प्रेस नोट                                                                                                                                           दिनांक 29/12 /2016 
 
विस्थापित किसानों का जमीन के साथ पुनर्वास का हक छीनने के खिलाफ FIR 
 
आदिवासी, किसानों का जमीन का हक छीनकर हो रहा अत्याचार 
 
भ्रष्टाचारीयों के फायदे की लिए गैरकानूनी, झूठा नोटिस हो रहा है जारी 
 नर्मदा घाटी के सरदार के विस्थापितों का जमीन का तथा घर प्लाॅट, सुविधाओं के साथ पुनर्वास स्थल पर पुनर्वास पाने का अधिकार होते हुए भी उन्हें फंसाकर चंद रूपयों की नगद राशि, विशेष पुनर्वास अनुदान के रूप में देने की तथा ‘‘ पुनर्वास ‘‘ का कार्य निपटने की साजिश म.प्र. शासन व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से जारी है। 
जबकि झा आयोग की जांच रिपोर्ट से साबित है कि विशेष पुनर्वास अनुदान की (जमीन के बदले नगद राशि विशेष पुनर्वास अनुदान) नीति ही गलत साबित हुई है और अधिकारी-दलालों की गठजोड ने इसका दुरूप्रयोग करते हुए 1589 फर्जी रजिस्ट्रियाॅ हुई है, तब भी जमीन तथा घर-प्लाॅट का हक होते हुए, नगद राशि देने की कार्यवाही शासन आगे बढा रही है। जिन लोगों ने जमीन का ही अधिकार माना है और ैत्च् की आधी राशि, एक किश्त लेने के बाद, दूसरी किश्त लेने से इंकार किया है, उन्हें जमीन देनी होगी, यह निर्देश नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के पुनर्वास उपदल ने कई बार म.प्र. शासन को दिये है (2007 से 2011 के बीच) फिर भी एक किश्त लिये लोगों को इस अधिकार की सूचना देने के बदले, न.घा.वि.प्रा. ही नहीं शिकायत निवारण प्राधिकरण भी गरीब, आदिवासी, विस्थापित परिवारों को बार बार यही सूचित करता आया कि आप अपने बैंक पासबुक को ले आकर नगद राशि (2 किश्त) ले जाये। ‘‘ जमीन कहां से देंगे? जमीन कितनी मंहगी हो गयी है? जमीन नहीं खरीद सके तो पैसा लेकर ट्रेक्टर खरीद लो। दस साल में भी जमीन नहीं मिलेगी।‘‘ यह कहकर दबाव डालने का कार्य शिकायत निवारण प्राधिकरण के सदस्य, भूतपूर्व, न्यायाधीशों ने भी किया तब कई विधवा माताओं ने व आदिवासियों ने करार जवाब भी दिया। 
नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसला, सर्वोच्च न्यायालय के 2000 व 2005 के फैसलें  तथा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के आदेशों का सारेआम उल्लंघन करते हुए पुनर्वास अधिकारीयों के द्वारा, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण सैकडों विस्थापितों को नोटिस देकर कह रही है कि आपने लैण्ड-बैंक से जमीन आबंटन का जो प्रस्ताव दिया था उसे अस्वीकार करने से आपकी जमीन की पात्रता समाप्त हो चुकी है। यह सरासर झूठ है। ट्रिब्यूनल से दिया अधिकार और पात्रता छीनने का कोई अधिकार पुनर्वास अधिकारी या न.घा.वि.प्रा. को नहीं है। आदिवासीयों से भी यह अधिकार छीनने की साजिश अत्याचार विरोधी अधिनियम, 1959 की धारा 3,4,5 के तहत् अपराध है। 
नोटिस में यह भी कहा गया है कि अगर 2 से 4 दिनों में, 30/12/2016 तक इंदौर जाकर शि.नि.प्रा. से मिलकर शेष राशि याने 2 किश्त लेना नहीं किया तो किसानों की राशी राजस्व मद में जमा होगी और उन्हें पुनर्वसित किया यह माना जाएगा। बिना पूरी सुनवाई, बिना शि.नि.प्रा. के आदेश, कैसे निर्णय ले सकते है न.घा.वि.प्रा. के अधिकारी? राजस्व मद में डालने से भी क्या जमीन/जीविका के साथ पुनर्वास पूरा होते है? 
इन सवालों का जवाब लेने के लिए आज सैकडों विस्थापित न.घा.वि.प्रा. के पुनर्वास कार्यालय, बडवानी में पहुॅचे। श्री गुहा, पुनर्वास अधिकारी के सामने सवाल-जवाब किये गये। 
साथ ही किशोर पिता गुलाल ग्राम अवल्दा, तह. जिला बडवानी की और से अनुसूचित जनजाति अत्याचार विरोधी अधिनियम, 1959 के तहत विशेष अजा थाने पर थ्प्त् दाखिल किया गया। 
नर्मदा बचाओ आंदोलनकारी किसान, आदिवासीयों का निश्चत है कि वे धमकीयों, दबावतंत्र या भ्रष्टाचारीयों के जाल से नहीं फंसेगे और अपना हक नहीं छोडेगे। 
वे जानते है, 2.79 लाख सालों पहले देकर अब 2.50 लाख से 3 लाख रू. देकर 5 एकड सिंचित जमीन का हक छीनना धोखाधडी है। 5 एकड सिंचित जमीन की कीमत तो करोडों में है। 2.50 / 5.50 लाख में भी जमीन खरीद सकते है तो शासन स्वयं खरीदकर क्यों न दे? जब तक जमीन /जीविका, घर-पलाॅट, सुविधाओं के साथ संपूर्ण पुनर्वास आखरी व्यक्ति का परिवार और गांव का नहीं होता, तब तक पानी नहीं भर जा सकता, न हि गेट बंद किये जा सकते है, यह चेतावनी भी आंदोलनकारीयों ने दी है। 
 
मयाराम भीलाला     पेमा बाबू    कैलाश यादव     किशोर भीलाल शोभारम भीलाल    सुमनबाई  बालाराम यादव   राहुल यादव सुपलीबाई गणपत भीलाल 
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