प्रेस-नोट दिनांक 04/04/2017
शिकायत निवारण प्राधिकरण से भेजी नोटिस वे शपथ पत्र व कानूनन न्यायपूर्ण
सर्वोच्च अदालत के फैसले पर कमाई की दलालों की साजिश जारी।
सरदार सरोवर विस्थापितों को काफी हद तक न्याय दिलाने वाला सर्वोच्च अदालत का फैसला आने के बाद भी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने अभी तक विस्थापित किसानों को हैरान दृष्टी से हर कोशिश चलायी है, और झा आयोग की जांच से अपराधी साबित हुए दलाल ही आज फिर सक्रिय होकर बडे लाभ में हिस्सा पाने की लालच लेकर फिर विस्थापित लाभार्थीयों को फंसाने एवं लूटने की साजिश भी जारी रखी है। शासन- प्रशासन की कोई निगरानी नहीं होते हुए घाटी के आंदोलनकारी किसानों को ही इन एकएक मुददे पर जवाब देना पड रहा है और वे दे भी रहे है।
शिकायत निवारण प्राधिकरण ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से चर्चा विचार के बाद कुक्षी तहसील से शुरू करते हुए किसानों को नोटिस तथा शपथ पत्र का नमूना भेजा है। सर्वोच्च अदालत के फैसले ने जिन्हें 60 लाख से बख्शा है, उन्हें 2 हेक्टर जमीन के बदले में 60 लाख और हर विस्थापित परिवार को जमीन खरीदी के लिए लाभ, यह सूत्र है। लेकिन 2 हेक्टर से अधिक जमीन डूब में हो तो 8 हेक्टर की मर्यादा में जितनी जमीन प्रभावित होगी उतने क्षेत्रफल की जमीन का अधिकार है। इस अधिकार को बरकरार होते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने दिया लाभ, जमीन के डूब प्रभावित क्षेत्र की मात्रा में मिलना जरूरी है। जैसे कि 3 हेक्टर्स के लिए 3 ग् 60त्र 1ए8 लाख रू.का हक पाना है।
सारी शिकायत निवारण प्राधिकरण ने अपने नोटिस में कई फैसले से विपरित सूचना दी है। उन्होनेे कोर्ट में दी गई संख्या 681 के बदले मात्र 608 की ही सूची न.घा.वि.प्रा. ने जाहीर की है, जो गलत है। कुछ हजार परिवारों के नाम सूची में नहीं है। जिनके नाम है, उनमें भी कई परिवारों के 3 से 4 सदस्य जब सहखातेदार है तो उनमें सें हर एक को स्वतंत्र लाभ देना न.घा.वि.प्रा. मिलना है, इसके बदले सभी सह खातेदारों को एक ही ‘‘ इकाई ‘‘/ युनिट मानकर नोटीस दी है, मात्र 60 लाख रू. लेने के लिए। इनमें महिला खातेदारों को छोडने की पुरानी साजिश, जी.आर.ए. और उच्च न्यायालय, इंदौैर के स्पष्ट आदेश होकर भी, आगे बढायी है। एस.आर.पी. की एक किश्त ली लेकिन दूसरी नकारकर जमीन का ही आग्रह पंकडकर रखा, ऐसे परिवारों को 60 लाख की पूर्ण रकम देना अदालत के फैसले में होते हुए, शि.नि.प्रा. नोटीस में पूर्व में दी गयी किश्त की रकम/राशि काटकर लाभ देने की बात शपथ पत्र में मंजूर करवाना चाहेगी, तो भी वह कानूनी/न्यायपूर्ण नहीं होगी।
60 लाख रू. मिलते ही पूरी संपत्ति पर का अधिकार छोडना या गाव खाली करना भी कैसे मंजूर करे? न्यायालय में जाने का अधिकार छीननें से इन्कार करना भी जरूरी है। सर्वोच्च अदालत ने नागरिक विस्थापित को न्यायालय में जाने से ही रोकने का बंधन शपथ पत्र में लिखवाना भी नामंजूर है। यह संविधान के खिलाफ है जबकि सर्वोच्च अदालत ने भी पुनर्वास स्थलों के निर्माण संबंधी कार्य से, शि.नि.प्रा. के आदेशों से भी असतुष्ट होने पर न्यायालय में जाने का रास्ता खुला रखा गया है, यही विशेष।
विशेष राशि अदा करने पर अपनी पूरी संपत्ति पर का हक छोडने की बात शि.नि.प्रा. के शपथ पत्र में है, जो भी गंभीर है। पुनर्वास स्थल अगर फैसले के ही अनुसार तैयार नहीं हो, तो संपत्ति मकान भी छोडे कैसे? इसका जवाब भी चाहिए। अगर कोई गलत बात कही गयी तो तुरंत अपराधिक प्रकरण दर्ज कराया जाने की शर्त भी शपथ पत्र में है। यह अन्याय है।
सैकडो प्रभावितों ने, सर्वोच्च अदालत का फैसला मंजूर होते हुए भी, शि.नि.प्रा. की इस नोटिस व शपथ पत्र में बदलाव चाहा है। फैसले का पालन भी विस्थापितों को हक दिलाने की दिशा में हो, हक छोडने की दिशा में नहीं, यह आंदोलन का स्पष्ट कहना है।
दलालों से फिर लूट?
कुक्षी में कार्यवाही शुरू हुई तो निसरपुर जैसे बडे गाव में लालची दलालों ने फिर अपना डेरा डालकर तत्काल 5 से 10 हजार रू. और आगे बडी राशि के 5 से 15 प्रतिशत तक का हिस्सा, 60 लाख और (फर्जी में फंसाये प्रभावितों के ) 15 लाख में से लेना चाहा है। यह शुरू होकर विस्थापितों की लूट जब शुरू हुई है तो जगह जगह लोग भी अपनी कृती कार्यवाही में है।
इन दलालों में निसरपुर के अधिवक्ता प्रवीण कोठारी, राजू कामदार पाटीदार, संतोष पिता सीताराम पाटीदार तो कुक्षी तहसील के डेहर में डाॅ मुकुट, एकलबारा (मनावर) में राजू दलाल (दरबार) आदि सामिल है। अंजड, में अधिवक्ता अब्दुल गनी शेख है। तो स्वयं अधिवक्ता बनकर रतन चैगडे ( गाव खापरखेडा) भी वही कर रहा है।
इन ‘‘ दलालों से सावधान ‘‘ का आक्रोश भी गावगाव में उठ रहा है। विस्थापित किसानों ने सर्वोच्च अदालत के फैसले का उचित पालन की मांग करने पर अब शि.नि.प्रा. ने जवाब देना बाकी है।
राहुल यादव मुकेश भगोरिया मेधा पाटकर
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