मेधा पाटकरइमेज कॉपीरइटPAWAN JAISHWAL / BBC

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर नर्मदा बांध की वजह से विस्थापित हुए लोगों के समर्थन में 25 अगस्त से अनिश्चिकालीन भूख हड़ताल पर हैं.

शनिवार को उनकी हालत बिगड़ गई तो उन्हें ओआरएस पानी दिया गया.

नर्मदा बचाओ आंदोलन उन 32,000 लोगों की पीड़ा को आवाज़ देने के लिए शुरू किया गया है जो नर्मदा के किनारे रह रहे थे.

मध्य प्रदेश के बडवानी ज़िले के छोटा बड्डा गांव में मेधा पाटकर और उनके सैकड़ों सहयोगी हड़ताल पर हैं.

ज़िले के शीर्ष अधिकारियों ने मेधा पाटकर से मुलाक़ात की है और उपवास तोड़ने की अपील की. लेकिन वो मांगें पूरी होने तक उपवास जारी रखने पर अड़ी रहीं.

बांध के पानी से डूबी बस्ती

कई गांव अब द्वीप बन गए

मेधा पाटकर बीते 34 वर्षों से नर्मदा बचाओ आंदोलन के बैनर तले सरदार सरोवर बांध की वजह से विस्थापित हुए लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं.

वो हमेशा से ही सरदार सरोवर बांध के निर्माण का विरोध करती रही हैं. कुछ लोग उन्हें इसकी वजह से विकास विरोधी भी बताते रहे हैं.

बीबीसी से बात करते हुए मेधा पाटकर ने कहा, “34 साल बाद भी हमारा धरना जारी है और आज भी गांवों का क़त्ल जारी है. बांध के बढ़ते जलस्तर में कई गांव डूबते जा रहे हैं. कई गांव अब द्वीप बन गए हैं. जब तक सभी प्रभावित लोगों का पुनर्वास नहीं किया जाएगा, हमारा विरोध जारी रहेगा.”

मेधा पाटकर का कहना है कि प्रशासन ने लोगों का पुनर्वास तो किया है लेकिन उन मानदंडों के आधार पर नहीं जो सुप्रीम कोर्ट ने तय किए हैं.

इस भूख हड़ताल में मेधा पाटकर के साथ दस अन्य कार्यकर्ता भी हैं. वो कहते हैं, “नर्मदा हमारी जीवनरेखा है हम इसे अपनी मृत्यु रेखा नहीं बनने देंगे.”

मेधा पाटकर

रिकॉर्ड जलस्तर

सरदार सरोवर बांध की वजह से 32 हज़ार लोग प्रभावित हुए हैं. मेधा पाटकर की मांग है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार बसाया जाए.

मेधा पाटकर बीजेपी की पूर्ववर्ती सरकार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए जल संरक्षण कार्यक्रमों की समीक्षा की भी मांग कर रही हैं.

दूसरी ओर गुजरात में बीजेपी की सरकार का कहना है कि नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी (एनसीए) के किसी दिशानिर्देश का उल्लंघन नहीं किया गया है. एनसीए के आदेशों के तहत ही बांध का जलस्तर बढ़ाया गया है.

एनसीए ने गुजरात सरकार को बांध के गेट बंद करने की अनुमति दी है. इस मानसून बांध के गेट बंद रहे हैं, जिसकी वजह से जलस्तर रिकॉर्ड स्तर पर है.

बांध के आसपास का विस्तृत इलाक़ा अब जलमग्न हो गया है.

एनसीए ही बांध से पैदा होने वाली बिजली को संबंधित चार राज्यों में बांटती है. किस राज्य को इस परियोजना से पानी का कितना हिस्सा मिलेगा, ये भी एनसीए ही तय करती है. एनसीए की ओर से तय हिस्सेदारी की समीक्षा साल 2024 में होनी है.