​भारत की नदियों पर ध्यान है तो किसका और किसलिये?

“रैली  फॉर  दि रिव्हर” के पीछे है कौन? क्या  उनकी संकल्पना परिपूर्ण है? चेतावनी ज़रूरी !

प्रेस विज्ञप्ति | 17 अक्टूबर, 2017

मात्र गंगा या नर्मदा की नहीं, सभी नदियों की हालत आज गंभीर होते हुए, नदियां बचाने की बात बहुत सारे मार्गों से उठती जा रही है | हर अभियान में जुड़े है तो कौन, अगुवाही और खर्च किसका और उद्देश्य, साधनमार्ग तथा सफलता कितनी, यह नापना, जाँचना ज़रूरी है | यमुना की हालात, बांधो के साथ उसी के जलग्रहण क्षेत्र में / नदी पात्र में , मंदिर, घर बनाने वालों ने, बड़े कार्यक्रम आयोजित करने वालों ने की और नर्मदा का बहना ही महाकाय बांधो ने रोक कर पानी अब पीने लायक नहीं, ऐसी अवस्था में आना शुरू होकर समस्या आगे बढ़ी है |

लेकिन नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान, रु. 1600 करोड़ से अधिक खर्च कर भी बड़वानी, धार जैसे क्षेत्रो में नहि एक अवैध शराब की दुकान हटी, नहि अवैध रेत खनन रुका | आज भी न केवल नर्मदा में,बल्कि उसकी हथनी, गोई, उरी- बाघनी जैसी उपनदियो में चल रहा है, तूफानी अवैध रेत खनन | अब वह पुनर्वास के नाम पर भले चल रहा हो, गाँवों के साथ-साथ नदी भी उजड़ी जाएगी, इसी का यह संकेत है और इसे एकाध ट्रेक्टर रोक कर, अपना कर्तव्य दिखाने के बावजूद पुलिस, खनन और राजस्व विभाग के अधिकारियो के भ्रष्ट व्यवहार के कारण अंधाधुध क़ानूनी एवं पर्यावरणीय उलंघन जारी है |

सद्गुरु जग्गी वासुदेव महाराज की नदियों को बचाने की मुहिम किस ओर ?

नदियों को बचाने की बात अब जोरों से करने वाले नदियों को बेचने में कामयाब तो नहीं होंगे, यह सवाल उठाना जरूरी हैं ? सद्गुरु या योगगुरु कहलाते हैं  ऐसे जग्गी महाराज ने करोड़ों रुपयो का चंदा तमाम कार्पोरेट्स और कई मीडिया गृहों से जुटाया हैं लेकिन साथ ही कई पर्यावरण प्रेमी और आम संवेदनशील नागरिकों, युवाओं को भी साथ में जुटाने का कार्य किया जा रहा हैं | मुख्यमंत्री शिवराजसिंह जी और प्रधानमंत्री मोदी जी भी इनके साथ जुड़े दिखाई देते हैं और नदियों के ही नहीं, सद्गुरु महाराज के साथ भी, श्रध्दा और जुड़ाव बताते हैं, उनके ईशा फौंडेशन के आश्रम की मुलाकात लेने से लेकर 120 फीट ऊँची आदियोगी की मूर्ति का उदघाटन करने तक के कार्यो में शामिल भी हो चुके हैं, जिसका निषेध प्रदर्शन द्वारा तमिलनाडू में कई संघटनो, अधिवक्ताओं, निवृत्त न्यायाधीश ने भी किया था, लेकिन दुर्लक्षित किया गया | कानूनी कार्यवाही सद्गुरु के खिलाफ जारी है |

जग्गी वासुदेव जी की नदियाँ बचाने की संकल्पना में वृक्षारोपण के अलावा कोई विशेष बात नहीं दिखाई देती हैं | नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र, उप नदियाँ , पारिस्थितकी तंत्र के साथ साथ नक़्शे और वर्णन तो काफी सारा हैं लेकिन नदियों का विनाश करने वाले कार्य के बारे में, उसे रोकथाम के बारे में कोई बात क्यों नहीं ? क्या एक ओर पौधा – वृक्षारोपण, दूसरी ओर अवैध रेत खनन (जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयानों को उनके ही नुमाइंदो द्वारा झूठा साबित करके भरसक चल रहा हैं) जारी रहना सद्गुरु महाराज को मंजूर हैं ? नदियों के पात्र में अतिक्रमण बड़े-बड़े पूंजीपतियों का विशेषत:, (न मात्र दोषी ठहराये गरीबों का) हो रहा हैं, उस पर उनकी क्या भूमिका हैं ? अपने संकल्पना व सिफारिशों में सद्गुरु स्वयं और उनका इशा फौडेशन कहता है कि हम  हायड्रोइलेक्ट्रिक (जलविधुत) योजनाए, नदी में जल-परिवहन आदि के बारे में कुछ नहीं कहेंगे | हम भावनिक या राजनीतिक भूमिका नहीं लेते हुए मात्र शास्त्रीय / वैज्ञानिक आधार पर ही बात करेंगे | क्या इन परियोजनाओ के असर को नजरअंदाज करना वैज्ञानिक अभ्यास होगा ?

नदियों की आज तक हो रही बर्बादी का वर्णन उन्होंने ठीक किया है जैसे की नर्मदा का समुन्द्र तक पहुँचता हैं और कावेरी का 40 प्रतिशत, गोदावरी का 20 प्रतिशत यह बताते हैं वे, लेकिन यह क्यों, कैसे हुआ यह नहीं बताते ! जबकि बांधो के नीचे वास की नदी मृतवत होती हैं या सूखा- बाढ का चक्र भुगत कर किनारे के गाँवों घाटी की जनता भी भूखी प्यासी हो जाती हैं, जब नर्मदा में ऐसा हो रहा हैं कि समुद्र 30 कि.मी. अंदर घुसकर पानी और जमीन खारी कर देता हैं, तो उस पर सद्गुरु का क्या कहना हैं ? सद्गुरु कहते हैं, नदियों के पानी का अतिरिक्त उपयोग एक बड़ा कारण हैं | प्रत्यक्ष में खेती से भी अधिक पीने के पानी की कीमत पर, जैसे सरदार सरोवर, इंदिरा सागर जलाशयों द्वारा नदी का पानी कोका कोला को रोज लाखों लीटर्स और अन्य कम्पनियों को लाखो लीटर्स देने की योजना क्यों सही उपयोग माना जायेगा ? जिस नदी घाटी की धरोहर की बात करने वाले सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी और उनके नुमाइंदो ने नर्मदा जैसी नदी घाटी के शतको, पुराने मंदिरों, मस्जिदे ही नहीं, पुरातत्त्वशास्त्रीय खजाना और कुछ दशलक्ष आज भी खड़े बड़े छोटे पेड़, हरे अचदन को बचाने की बात न करना बड़ा विरोधाभास है |

हर नदी के किनारे एक किलोमीटर चौड़ाई तक की ज़मीन में से कितनी पौधा रोपण के लिए योग्य है, कितनी ज़मीन पर खेती या आबादी है, इसका अभ्यास भी क्या सद्गुरु करेंगे ? नदी किनारे बसे हुए लोगों ने आज तक नदी बचायी, अब जलपरिवहन, पर्यटन, वुरजा परियोजनाओ या नदी जोड़ योजनाओ में करोडो का पूँजी निवेश करना चाहने वालों के ही साथ जुड़कर, सद्गुरु महाराज करना क्या चाह रहे है ? नदी का पुनर्जीवन निरंतर विकास के उद्देश्य, “नदी एक प्राकृतिक संसाधन है” आदि भाषा व उद्देश्य लेकर भी इस अभियान के उद्देश्य – साध्य व साधना दोनों शंका उत्पन्न करते है |

वे बात तो संवैधानिक 73वे संसोधन की बात यानि ग्राम सभा के अधिकार की बात करते है और कई शासकीय योजनाओ से अपने कार्य को जोड़ते है, मात्र कागज़ पर ही रहने वाली इस दिशा के विरोध में चल रहे भ्रष्ट विचार और शासकीय कार्य व गलत नियोजको से कैसे पलटेंगे, उसकी स्पष्टता उनसे ज़रूरी है |

जग्गी वासुदेव जी के पीछे अडानी सहित और कई सारे कार्पोरेटस, जिनकी खुद की पर्यावरणीय सोच सामने नहीं आई, कानूनों का उल्लंघन पता है, वे पूँजी के साथ जुड़े है इसलिए “नमामि देवी नर्मदे” जो कोई ठोस परियोजना तक नहीं है, जैसे की सहराना के साथ, नदी जोड़ो और नदी परिवहन योजनाओं के अन्दर (22000 कि.मी. 22000 करोड़ रु.), अम्बानी का नर्मदा में वैसे अन्यों के साथ नदियों पर जल पर्यटन आगे बढ़ने के लिए सद्गुरु को सब चाहते है, ऐसा चित्र दिखाई देता है | इनके सुन्दर शब्दों में मात्र आकर उन्हें समर्थन देने वालों ने गहराई समझनी चाहिए |

हम यह सद्गुरु महाराज को आज की नर्मदा और घाटी की स्तिथि और शासन की भूमिका तमाम योजनाओं पर अपनी भूमिका स्पष्ट करने का और नर्मदा बचाने का रास्ता जाहिर करने के ऐलान करते है | वह भी तत्काल नदी बर्बाद या समाप्त होने के पहले |

सद्गुरु वन सुरक्षा की बात स्पष्ट नहीं रखते हुए मुनाफा बढाने वाली उपज-खेती की बात रखते है | आज असफल फसल बीमा के बाद भी फसल बीमा की ही बात करते है | बड़े बांधो पर टिप्पणी करना नकारते हुए विकेन्द्रित जल नियोजन की बात करते है | क्या वे राजनितिक दृष्टी से अज्ञानी है या उनका उद्देश्य राजनेताओ, कंपनियों को जोड़ना होने के ही कारण है?

उनके उद्देश्यों में बहुत सारे मुद्दों पर कंपनिया उत्सुक व् उत्साही होने का कारण स्पष्ट है |

जग्गी वासुदेव है कौन?

अचानक नदियों को बचाने की करोड़ो की योजना उठाने व फ़ैलाने वाले सतगुरु प्रत्यक्ष में तमिलनाडु में बहुत सारे पर्यावरणीय कानूनों के उल्लंघन

के आरोपी है | नोय्यल नदी की उपनदी कुंडाकोई पर अतिक्रमण, इर्दगिर्द के सुरक्षित वन जमीन पर अतिक्रमण और करीबन एक हज़ार इमारतो सहित आश्रम का निर्माण कार्य हाथियों के रास्ते पर अतिक्रमण से हाथियों पर बुरा असर आदि कई सारी हरकते करने का आरोप है और कोर्ट में याचिकाएं उनके खिलाफ आज भी जारी है | इसमें तमिलनाडु के कोइमोत्तुर जिले के अधिकारी / शासन ने आरोपों की सच्चाई अपने पूर्व के शपथपत्रों में मंजूर भी की है आश्रम का कार्य रोकने के आदेश का भी उन्ही से उल्लंघन हुआ है |

साथ ही जग्गी वासुदेव जी के खिलाफ भा.द.स. 302 के तहत स्वयं की पत्नी की हत्या का आरोप का उनके ससुर ने प्रकरण दर्ज किया है | “मुझे गिरफ्तार क्यों नही करते” यह जवाब एक पत्रकार को सद्गुरु से दिया गया है लेकिन फैसला अभी बाकी है | इसलिए किसी के सामने मत्था टेकने वालो को आसाराम बापू या राम-रहीम के बाद तो जागरूकता और जाँच परख के बाद ही अपना विचार, समर्थन और पूंजी लगानी चाहिये, यह चेतावनी नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से हम देना चाहेंगे | पत्र-माध्यमकर्ताओं ने भी पूरी खोज खबर करना जरुरी है | ताकि नदियाँ बचे, बेची न जाए |

देवी सिंह तोमर, देवराम कनेरा, कमला यादव, मेधा पाटकर
संपर्क:- राहुल यादव – 9179617513

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