प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का आया जवाब, अधूरे तथ्यों और सरकारी अनदेखी का प्रमाण ।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने दिया जवाब ।
{Reply to PMO in English is attached along with reply came from the Water Ministry}
प्रधानमंत्री को भेजे पत्र की कॉपी:
प्रधानमन्त्री जी,
सच-झूठ जान लीजिए!
आपसे निवेदन है कि सरदार सरोवर परियोजना की हकीकत अमानवीय जल हत्या और न्याय-संहार की ओर मत बढाईये!
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी को नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से सरदार सरोवर परियोजना की हकीकत के सन्दर्भ में लिखे गए पत्र का जवाब आया है. इसके बारे में बताया गया है कि यह जवाब सुश्री उमा भारती जी के मंत्रालय के द्वारा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के साथ चर्चा-विचार के बाद तैयार किया गया है. 24 मई 2016 का यह जवाबी पत्र जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की ओर से लिखे गए अवर सचिव के पत्र के साथ है, जिसकी प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय को तो भेजी ही गयी है, पर साथ-साथ प्रधानमन्त्री कार्यालय और उनके वेब पोर्टल पर भी 03.02.2016 को डाली गयी है.
हमारे हाथ देर से आने और व्यस्तता के कारण आज हम उस 8 पन्नों के जवाब का प्रतुत्तर दे रहे हैं. जिससे समाज, सत्ताधीशों, जनता और जनप्रतिनिधियों के सामने सच्चाई आये. सरदार सरोवर सरीखे महाकाय बाँध से विकास के बदले भयावह विस्थापन और विनाश न हो, बिना पुनर्वास सैंकडों गाँव और हज़ारो परिवार का विस्थापन न हो, घर, खेत, पशुधन, शालाएं, दुकानें, मंदिर-मस्जिद, समाज के देवस्थल, लाखों पेड़-पौधों जबरिया जलसमाधि में न डाल दिए जाएँ; यह सुनिश्चित करना “राज्य” की जिम्मेदारी है. इन्हें बेरहमी से उजाड़े जाने पर जो अन्याय होगा, वह मानवीयता पर आधारित व्यवस्था पर काला दाग बन कर स्थाई रूप से स्थापित हो जाएगा. इस अन्याय को रोकने के लिए जरूरी है उन प्रयासों की पोल-खोल, जिनके जरिये सच को झूठ में बदलने की कोशिश की जा रही है और भ्रम फैलाकर हज़ारों परिवार-नदी और पर्यावरण के विनाश की योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा है.
हमारा जवाब :
१. सच यह है कि यह पत्र पूर्व में कुछ सालों पहले लिखे गए पत्र में ही कांट-छांट करके लिखा गया है और सार्वजनिक किया गया है. यह कोई नया पत्र नहीं है. इससे पता चलता है कि व्यवस्था इतनी बड़ी मानवीय समस्या के प्रति कितनी असंवेदनशील है. साथ ही इसमें कई बातें या तो अधूरी बतायी गयी हैं या फिर जानबूझ कर महत्व के कई मुद्दे छिपाए गए हैं. जैसे कि माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश पर न्यायमूर्ति झा आयोग द्वारा करवाई गयी जांच और सात सालों के बाद आई रिपोर्ट का संज्ञान न लिया जाना. इस रिपोर्ट में पुनर्वास में भ्रष्टाचार और उसकी ताज़ा स्थिति के बारे बताया गया है, फिर भी दावा किया किया जा रहा है कि पुनर्वास पूरा हो चुका है और अब “शून्य” शेष है. क्या यह दावा मान्य हो सकता है?
२. सरदार सरोवर बाँध के बैक वाटर के स्तर में 30 साल के बाद अचानक बदलाव लाकर 15909 परिवारों को “अप्रभावित” और डूब से बाहर और पुनर्वास के लिए अपात्र मान लिया गया. इस तथ्य का जिक्र तक पत्र में नहीं है जबकि हकीकत माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पेश किये गए शपथपत्रों में है. गुजरात की वेबसाईट पर और आपदा प्रबंधन योजना में मध्यप्रदेश के लिए दर्ज बैक वाटर लेवल के होते हुए यह स्तर मध्यप्रदेश कैसे कम कर सकता है?
३. पत्र में गडबड तो यहाँ तक है कि वर्ष 2000 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से बनाया गया एक्शन प्लान को इस सर्वोच्च संस्था ने आज वर्ष 2016 में वर्तमान एक्शन पालन के रूप में पेश किया. इसमें दावा है कि बाँध की ऊँचाई को 122 मीटर वर्ष 2003 तक और 138.68 मीटर वर्ष 2004 तक पूरा करने का लक्ष्य है….जबकि बाँध की ऊंचाई 122 मीटर तक वर्ष 2006 में बढ़ी और 139 मीटर की ऊंचाई तक निर्माण का काम हाल ही में वर्ष 2016 में पूरा हुआ. सवाल यह है कि क्या सरकार पुनर्वास पूरा किये बिना बाँध के गेट बंद करने जा रही है? इस सम्बन्ध में उन्होंने पुनर्वास “सच में” पूरा न होने तक गेट बंद “न” करने का कोई आश्वासन भी नहीं दिया है. इस सन्दर्भ में केवल शिकायत निवारण प्राधिकरण से सलाह लेने की बात कही गयी है. देखिये कितनी सहज और सामान्य लगती है वह बात और परिस्थिति जिसमें लाखों की जलसमाधि होने जा रही है.
४. भारत सरकार के उस जवाबी पत्र में पुनर्वास के प्रावधान तक गलत बताए गए हैं. भूमिहीनों (मछुआरों, कुम्हारों, दुकानदारों) को वैकल्पिक व्यवसाय देने की बात “व्यावसायिक पुनर्वास” के नाम पर वर्ष 1993 के एक्शन प्लान-1993 में एक समग्र योजना के रूप में जुड़ी होने के बावजूद इसे केवल रूपए 33,000/- और रूपए 49,000/- के अनुदान पर केंद्रित रखकर अधिकारी-दलालों का गठजोड़ भ्रष्टाचार की ओर ले गया. इस बात की जांच भी उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति झा आयोग को सौंप दी किन्तु जवाबी पत्र में इस विषय को बेहद विकृत रूप में पेश किया गया.
५. सभी परिवार ‘पुनर्वासित” बताकर “शून्य बाकी” दिखाने की शासन की झूठी साजिश धरातल पर कभी सच साबित नहीं हो सकती है. फिर भी इस पत्र में, अन्य कई शपथ पत्रों की तरह ही, शासन ने यह रास्ता स्वीकार किया कि झूठी स्थिति बताते रहो. सरकार का केवल एक ही मकसद है बिना पुनर्वास किये बाँध को आगे बढ़ाना! यह झूठ तो नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की रिपोर्ट से ही खुल जाता है, जिसके हिसाब से 2143 परिवारों को जमीन देना बाकी बताया गया है. यह कैसे हुआ, क्या कोई इसका जवाब देगा?
६. शिकायत निवारण प्राधिकरण की सलाह से बाँध की ऊँचाई बढ़ाई गयी है और आगे भी यही होगा. यह दावा भी सही नहीं है. महाराष्ट्र के शिकायत निवारण प्राधिकरण की मंज़ूरी न होते हुए भी बाँध की ऊँचाई पहले 110 मीटर और फिर 122 मीटर तक बढ़ाई गयी. इसके साथ ही मध्यप्रदेश के पुराने अध्यक्ष के सेवानिवृत्त होते-होते उनकी मंज़ूरी ली गयी. सालों बाद नए अध्यक्ष की सहमति न होते हुए भी पुरानी सहमति उपयोग में ली गयी; यह सत्य बार-बार जग जाहिर हुआ है.
७. नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण तो शिकायत निवारण प्राधिकरण के विस्थापितों के पक्ष में आये कई आदेशों को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में दाखिल करके, सालों की देरी और अघोरी खर्च नुकसान भुगतने के लिए गरीब विस्थापितों को मजबूर कर रहा है. शिकायत निवारण प्राधिकरण ने कानूनी दायरे से बाहर जाकर दिए कुछ आदेशों पर भी विस्थापितों को न्याय माँगना पड़ा.
८. एक ही नहीं, अनेकों मुद्दे और बातों पर शासकीय पत्रों को नकार कर, अधिकारियों के झूठेपन और भ्रष्टाचार की पोल-खोल होनी है. जरूरी है कि इसके पीछे की ताकतों की छानबीन हो! सवाल यह है कि क्या सुश्री उमा भारती जी और प्रधानमन्त्री जी को भ्रमित किया जा रहा है? क्या उन्हें अज्ञान में रखा जा रहा है? या फिर जमीनी सच्चाई को झूठ का जामा पहनाने का काम उन्हीं के वरदहस्त से किया जा रहा है?
हमें विश्वास है कि सत्ता में बैठे लोगों ने नहीं, तो भी समाज इस स्थिति में जरूर दखल करेगा और हमें विश्वास है कि न्यायपालिका न्याय के इस मामले पर कभी तो सुनवाई करेगी. हमें यह भी विश्वास है कि जनप्रतिनिधि जनहित और न्याय के इस मामले के विधानसभा और संसद में जरूर उठाएंगे.
सवाल यह है कि न्यायमूर्ति झा आयोग की रिपोर्ट को पारदर्शिता के सिद्धांत के तहत विधानसभा और समाज के सामने सार्वजनिक किया जाएगा?
आज भी तीनों राज्यों और मुख्यतः मध्यप्रदेश के 45000 से अधिक परिवारों का क़ानून और न्यायपूर्ण प्रक्रिया से पुनर्वास होना बाकी है. क्या उनके पुनर्वास को प्राथमिकता दी जायेगी?
क्या यह उचित नहीं है कि मध्यप्रदेश सरकार हज़ारों परिवारों के हित में बाँध के गेट बंद न करने वाले निर्णय के पक्ष में खड़ा हो?
हमें देखना है कि आनंद विभाग की स्थापना करने वाला राज्य मध्यप्रदेश हज़ारों-लाखों लोगों की जमीन-जंगल-खेतों को डुबोकर सरदार सरोवर के पानी और बिजली पर कोई ठोस हक न पाने पर भी लाखों लोगों के पुनर्वास पर मौन रहेगा और उनकी जिंदगी को बर्बाद होते देखता रहेगा? क्या उसे मंज़ूर है कि लाखों जिन्दा पेड़ भी डूब जाएँ?
नर्मदा घाटी के लोग और उनके हकों के समर्थक सीधा जवाब चाहते हैं. उमा भारती जी ने भी संवाद के आश्वासन दिए, पर उनका पालन नहीं किया. अब तक सरकारी नुमायिन्दों से कई आश्वासन मिले, अब हम प्रधानमन्त्री जी से सीधा संवाद चाहते हैं. हम उन्हें बताना चाहते हैं कि भूतपूर्व प्रधानमन्त्रीगण सीधे संवाद करते रहे हैं. अब देखना यह है कि क्या नरेन्द्र मोदी जी ‘संवाद न करके’ अपवाद होंगे.
सादर
सरदार सरोवर बाँध के सन्दर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश है कि जब तक सभी बाँध प्रभावितों का पुनर्वास न हो जाए, तब तक बाँध को पूरा नहीं भरा जाएगा; किन्तु मध्यप्रदेश सरकार माननीय न्यायालय की अवमानना कर रही है.
सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई 139 मीटर पूरी हो चुकी है. इसके बाद बाँध पर गेट लगाने का काम भी पूरा हो चुका है.
बाँध की कुल ऊँचाई 139 मीटर हो गयी है. मध्यप्रदेश सरकार का कहना है कि बाँध की डूब में आने वाले सभी गाँवों और परिवारों का पुनर्वास हो चुका है. यह दावा पूरी तरह से झूठ है क्योंकि अब भी डूब प्रभावित क्षेत्र में 48 हज़ार परिवार निवास कर रहे हैं. उनकी कोई सुध नहीं ली गयी है. मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार की रणनीति यह है कि बाँध में 139मीटर की ऊँचाई तक पानी भर दिया जाए. जब डूब आएगी, तो आदिवासियों, दलितों, किसानों, मजदूरों के अपने घर-जमीन खुद छोड़ना पड़ेंगे और सरकारों को पुनर्वास के लिए कोई व्यवस्था नहीं करना पड़ेगी.
इस तरह की नीति से 244 गांव और एक नगर डुबोए जाने की तैयारी है.
नर्मदा अवार्ड में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बाँध का पूर्ण जलाशय स्तर (138.68 मीटर) होगा और अधिकतम जलाशय स्तर 141.21 मीटर होगा. खंड में स्पष्ट किया गया है कि अवार्ड के प्रकाशन दिनांक 7 दिसंबर 1979 से 45वर्षों तक इसका पुनरावलोकन / परिवर्तन नहीं होगा; किन्तु बैक वाटर लेवल के मामले में पूर्व में डूब से प्रभावित माने गए 52 गाँवों की डूब लेवल 138.68 मीटर के स्तर से भी कम करके दिखाया गया है और 15946 परिवारों को डूब से बाहर बताया जा रहा है, जबकि बाँध की ऊँचाई 138.68 मीटर ही रखी गयी है. यह असंभव काम मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार धोखधड़ी से मिलकर कर रहे हैं. वैज्ञानिक तथ्य यह है कि बैक वाटर लेवल (यानी बाँध के पीछे के जल भराव का स्तर) एक खास स्थान पर हमेशा बाँध की ऊँचाई के बराबर के जलस्तर से कहीं ज्यादा होता है. इस तथ्य को सरकार ने जानबूझकर छिपाया है. मध्यप्रदेश सरकार के इस कृत्य के कारण धरमपुरी सरीखा नगर बाँध के बैक वाटर में डूब जाएगा. सच यह है कि धरमपुरी के पुनर्वास की कोई प्रक्रिया ही नहीं चलाई गयी है.
आश्चर्यजनक है कि मध्यप्रदेश सरकार को इससे न तो सिंचाई का फायदा मिल रहा है, न बिजली का, और सबसे ज्यादा नुक्सान मध्यप्रदेश के लोगों को हो रहा है, पर मध्यप्रदेश सरकार चुपचाप गुजरात सरकार के सामने नतमस्तक है और अपने राज्य के नागरिकों के साथ हो रहे अन्याय पर चुप है.
हम सब जानते हैं कि सरदार सरोवर बाँध परियोजना के तहत पुनर्वास के नाम पर फर्जी रजिस्ट्री का भयंकर भ्रष्टचार हुआ है. इसकी जांच के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा न्यायमूर्ति झा आयोग की नियुक्ति की थी. अनुमान है कि जमीन खरीदी के नाम पर २००० फर्जी रजिस्ट्रियां करवाई गयी हैं, जिनमें भ्रष्टाचारियों के गठजोड़ ने जम कर भ्रष्टाचार किया है. अनुमान है कि पुनर्वास के लिए आवंटित 2300 करोड़ रुपयों में से 1000 से 1500करोड़ रूपए का उपयोग भ्रष्टाचार में हुआ है. न्यायमूर्ति झा आयोग अपनी रिपोर्ट पेश कर चुका है. उस रिपोर्ट को मध्यप्रदेश सरकार दबा रही है. आश्चर्यजनक है कि उसे सार्वजनिक किये बिना राज्य सरकार ने कार्यवाही प्रतिवेदन बनाने के लिए वह रिपोर्ट नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को सौंप दी है. जो इकाई खुद शंका के दायरे में है, वह कार्यवाही के लिए नियुक्त कर दी गयी है. माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश सरकार न्यायमूर्ति झा आयोग की रिपोर्ट को व्यवस्थित ढंग से खारिज करने की तैयारी में है. सुना है कि मध्यप्रदेश सरकार उस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखने की तैयारी कर रही है. बेहतर होगा कि उस रिपोर्ट पर सरकार सर्वदलीय विधायक समिति गठित कर कार्यवाही की तैयारी करे.
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