प्रेस विज्ञप्ति | 10 नवम्बर, 2016
नर्मदा घाटी में सैकड़ों की गिरफ्तारी। जनविरोधी आतंकी म.प्र. शासन।
मध्यप्रदेश शासन ने पुनर्वास में भ्रष्टाचारी अधिकारियों को बचाकर विस्थापितों, दलित-आदिवासीयों, फंसाये गये गरीबों को अपराधी बनाया।
न्या. झा आयोग के द्वारा उजागर किया गया 1500 करोड़ का घोटाला डूबा रही सरकार।
नर्मदा घाटी के गरीब, दलित, आदिवासीयों के लिए मध्यप्रदेश की शिवराजसिंह चौहान सरकार स्वयं आतंकवादी साबित हो रही है। इनके साथ अहिंसक सत्याग्रहीयों का कैसा ‘एन्कांउटर’ करना होगा, यह आप ही सोचिये!
एक ओर मध्यप्रदेश के नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर प्रभावित करीबन् 45000 किसान-मजदूर-मछुआरों-कुम्हार परिवारों को बिना संपूर्ण पुनर्वास, डूबाने की मंजुरी, गुजरात व केन्द्र शासन को देती रही मध्यप्रदेश सरकार, अब “भ्रष्टाचार” के नाम पर भी न्याय नहीं, अन्याय व अत्याचार करने पर उतर आयी है।
व्यापमं घोटाले के बाद अब इस घोटाले में भी मध्यप्रदेश शासन, न्या. श्रवण शंकर झा आयोग में दोषी ठहराये अधिकारियों के ही द्वारा गरीब से गरीब विक्रेता और फंसाये गये विस्थापितों पर अपराधी प्रकरण (धारा 423, 34, 120 बी, 468, 421 के तहत) दाखिल करते हुए, गिरफ्तारी शुरू कर चुकी है। बागली तहसील, देवास जिले में सबसे अधिक फर्जी रजिस्ट्रियां हुई, जिसमें विक्रेताओं को अपनी जमीन बेची जाने का पता भी न चलते हुए फर्जी कागजात दलाल-अधिकारियों के गठजोड ने बनाये/ बनवाये और भुगतान किया। वैसे ही हुआ बडवानी, मनावर, कुक्षी, अलीराजपुर तहसील में। दोषीयों के बदले करीबन् 152 फर्जी विक्रताओं को, जिनमें बूढ़ी महिलाएं शामिल है, गोपनीय ढंग से गिरफ्तार करके उनकी सूची तक उपलब्ध न करवाने की साजिश शासन ने चलायी है। अब क्रेता विस्थापितों पर भी कहर ढायी रही है शासन। कल सुबह 5 बजे कुक्षी तहसील का बड़ा गांव निसरपुर में कन्हैया प्रजापति के सरदार सरोवर प्रभावित किसानों को गिरफ्तार करने पुलिस गयी और जिनके पति बाहर थे, उनकी परिवार महिलाओं को पुलिस चौकी में ले जाकर बिठायी। यह गिरफ्तारी बिना महिला पुलिस के, सुबह 5.30 बजे, पुरूष पुलिसों ने, घर में घूसकर, सोयी हुई महिलाओं को जगाकर, गालियाँ देते हुए की। उन महिलाओं को कुक्षी से आगे कहां ले गये और क्यों, यह परिवारजनों को आजतक पता नहीं, शासन सैकड़ों निरपराध व्यक्तियों की गिरफ्तारी से हजारों तक आगे बढ रही है।
सरदार सरोवर के विस्थापितों के पुनर्वास में विविध मुद्दों पर हुआ फर्जीवाड़ा यानि करोड़ों का भ्रष्टाचार, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय से गठित न्या. झा आयोग ने, सात सालों तक की जांच के बाद जनवरी 2016में उच्च न्यायालय में पेश की गई अपनी 2000 पन्नों की (जोडपत्रों सहित) रिपोर्ट के द्वारा उजागर किया। विस्थापित क्रेता व गरीब, दलित, आदिवासी विक्रेताओं के साथ हुए 5 एकड़ जमीन के बदले नगद राशि के खेल में, 1589 फर्जी रजिस्ट्रियां होने के निष्कर्ष के साथ, झा आयोग ने, इसके लिए अधिकारी व दलालों का गठजोड़ को दोषी ठहराया। साथ ही मध्यप्रदेश शासन की सही खेती की जमीन देने के कानूनी प्रावधानों के खिलाफ नगद राशि (वह भी कुल 5.5 लाख, दो किश्तों में) देने की नीति को जिम्मेदार आयोग ने साबित किया। पुनर्वास के अन्य मुद्दों में, म.प्र. के 88 पुनर्वास स्थलों पर हुए करोड़ों के निर्माण कार्यों में, मकान के लिए दिये भूखण्ड के आबंटन व पुर्नआबंटन में, तथा भूमीहीनों को फंसाकर आजीविका के बदले अनुदान देने में हुए भ्रष्टाचार में भी भुगतान करने वाले भू-अर्जन व पुनर्वास अधिकारियों को जांच के आधार पर दोषी ठहराया।
फर्जी रजिस्ट्रियां मात्र 686 है, सरकार यह 2007 से कहकर चूप रही, झूठे नामांतरण तक होने देने वाली म.प्र. शासन को चुपचाप बैठी रही। 2008 में न्या. झा आयोग गठन करने के राजपत्र में गलत तरीके जाँच आयोग कानून के तहत गठित करने की बात डालकर, उच्च न्यायालय को आयोग की रिपोर्ट खोलने देने का विरोध राज्य शासन की तरफ से किया गया और सर्वोच्च अदालत से अपने हाथ रिपोर्ट लेकर, 5 अगस्त 2016 को भोपाल में आदेश पारित किया कि फर्जी रजिस्ट्रियों के क्रेता (विस्थापित), विक्रेता (जिनमें दलित, बलाई, आदिवासी, विधवा महिलाएं आदि शामिल है) व आयोग की रिपोर्ट में जाहिर 186 (प्रथम सूची) व अन्य करीबन् 200 दलालों के खिलाफ कार्यवाही करेगी। विशेष है कि आयोग ने जाहिर किये दलालों की सूची में 200 पटवारी, 33 अधिकारी, 15 अधिवक्ता के भी नाम है। लेकिन 5 अगस्त2016 के दिन राज्य आदेश में आयोग से आरोपित बताये गये अधिकारियों की इंदौर संभाग के आयुक्त से जांच होने के बाद ही उन पर कार्यवाही का निर्णय शासन ने जाहिर किया।
सच तो यह है कि फर्जी घोटाले में फंसकर प्रत्यक्ष जमीन नहीं मिल पायी, ऐसे सभी परिवारों को जमीन देने के लिए तंत्र गठित करने का आदेश केन्द्र शासन के पत्रों से बारबार सूचित किया गया था 2013तक। इसके बावजूद, उन्हीं के खिलाफ थ्प्त् दाखिल होना है, वह भी अपराध में शामिल पुनर्वास अधिकारीयों के हाथ। इन अधिकारियों ने ही, भोपाल स्थित उच्चालय से आये आदेश पर, कोई भी जांच करे बिना फर्जी रजिस्ट्रियों पर भुगतान किया था। यह कैसी विडंबना? “व्यापम” घोटाले के बाद अब वही रणनीति अपना रही है म.प्र. शासन।
सच्चाई यह है कि कई सारे विक्रेताओं की जानकारी के बिना उनकी जमीन की बिक्री की गई लेकिन कब्जा तो उन्हीं का आज भी है। कुछ आदिवासियों को कर्ज देने के नाम पर, या वारिसों को नामांतरण देने के नाम या फिर “किसी गरीब को पैसा निकालना या किसी को जमानत देना है, इसके लिए हस्ताक्षर/अंगूठा मात्र दे दे, और नुकसान कुछ भी नहीं” यह कहकर उनकी पावती/कागजात लेकर फंसाया गया था। अब ऐसे फंसाये गये विक्रता, वृद्ध आदिवासी, दलित (बलाई) महिलाओं सहित, पर भी कार्यवाही हो रही है और स्वयं विस्थापितों के खिलाफ भी, जिन्हें सही तो गलत नीति के तहत दलालों से, अधिकारीयों से फंसाया गया है।
जबकि घाटी के गाँव-गाँव के लोगों को पता है, कि कौन दलाल, कैसे और किन अधिकारियों के साथ कार्य करते थे और विस्थापितों को फंसाकर, विशेष पुनर्वास अनुदान (एसआरपी) का गैरउपयोग करके खुद कमाई करते थें, क्या म.प्र. शासनकर्ताओं को हकीकत पता नहीं है?
स्पष्ट है कि उन्होने मात्र खुद को निर्दोष साबित करने के लिए अपने गठबंधन को छुपाकर दलालों के साथ विस्थापितों और विक्रेताओं को जेल भेजना चाहा है। इतनी अनैतिक कार्यवाही न्यायालय के साथ किसान, आदिवासीयों की भी अवमानना है।
जाहिर है कि म.प्र. शासन ने आज तक शहीद नियोगी हत्याकांड से लेकर किसी भी जांच आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही नहीं की है। इस मामले को खटाई में डालने की कोशिश नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण तथा राज्य सरकार की मिलीभगत के द्वारा इसलिए जारी है कि उन्हें अपने ही आंगन में हुए भ्रष्टाचार को दुर्लक्षित करना है। एक एक रजिस्ट्री के पीछे न.घा.वि.प्रा. के अलावा राजस्व विभाग एवं लोक निर्माण, रजिस्ट्री, ऐसे तीन विभागों के कर्मचारी व अधिकारी दोषी है। इन्हें बचाने वाले राजनेता भी निर्दोष नहीं बल्कि नर्मदा घाटी के हजारों आदिवासी, दलित, किसानों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने वाले साबित हो रहे है।
31 सालों से सत्याग्रही रहे नर्मदा बचाओ आंदोलनकारी चूप नहीं बैठ सकते हैं। हम अपेक्षा करते हैं कि सभी सत्याग्रही जनसंगठन व नागरिक इस अन्याय तथा शासकीय आंतक की पोलखोल करेगे।
रणवीरसिंह तोमर राहुल यादव कैलाश अवास्या मेधा पाटकर
संपर्क नं. 9179617513
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