है| आप इससे भी परिचित हैं कि ट्रिब्यूनल फैसलें के अनुसार किसी भी विस्थापित की संपत्ति सम्पूर्ण पुनर्वास बिना आप डूबा नहीं सकते| कृपया इसका पूर्ण पालन जरूर करें!
५. मध्य प्रदेश के कुल प्रभावितों की संख्या, अस्थायी डूब में आने वाले परिवारों को बाजू में रखकर संख्या को कम करने की कोशिश पहले भी हुई थी जिसकी पोल-खोल 2005 के सर्वोच्च अदालत के एक फैसले ने कर दी, उसके बाद फिर 4374 परिवारों को अचानक अपात्र घोषित करके, उन्हें आधे अधूरे लाभ देकर छोड़ दिया गया जिससे सैकडो खातेदार महिलाओं का हक जमीन की पात्रता होते हुए भी वंचित किया गया है,इस पर NCA की भूमिका क्या है? यह आपने कभी भी स्पष्ट नहीं किया! इनमे से कई परिवारों को GRA ने भी पुन घोषित किया है| यह आप जानते हुए भी चुप क्यों हैं?
६. 2008 से शुरू करते हुए बैक वाटर लेवल बदलने का निर्णय फील्ड सर्वे के बिना तथा अवैज्ञानिक तरीके से लिया गया है, यह आप भी जानते है| इस निर्णय को केंद्र की विशेषज्ञ समिति के द्वारा नकारने के बावजूद आपने 15946 परिवारों को डूब क्षेत्र से बाहर करने की साजिश मंजूर कैसे की, यह सवाल है? इन परिवारों की संपत्ति भू-अर्जित करने तथा NVDA के नाम पर नामांतरण करने के बाद; उनमे से कईयों को पुनर्वास के आधे या अधिक लाभ देने के बाद उन्हे डूब से बाहर बताना क्या जायज है? इन परिवारों को 122 मीटर पर ही आई डूब के लेवल के आधार पर डूब से बाहर बताना पूर्णतया असत्य एवं अविवेकी है| आपको इन परिवारों को लिखित देकर बताना होगा कि ये डूब के बाहर हैं या नहीं तथा उनकी संपत्ति उनके नाम पर फिर से चढ़ानी होगी| इतनी बड़ी संख्या कम करके सभी मध्य प्रदेश के विस्थापित परिवारों का पुनर्वास पूरा होने का दावा आप नहीं कर सकते| आपके(NCA के) वार्षिक रिपोर्टों में असत्य भी विरोधाभास के साथ नोंध किया गया है जो की असमर्थनीय है| NCA पर करोंड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी वस्तुस्थिति का पूरा व सही जायजा न लेने की बात जानबूझकर की जा रहीं है| यह हम और आप भी जान रहे हैं| इस परिस्थिति में तुरंत बदलाव लाया जाये, यह हम चाहते है|
७. जहाँ तक गुजरात का सवाल है, वहां भी 1961 से केवड़िया कॉलोनी बिना मुआवजा उजाड़े गये आदिवासियों के साथ धोखाधड़ी हुयी है| अब उनका हक उसी जमीन पर साबित है| गुजरात के कई परिवारों को पूरी व सही जमीन मिलना बाकी है व 800 से अधिक परिवारों की जमीन करीबन 20 सैलून के बाद उन्हें अपात्र ठहराकरवापस छिनी जा रही है जो की गलत है| गुजरात के बसाहटों में पीने के पानी के साथ गंभीर समस्याएं होना व GRA से भी उसका सुलझाव असंभव होना बड़ा अन्याय है| रोजगार का आश्वाशन देकर मूल गाव से उजाड़े गए सैकड़ों युवा आदिवासी असंतप्त हैं| मध्य प्रदेश की तुलना में गुजरात ने 1987 के कट ऑफ़ डेट मानके बहुत ही कम वयस्क पुत्रों को पुनर्वास मंज़ूर करना अन्याय है|
15 जुलाई, 2016 से क्रमिक अनशन पर उतरे हुए गुजरात, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र के विस्थापित जो बरसों से गुजरात में बसाये गए वो भी संघर्षरत है| इनके साथ आपका तथा केन्द्रीय पुनर्वास दल का कोई संवाद न होना संवेदनहीन है| उनकी मांगे पूरी किये बिना गुजरात में परिवारों का भी पुनर्वास पूर्ण हुआ है यह हम नहीं मान सकते|
८. NCA ने तथा राज्य सरकारों ने सर्वोच्च अदालत तक पेश किये एक्शन प्लान्स के आधार पर सभी भूमिहीन परिवारों को वैकल्पिक आजीविका देना जैसे की मछुआरों को जलाशय में मछली पर अधिकार, कुम्हारों को किनारे की जमीन का आवंटन एवं मजदूरों को दूसरी आजीविका के लिए सहायता देना आज भी बाकी है| इसमे केवल भष्टाचार होकर झा आयोग के रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी दोषी साबित हुए है| फिर भी आपकी ओर से न ही इन हजारों परिवारों के साथ कोई न्याय किया जा रहा है न ही सही पुनर्वास की स्थिति एवं अदालत के सामने राखी जा रही है| NCA पर करोंडो रुपये खर्च करने के बाद भी ऐसी स्थिति हमें नामंज़ूर है| 1987 के नर्मदा वाटर स्कीम के एवं ट्रिब्यूनल अवार्ड व 2000 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर आप अपना कर्त्तव्य निभाएं, यह जरूरी है|
९. झा आयोग की 2000 पन्नों की रिपोर्ट यह बात सामने लायी है कि जमीन के बदले नगद राशि (पैकेज) देने की गलत नीति, खेती लायक जमीन व घर प्लाट सही रूप से आवंटित न करना तथा बिना जाँच के फर्जी रजिस्ट्रीयों के साथ पैकेज का भुगतान आधार बनाकर अधिकारीं व दलालों के गठजोड़ को NCA इस रिपोर्ट पर कार्यवाही की मांग नहीं कर रही है तथा रिपोर्ट के खिलाफ जाकर विस्थापित क्रेता एवं निर्दोष विक्रेताओं की गिरफ़्तारी पर भी NCA कोई निर्णय नहीं देती है, इसका कारण क्या है? क्या NCA भ्रष्टाचारियों के साथ है?
१०. झा आयोग की रिपोर्ट से तथा MANIT, BHOPAL एवं IIT MUMBAI के द्वारा किये गए गहरे सर्वेक्षण के तहत यह भी साबित है कि पुनर्वास स्थलों के निर्माण कार्य में भी करोंड़ों का भ्रष्टाचार होकर अधिकांश पुनर्वास स्थल रहने लायक नहीं हैं| NCA इस स्थिति पर तथा इस पूरे भ्रष्टाचार में शामिल दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने पर कोई टिपण्णी तक नहीं दे रही है, इसका मतलब क्या है? आप सोचिये तथा जवाब दीजिये!
इस मामले में दोषी साबित हुए इंजिनियर एवं अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही का आदेश NCA क्यों नहीं दे रही है?
११. क्या आपने शिकायत निवारण प्राधिकरण से आजतक दिए गए करीबन 15000 आदेशों से कितने आदेशों पर अमल हुआ इसकी जांच की है क्या? अगर नहीं तो हमने सैकड़ों आदेशों के जांच के पश्चात् आपके पास उपलब्ध संशाधनों के द्वारा जांच करें| उसके बिना पुनर्वास पूरा होने का दावा एकदम झूठ है यह मानना होगा|
१२. इन तमाम मुद्दों पर जो पुनर्वास से सम्बंधित है, NCA की भूमिका, ट्रिब्यूनल के फैसलें एवं पुनर्वास नीतियों का पूर्ण पालन सुनिश्चित करना यही है! आज तक राज्य सरकारों के तथा NCA के गलत रिपोर्ट्स एवं आंकड़ों की ये जानकारी के कारण ही समय-समय पर बांध की ऊंचाई बढाई गई और बिना पुनर्वास आदिवासियों-किसानों-मजदूरों ने 2013 तक डूब और नुकसान भुगत लिया है|
अब आखिरी दौर में सरदार सरोवर के गेट्स बंद करना तब तक नहीं हो सकता है जबतक की 214 किलोमीटर तक फैले जलाशय के क्षेत्र में तथा कुछ बसाहटों में बसे हुए लेकिन सम्पूर्ण पुनर्वास न पाए हुए हर भूमिधारी एवं भूमिहीन परिवारको उसका हर अधिकार प्राप्त होकर उसके स्थलांतर के बाद 6 महीने बीत नहीं जातें| आप अपनी कानूनी तथा मानवीय न्याय दिलाने की जिम्मेदारी निभाकर सरदार सरोवर के गेट्स बंद नहीं हो सकते यह निर्णय स्पष्ट रूप से तथा तुरंत देदें, यह जरूरी है!
१३. आपकी जिम्मेदारी पर्यावरणीय शर्तों का पालन सुनिश्चित करने की भी है| पर्यावरण उपदल की 44 वीं बैठक से लेकर 49 वीं बैठक तक मिनट्स जाँचने के बाद 2010 के देवेन्द्र पाण्डेय कमेटी के रिपोर्ट्स से, NCA के वार्षिक रिपोर्टों से तथा धरातल की स्थिति जांचते हुए यह बात स्पष्ट है कि अनेक पर्यावरणीय मुद्दों पर अध्ययन, एक्शन प्लान व उन पर अमल भी बाकी है| हर मुद्दें पर स्वतंत्र टिप्पणी के साथ आपको हम आगाह करना चाहते है कि पर्यावरणीय सुरक्षा कार्य एवं क्षतिपूर्ति के कार्य पूरे होने तक सरदार सरोवर के गेट्स बंद करने की मंज़ूरी पर्यावरणीय उपदल नहीं दे सकताहै|
१४. आपके साथ अब 50000 रुपये मासिक तनख्वाह के नियुक्त किये जा रहे शोधकर्ता के द्वारा क्या आप तीन राज्यों में फैले हुए सरदार सरोवर क्षेत्र की धरातलीय जांच करावा लेंगे? क्या निष्पक्ष शोध के द्वारा सच्चाई जानना जरुरी नहीं है? पर्यावरणउपदल के द्वारा मंत्रालय के समक्ष आप सच जानकारी दे दें, यह जरुरी है| हम निगरानी रखे हुए है|
१५. महाराष्ट्र की तरह जमीन खरीदकर या खेती लायक वन-जमीन प्राप्त कर पुनर्वास हो यही आपको देखना होगा| जमीन या अन्य पुनर्वास के लाभों के बदले में नगद राशि देना पुनर्वास नहीं माना जायेगा| यह आपको ही स्पष्ट करना होगा| कोई भी गाँव ग्राम सभा की सहमति और प्रस्ताव पर पुनर्वास पूर्ण तथा गाँव का सम्पूर्ण स्थलांतर होकर अगर खाली हो जाये उसके 6 महीने बाद ही पानी भरा जा सकता है, यह आप जितने जल्दी समझ ले उतना ही अच्छा होगा अन्यथा आज यहाँ पधारे हुए घाटी के विभिन्न क्षेत्रों के तथा व्यवसायिक वर्गों के हजार प्रतिनिधि यह चेतावनी देतें है कि संघर्ष और तेज़ होगा तथा तमाम शासकीय अधिकारी व राजनेता भ्रष्टाचारी-अत्याचारी तथा अपराधी साबित होंगे|
देवराम कनेरा कमला यादव भागीराम यादव शमा बहन शोभाराम भिलाला कैलाश अवास्या भागीरथ धनगर मोहन पाटीदार राहुल यादव मेधा पाटकर
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