प्रेस नोट                                                     दिनांक 14/05/2016

डूब ही साबित कर रही है शासन । 

डूब में आगे खायरा भादल के आदिवासीयों को अभी तक नही मिला न्याय।

 खतरा बढते के साथ सत्याग्राहियों में बडा जोश 

नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह के 10 वे दिन भी जारी

राजघाट बडवानी पानी का लेवल अभी 126 मी पहुॅच गया। 

बडवानी जिला एवम् तहसील के खारीया भादल गांव की जमीन में कल 7 अगस्त से डूब आने लगी और उसी से नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण झूठ सामने आयी।  जिन्हे डूब में नहीं बताया ऐसे परिवारों को 2006 से और इस साल भी डूब भुगतनी पडी है, जो कि कानून और अदालत की अवमानना है, और आदिवासी दिवस के पूर्व हो रहा ‘जीने के अधिकार’ का उल्लंघ्सन भी।       

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खारीया भादल म.प्र. के बडवानी तहसील के 7 वनग्रामों में से एक है। इस गांव की और से सर्वोच्च अदालत में याचिका दाखिल है ही गाव कंे आदिवासी भी पहले पढ नहीं पाये भादल में आज भी आंदोलन की जीवनशाला चलती है, जिसमें कई बच्चे पढ कर उच्च शिक्षा तक पहुॅच गये है। वहां कि शासकीय स्कूल मात्र केवल कागज पर चलती है।

खारीया भादल के कुल 11 लोगों को खलघाट में खेती मिली, जो उपजाउ है लेकिन आज तक घर-प्लाॅट नहीं मिले। खेत जमीन भी मिली, कडे और लम्बे संघर्ष के बाद। 2005 से सालों तक इन्हे महेश्वर तहसील कि राबरघाटी गांव की जमीन कागज पर देकर रखी थी। भादलवासी इसका विरोध करते रहे। आखिर 20 में पुनर्वास अधिकारी बडवानी को इनके साथ फील्ड में जाकर, प्रत्यक्ष जांच के बाद यह मानना पडा कि राबरघाटी में 34.350 हे. मे से19.350 हे. जमीन तो काश्तलायक है ही नहीं, और बाकी जमीन पर सालों पुराने आदिवासियों की खेती है जिस पर उनका कानूनी हक होते हुए उन्हें हटाना संभव नहीं है। इसलिए शासन ने 10 हे. जमीन आबंटन के लिए उपलब्ध मानकर न हि केवल भादल के 30, बल्कि पिछोडी के 7, और अवल्दा के 1 विस्थापित को भी मिलकर कुल 76 हे. भूमी आबंटित की थी। इसके खिलाफ लड लड कर मांगलिया पिता मानिया की मृत्यु भी हो चुकी और बाद में ही उनके परिवार के कुछ व्यक्ति के साथ कुल 11 भादल के आदिवासीयों को 2013 में जमीन मिली। इनके सामने खलघाट के वही से जमीन को बेचने वाले मूल खेत मालिको ने आका्रेश भी जताया, जमीन एनव्हीडीए से वापस मांगने की कोशिश की, लेकिन विस्थापित आदिवासीयों की एकता, पैसे न लेने की कट्टरता तथा आंदोलन की साथ के कारण, उनकी अेक न चली।
आखिर पुनर्वास अधिकारी को भी 8 साल पुराने पट्टे रदद करने पडे और एसडीएम,धरमपुरी को खलघाट की जमीन का आबंटन करना पडा।

फिर भी दिक्कते खत्म नहीं हुई। भादल के कुल परिवारों में से करीबन् 19 घोषित आदिवासीयों को आज भी जमीन मिलना बाकी है। इसके अलावा करीबन् 25 वयस्क पुत्र आदिवासी होकर भी उनके पिता पट्टे की जमीन डूब में नहीं है, यह दावा शासन करती रही। इस दावे पर प्रस्तुति शिकायत निवारण प्राधिकरण के समक्ष भी हुई। न.घा.वि.प्रा. ने लालसिंग भाई, जामसिंग भाई जैसे बूढे से बूढे आदिवासियों के सामने भी बहस की और एक न मानी। आखिर शि.नि.प्रा. के भूतपूर्व अध्श्क्ष न्या. एस.पी.खरेजी ने जिलाधीश और न.घा.वि.प्रा. अधिकारी भादल जाए और सर्वेक्षण करे सह आदेश दिया।

जिलाधीश बडवानी ने तो आदेश का पालन नहीं किया पर अपनी मुलाकात दौरान न.घा.वि.प्रा. के अधिकारीयों ने भी लोगों की बात करीबन्  मान ली। लेकिन कागज पर भूमिका आदिवासीयों के विरोध में ही जारी रखी। श्री पालीवाल, कार्यकारी अभियता एनव्हीडीए बडवानी, विरोध करते और नक्शा से गलत या भ्रमित करने वाली बात रखते गये, और आंदोलन के कार्यकर्ता एवम् भादल के आदिवासी अपनी बात अडिग रहे। आज तक जिलाधीश की रिपोर्ट शि.नि.प्रा. के सामने ही नहीं की।

इस दौरान जामसिंग भाई, लालसिंग भाई दोनो मृत हो गये। लालसिंग भाई, 80 साल  के उपर थे, आंदोलन के कार्यक्रम के दौरान भोपाल में न.घा.वि.प्रा. के उपाध्यक्ष ओ पी. रावत जी के सामने भी खडे थे। आबला भाई की जमीन पर ही गोखरू भाई की दुकान थी। जो गांव की एक ही दुकान थी, जो भी  डूब गयी।
आज जो जमीन डूबी है, उसमें आबला पिता कनिया, गेमतिया पिता लालसिंग, पांडया पिता जामसिंग, दूरसिंग (मृत), नरसिंग, काकडिया, गुलसिंग सभी की जमीन है, जो इन्हें घोषित न करते हुए सरदार सरोवर की डूब में आ गयी है। 2006  से ही डूब आती गयी तो ये बारिश में खेती भी नहीं कर पाते है। केवल रब्बी की फसल लेते है, बारिश में नहीं। भादल की इस हकीकत को क्या कहे? अनुयूचित जाति-जनजाति पर अत्याचार विरोधी कानून की धारा 3, 5के अनुसार जीविका छीनना भी अत्याचार है। खलघाट में जमीन मिली तो भी घर-प्लाॅट अभी नहीं मिला है। घर-प्लाॅट खलबुजुर्ग के बदले मोरगढी बसाहट में दे न.घा.वि.प्रा. लेकिन वे तो बडी बारिश में डूबने वाली जमीने होते हुए उन्होने स्वीकार नहीं की। भादल के विस्थापित अकेले नहीं। गांवों के आदिवासी भी अपने अपने गावों में भूमीहीन होकर रह जाएंगे, ऐसी स्थिति का विरोध नहीं करे तो क्या? राजघाट  में भादल के आदिवासी कल ‘‘ आदिवासी दिवस’’ मनाने पहुॅचेगे।

गुजरात के विस्थापित आदिवासी भी अनिश्चित कालीन अनशन पर

9 अगस्त आदिवासी दिवस से संघर्ष का अमला कदम।
सरदार सरोवर से विस्थापित आदिवासियों में 19 गाव के करीबन् 4500 गुजरात के परिवार भी शामिल है। इनमें से बहुतांश गांवों को, दबाब डालकर, डूब से धमकाकर मूल गांव छोडने के लिए मजबूर किया था।1980- 90 के दशक में गुजरात ने 235 से अधिक पुनर्वास स्थल भी बनाये लेकिन कईयो कि जमीन की समस्या कई पुनर्वसाहट भी भराव से डूबने कीी स्थिति,गर्मी पीने का पानी तक नहीं ……. और कई वसाहटों में वयस्क पुत्र होते हुए भी अघोषित छोडेगे इनमें से कई परिवार आज भी 40-50 साल के बाद होते हुए जमीन न मिलने से बेरोजगार है। रोजगार का आश्वासन गुजरात शासन ने पूरा नहीं किया आदिवासी युवाओं को फंसाया।

इस स्थिति में बार बार शिकायते करके भी समस्या नहीं सुलझाये गई तो गुजरात के अपने4500 म.प्र. के गुजरात भेज गये 5000 और महाराष्ट्र के करीबन् 700 परिवारों में से बहुत सारे त्रस्त है। उन्होने आप नर्मदा असरग्रस्त संघर्ष समिति के बैनर तले 15 जून 2016 से केवडिया काॅलोनी में श्ुारू किया संघर्ष चोटी पर पहुॅच रहा है। 15 जून से रोज करीबन् 100विस्थापित कई वसाहट के प्रतिनिधी उपवास पर बैठे और हजारों ने धरना कार्यक्रम में हिस्सा लिया गुजरात शासन की और से सरदार सरोवर नर्मदा निगम के अधिकारीयों ने पहले 2-3दिन चर्चा कर कहां कि निर्णय हो विशष्ठ ले सकते है।

इसके बाद कई सारे राजनेता और राजनैतिक दलों- काॅग्रेस, जद (यू) अन्य विस्थापितों का समर्थन भी दिया लेकिन शासन से अभी तक उन सवालोंपर जवाब नहीं मिला इस स्थिति में आदिवासी दिवस के मौके पर गुजरात के आदिवासी विस्थापितों ने याने बांध से जलाशय से पर्यटन परियोजना से ठरूडेश्वर वेंयर से, काॅलनी से ……. इत्यादि प्रभावितों ने मिलकर अगला कदम बढाना तय किया है।

9 अगस्त 2016 से शुरू होगा अनिश्चित कालीन उपवास।
नर्मदा बचसओं आंदोलन गुजरात के आदि नदियों को डूबाकर कोका कोल जैसी कंपनी को पानी का लाभ देने का विरोध करते हुए, इन विस्थापितों के संघर्ष को समर्थन जाहीर करता है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथी

राहुल यादव बालाराम यादव   कैलाश यादव गोखरू सोलकी  पन्नालाल मनोहर कुमावत   जगन्नाथ पाटीदार  जीकू भाई  मेधा पाटकर
संपर्क नं. 9179617513

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