प्रेस-नोट | दिनांक 10/08/2016
न्या. झा आयोग की रिपोर्ट से साबित हुआ करोडों का भ्रष्टाचार।
सरदार सरोवर विस्थापितों के पुनर्वास में दलाल, अधिकारी-कर्मचारीयों तथा ठेकेदारों से लूट।
गलत नीति तथा आयोजन और आबंटन में अंधा धुंध कार्य
न.ब.आ. की मांग-दोषीयों पर कारवाई, अधिकारी-कर्मचारीयों का निलंबन, फर्जी रजिस्ट्रियॉ रदद और संपूर्ण पुनर्वास के बिना डूब पर रोक।
सी.बी.आई से पूरी घोटाले की जांच हो।
सरदार सरोवर विस्थापितों / प्रभावितों के पुनर्वास संबंधी कुल पांच कार्यो में भ्रष्टाचार संबंधी न्या. श्रवण शंकर झा आयोग की रिपोर्ट आखिर सार्वजनिक दायरे में आ ही गयी है। अगस्त 2008 में म.प्र. हाईकोर्ट के आदेश से गठित इस आयोग ने 7 साल तक जाँच करने बाद जनवरी 2016 में उच्च न्यायालय में अपनी रिपोर्ट पेश की। हाई कोर्ट रिपोर्ट न खोले, इसलिए राज्य षासन व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने भरसक प्रयास करने के बाद, हाईकोर्ट का 16 फरवरी 2016 आदेश सर्वोच्च अदालत से रूकवाकर रिपोर्ट मुख्य सचिव के हाथ आयी। मुख्य सचिव याने राज्य शासन को रिपोर्ट के आधार पर कारवाई करने बाद सर्वोच्च अदालत के साथ साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन (रिट पीटीशन 14765/2007, जबलपुर पीठ, उच्च न्यायालय मध्य प्रदेश में याचिकाकर्ता) को भी “एक्शन टेकन रिपोर्ट” याने कारवाई पर अहवाल प्रस्तुत करनी थी। आज तक यह नहीं हुआ है। शासन ने मात्र “शासकीय संकल्प” नाम की टिप्पणी, जिसमें कुछ कारवाई प्रस्तुत है,वही सामने लायी। विधानसभा के पटल पर इस टिप्पणी के साथ, आयोग की रिपोर्ट भी पेश करने के बाद,विरोधी दल के स्थानीय विधायकों ने मानित जवाबदेही के कारण रिपोर्ट आंदोलन को प्राप्त हुई है।
सर्वप्रथम शासन ने “शासकीय संकल्प” में प्रस्तुत किया और मीडिया के द्वारा फैलाया कि सभी अधिकारियों को आयोग ने निर्दोष घोषित किया है। प्रत्यक्ष में शासन से यह गलत व अधूरी टिप्पणी में निकाला गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन इस टिप्पणी को नकारकर, आयोग की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया आज यहाँ प्रस्तुत कर रहा है:-
- न्या. झा आयोग की रिपोर्ट से नर्मदा बचाओ आंदोलन के किसानों ने ढूँढ निकाला भ्रष्टाचार सही साबित होते हुए इसके लिए दोषी ठहराये गये 186 दलालो के अलावा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के शासकीय अधिकारी कर्मचारी जिन्होंने वित्तीय आंबटन का कार्य किया, राजस्व विभाग के पटवारी व अन्य रजिस्ट्री विभाग के कर्मचारी अधिकारी तथा बैक अधिकारी, दस्तावेज लेखक, इन्हें भी संलिप्त किया गया है।
- आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कुल 1560 रजिस्ट्रियॉ फर्जी है, (जबकि शासन 686 ही मंजूर करती थी) जिन्हें पांच वर्गो में बांटा गया है। इनमें शामिल हैः-
अ) ऐसी रजिस्ट्रियॉ जिनके दस्तावेज करने वाले, खुद को भूधारक बताने वाले विक्रेता फर्जी है, ऐसे क्रय झूठ है।
ब) झूठ व्यक्ति ने शासकीय या अस्तित्व में ही न हो, ऐसी जमीन की रजिस्ट्री (पत्र )
(इन दोनो वर्गों में आने वाली कुल रजिस्ट्रियों विक्रय पत्रों की संख्या रिपोर्ट अनुसार जोडपत्र-2 के अनुसार 999 है।)
क) जबकि सही भूधारको से विक्रय पत्र पेश करवाये गये है, उनसे प्रत्यक्ष में किसी न किसी प्रकार के (खेती, कुआँ इत्यादि के लिए) कर्ज लेने के नाम से कागजों पर हस्ताक्षर करवाये गये है।
ड) कुछ विक्रेताओं से, उनकी जमीन, अंततः उनसे ली नहीं जाएगी, इस स्पष्ट समझाइश के साथ, जमीन बेची गयी है।
केवल (विशेष पुनर्वास अनुदान एस. आर. पी.) की दूसरी किश्त निकालने के उद्देश्य से ही यह किया गया है,जो भी बोगस याने झूठा हस्तांतरण है (जोडपत्र 3 में है)
इ) पाचवे वर्ग में ऐसी रजिस्ट्रियॉ आती है जिसमें जमीन विस्थापित को बेची जाकर फिर वही जमीन दूसरे विस्थापित को फिर से बेची गयी।
यह प्रकिया जारी रहते हुए जमीन बाकी मूल भूधारक के पास उसके कब्जेमें ही रह गयी ऐसी रजिस्ट्रियों की सूची जोड पत्र क्रं. 2 व 3 में है।
इस पर विस्तृत टिप्पणी देते हुए आयोग ने कुछ विषेष बात कहीं है, जैसे कि
‘‘यह आश्चर्यजनक बात है कि मूल जमीनधारक ने शिकायत करने पर भी राजस्व विभाग के अधिकारियों ने नामांतरण कर दिया और “विक्रेता” बताकर मूल भूधारक के खाते से उन जमीन की नोंध सर्वे नं. हटा दी गयी”
“यह भी विशेष है कि जबकि किसी एक जमीन की एक से अधिक रजिस्टियों, बाँध प्रभावितों से पेश की गयी, तब भी किसी प्रकार की जांच के बिना नगद रकम अदा की गयी।“
“जहां फर्जी विक्रय पत्र पेश किये गये, वहां गतिमानता से दूसरी किश्त दी गई किन्तु जब सही विक्रय पत्र प्रस्तुत किये गये तब उस पर आने प्रकार की कड़ी जॉच करवाई गयी।
“कई प्रकरणों में विक्रय पत्र दलालों से ही न.घा.वि.प्रा. के कार्यालय में पेश किये गये और उस पर आधारित चेक वितरण किया गया।“
“इस के चलते, सर्वोच्च अदालत की यह मनीषा, कि सरदार सरोवर से प्रभावित की गयी है। खड़कसिंह पटवारी, सिंघाना, मनावर, जगदीश ठाकुर मनावर, अधिवक्ता विजय जाट, सूरज जाट, पवन जाट, साततलाई जैसे के नाम कई विस्थापितों के बयानों में आ चुके है।
आयोग ने 186 दलालों की सूची जोड़कर कहा कि उन्होने जबकि अपना इसमें सहभाग नकारा है, आयोग की खोज से यह प्रथमदर्शनी साबित होता है कि उन्होने इस अवैध लेने देन में हिस्सा लिया है। आयोग के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर पैसे का आबंटन करने वाले बडवानी, अंजड, राजपुर, जिला बडवानी, मनावर, कुक्षी धरमपुरी जिला धार में पदस्थ भूअर्जन व पुनर्वास अधिकारियों ने विक्रय पत्रों की सत्यता तक परखी नहीं। इसमें म.प्र. शासन से ही भुगतान के पहले नियमों का उल्लंघन किया गया है।
आयोग ने अपनी संपूर्ण खोज से भ्रष्ट प्रक्रिया का वर्णन करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि “विशेष पुनर्वास अनुदान” की नगद राशि देने की पूरी नीति ही गलत होना, इस फर्जीवाड़े के पीछे का प्रमुख कारण है।
88 पुनर्वास स्थलों के निर्माण में ………….
- आयोग ने 88 पुनर्वास स्थलों पर बने निर्माण कार्यो की जांच मौलाना आजाद इन्स्टियूट ऑफ टेक्नोलोजी (मानित), भोपाल व आई.आई.टी., मुंबई के द्वारा करवायी थी। न.ब.आ. ने इस गहराई से की गई जांच रिपोर्ट को सही माना था और आयोग के समक्ष तकनीकी मुददों, भी पेश किये थे। लेकिन न.घा.वि.प्रा. ने संयुक्त संचालक फील्ड के द्वारा इस रिपोर्ट को पूर्ण रूप से गलत, जांच के दायरे से बाहर मानकर आपत्ति उठायी थी।
आयोग ने इस रिपोर्ट के एक एक हिस्से पर अपनी टिप्पणी और निष्कर्ष निकाले है, जिनमें प्रमुख निम्न हैः-
अ) न.घा.वि.प्रा. के इंजिनीयर अधिकारीयों तथा ठेकेदारों ने पुनर्वास स्थल नियोजन में कई सारे नियमों का उल्लंघन किया है। जैसे कि, किसी भी निर्माण में भू-गर्मशास्त्रीय जांच (भूमि की) होना आवश्यक होता है जो नहीं की गई। वह भी काली कपास की मिटटी में यह कार्य होते हुए भी।
ब) विविध स्थलों की विशेषता ध्यान में लेने के बदले एक ही “मॉडल डिझाइन” निकालकर ठेके दिये गये। ट्रान्सफॉर्मर्स की खरीदी में, बड़ा घोटाला यह है कि 425 ट्रान्सफॉर्मर्स की संख्या दिखाई गई और प्रत्यक्ष में 102 ही सार्टिफिकेटस दिखाए गये। इसमें निश्चित ही एक ही ट्रान्सफॉर्मर 10 से 20 पुनर्वास स्थलों के लिए खरीदा गया और न.घा.वि.प्रा. तथा इलेक्ट्रीक सप्लाय कंपनी इसमें सम्मिलित है।
- पुनर्वास निर्माण कार्य में “रपटों” का कार्य, जरूरत से ज्यादा किया गया जिसमें खर्चा भी अधिक होकर, उद्देश्य अनेक स्थलों पर पूरा नहीं हो पाया।
- सुरक्षा की दखल न लेते हुए, जलवाहिनी तथा ड्रेनेज वाहिनी के कार्य में गफलत है, जैसे कि धरमपुरी पुनर्वास स्थल पर।
- पानी की परीक्षा, आसैनिक, फलुराईड की दृष्टि से न करते हुए पानी पुनर्वास स्थल पर उपलब्ध कराया गया है।
- अंधाधुंध नियोजन तथा निगरानी का पूर्ण अभाव, आयोग के निष्कर्ष में है। पीडब्लुडी मॅन्युअल अनुसार कार्य नहीं किया गया। जीरों तकनीकी जॉच, तकनीकी मंजुरी की प्रक्रिया, क्वालिटी कंट्रोल आदि में काफी त्रुटियां बतायी गयी है।
- अनेक निर्माण कार्य प्रत्येक की 50 लाख के उपर की योजनाएं होते हुए भी नियमों का पालन करते हुए, क्वालिटी कंट्रोल नहीं किया गया।
- निकास कार्य के लिए नालीयों बनाने का कार्य प्रायव्हेट एजेंसी, उधे अॅक्वा कन्सलटंट्स, भोपाल को दिया गया। उनके डिझाइन्स न.घा.वि.प्रा. के द्वारा अनेक मंजुरीयों की प्रक्रिया न करते हुए, मंजूर किये गये। उनमें काफी तकनीकी मिटटी में अर्धगोलाकार, वेपस बनेीपवद के बिना बिठाने से, निकास व्यवस्था ही असफल होने की स्थिति में है।
- ऐसे कई निष्कर्षो से न.घा.वि.प्रा. के कई अधिकारी नियमों को पालन न करने के लिए दोषी साबित हो सकते है। पूर्व में जिन पर कारवाई की गई है, ऐसे 40 इंजिनीअर्स अधिकारी दोषी फिर से ठहराये गये है।
- न.ब.आ. का मानना है कि इन्हें नौकरी से हटाने के साथ, इन पर अपराधिक प्रकरण, आईपीसी, सी आर पी सी के तहत दाखिल करके उनसे, पूरे नुकसान की वसूली जरूरी है, जैसे कि महाराष्ट्र में जमीन खरीदी घोटाले में किया गया।
अपात्रों को मुआवजा व अनुदानों का भुगतान
- आयोग का निष्कर्ष है कि अनुदान भुगतान में कई अनियमितताएं है, जिसमें पुनर्वास नीति के प्रावधानों का उल्लघंन किया गया है। आयोग ने इसमें दलालों अधिकारीयों के गठजोड़ से भी अधिक स्पष्ट भूमिका ली है।
आजीविका अनुदान संबंधी 1993 की पुनर्वास योजना नीति के तहत प्रस्तुत प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है। भवरिया जैसे गाँव की श्रीमति कालीबी का उदाहरण रेकॉर्डस अपूर्ण आजीविका प्राप्ती का प्रमाण न होते हुए भुगतान बताता है और विविध शपथ पत्रों कोर्ट समक्ष रखे प्रकरणों की जांच से यह निष्कर्ष आया है। इसमें पुनर्वास अधिकारी श्री माहेष्वरी संलिप्त है। न.घा.वि.प्रा. ने दिये फाइलों में कही हस्ताक्षर नही, तो वाउचर नबर नहीं, यह पाने पर आयोग ने अनियमितता का निष्कर्ष जाहीर किया है। पिपरी, धनोरा,सेगावा, पिपलुद जैसे बडवानी के कई गाँवों के प्रकरणो/ शिकायतों की जांच जिलाधीशों से करवाई गयी थी उसे आयोग ने संदर्भ के रूप में देखते हुए,
- गांगली तथा कवठी जैसे गाँवों में हुए बड़े घोटालों में रेकॉर्डस अपूर्ण पाये गये तथा मंजुरी देने वाले सरपंच और तहसीलदारों की मंजुरी प्रक्रिया गलत मानी गयी है।
न.ब.आ. का मानना है कि हजारों भूमीहीनों के साथ इस कारण खिलवाड़ होकर उन्हें वैकल्पिक आजीविका नहीं मिल पायी है तथा करोड़ों का भुगतान केवल 33000 व 49000 होने से व्यर्थ गया है। फर्जीवाड़े में संलिप्त अधिकारी, न.ब.आ.का कहना है, आज भी न्यायालय में हाजिर नहीं होते, फैसला होने नहीं देने।
घर प्लॉट आबंटन व पुनर्वास स्थल नियोजन
- घर प्लॉट प्रथम आबंटित होकर फिर बदलाव करना आयोग ने गैरकानूनी, नियमों के विपरीत बताया है। 1993 से बनती राज्य की पुनर्वास नीति में इस तरह बदलाव करने का कोई प्रावधान नहीं होते हुए अधिकारियों ने ऐसा बदलाव, विस्थापितों को भी कोई जानकारी न देते हुए किया, इसलिए आयोग ने उन्हें दोषी पाया है।
- पुनर्वास स्थलों के ले-आउट प्लान्स एक बार बनने के बाद उसके मंजुरी के बाद, उनमें बदलाव किया गया, जिसकी प्रतियॉ उसके आयोग ने मांगने भी नहीं दी।
आयोग के अनुसार खुद न.घा.वि.प्रा. अधिकारियों ने माना है कि घर प्लॉट आबंटन के कोई स्पष्ट नियम नहीं थे। लेकिन भूराजस्व संहिता का उल्लंघन हुआ है। आयोग ने यह भी पाया है कि रास्ते के बाजू के प्लॉटस बदलकर, पैसे लेकर धनिकों को देने की हकीकत घटी है। घर प्लॉट आबंटन में प्रथम दर्शनी भ्रष्टाचार पाया गया है।
- 54 विस्थापितों के धारा 4 भूअर्जन कानून के बाद किये निर्माणों का मुआवजा देना, आयोग के अनुसार बड़ी अनियमितता अधिकारीयों से हुई है।
- बहुत बड़े पैमाने पर न.घा.वि.प्रा. के अधिकारियों से जांच के बिना किया जाने का निष्कर्ष न.घा.वि.प्रा ने आयोग के समक्ष रखी फाइलों से निकला है। अवयस्क व्यक्तियों को भुगतान किया गया है तथा भूमीहीन कृषि मजदूर है या अन्य भूमीहीन, इसकी जांच भी नहीं की गई है, यह पाने पर आयोग ने भूअर्जन व पुनर्वास अधिकारियों की भूमिका संदेहास्पद बतायी है। आयोग के अनुसार वैकल्पिक आजीविका प्राप्त होने संबंधी कागजातों का अभाव है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन का निष्कर्ष व मांगे
- नर्मदा बचाओ आंदोलन का मानना है कि न्या. झा आयोग की जांच रिपोर्ट से सरदार सरोवर विस्थापितों के पुनर्वास के लिए आबंटित 2300 करोड रू. के खर्च में बहुत बडा हिस्सा व्यर्थ जाना, उसमें तथा अनियमितता, गैरकानूनी कार्य व भ्रष्टाचार साबित हुआ है।
- आयोग की रिपोर्ट में प्रस्तुत निष्कर्षो का आंदोलन समर्थन करता है।
- इस भ्रष्टाचार में 186 दलालों की सूची जाहीर हुई है जिनके साथ न.घा.वि.प्रा., राजस्व व रजिस्ट्री विभाग के पटवारी, कर्मचारी, अधिकारीयों के अलावा दस्तावेज लेखक व अन्यों का सहभाग व गठजोड़ सामने आया है।
- 1560 फर्जी रजिस्ट्रियाँ तत्काल रद्द करके, पात्रतानुसार सभी विस्थापितों को जमीन का हक देना जरूरी है।
- फर्जीवाड़े में शामिल निर्दोष विक्रेताओं की जमीन उनके नाम वापस होना, नामांतरण करना जरूरी है।
- सभी दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों पर फौजदारी अपराध प्रकरण दाखिल होना जरूरी है। भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून, 1988 के तहत भी अधिकारी दोषी माने जाने चाहिए, जहां अनियमितता निश्चित साबित हुई है। संबंधित अधिकारीयों पर भ्रष्टाचार प्रतिबंध कानून, 1988 के तहत भी कार्यवाही होनी चाहिए। शासन की तिजोरी का तथा अन्य नुकसान की भरपाई दोषीयों से वसूली के द्वारा की जानी चाहिए। इसमें पुनर्वास स्थल निर्माण में भ्रष्टाचार के दोषी इन्जनियर-अधिकारी शामिल हो।
- पिछले 10-20 सालों से न.घा.वि.प्रा. में पदस्थ अधिकारियों को हटाकर दोषीयों को निलंबित करना चाहिए। वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका की पूरी जांच जरूरी है।
- इस जांच के बाद संपूर्ण घोटाले की गहरी जांच सी.बी.आई. को देना, 2008 के म. प्र. उच्च न्यायालय के फैसले अनुसार जरूरी है।
- जमीन, आजीविका के साथ पुनर्वास व पुनर्वास स्थलों का निर्माण, भ्रष्टाचार के कारण सही न होकर,हजारों विस्थापितों की वंचना और आदिवासी-दलित परिवारों पर अत्याचार भी हुआ है। इस स्थिति में घाटी में आज भी बसे परिवारों को डूबाने पर, बांध का कार्य आगे ले जाने पर रोक लगानी चाहिए।
- “विशेष पुनर्वास अनुदान” की जमीन के बदले नगद पैसा भुगतान की नीति भ्रष्टाचार के लिए आयोग की रिपोर्ट अनुसार कारण व दोषपूर्ण मानी जाने से, वह रद्द होनी चाहिए।
- पुनर्वास स्थलों का पुनर्निर्माण, फर्जीवाड़े में फंसाये गये परिवारों को जमीन का हक देना, व्यर्थ गवाया खर्च इत्यादि के साथ ठेकेदारों की, बांध निर्माण में हुई देरी के लिए हुई भरपाई से कमाई मिलकर यह घोटाला 1500 करोड़ रू. से भी अधिक का साबित हुआ है।
- म.प्र. उच्च न्यायालय ने, 2008, 2009 के आदेश अनुसार इस प्रकरण की आगे सुनवाई जारी रखनी और कार्यवाही पर निगरानी व फैसला जरूरी होगा।
देवीसिंह तोमर, रणवीरसिंह तोमर, राहुल यादव, मेधा पाटकर,
मोहन पाटीदार, मधुरेश कुमार, देवेन्द्र तोमर, अमूल्य निधी
संपर्क नं. 9179617513
फर्जी विक्रय पत्रों की सूचीः न्या. झा आयोग की रिपोर्ट (जोड पत्र क्रं. 3)
अलीराजपुर, बडवानी, धार, खरगोन, देवास जिले के निम्नलिखित सूची में दर्शायें गए विक्रय पत्र पूर्ण रूप से फर्जी है। आयोग द्वारा एकम की गई साक्ष्य अुनसार इन विक्रय पत्रों की प्रकृति यह है कि विक्रय पत्र में दर्शाई गई जमीन मौके पर मौजूद नहीं है/ विक्रेता गलत व्यक्ति है/ शासकीय एवं नजूल की भूमी का विक्रय किया गया है। फर्जी ऋण पुस्तिका खसरा खतौनी आदि तैयार किए गए है/ कम भूमि का ज्यादा रकबा बताकर विक्रय किया गया है।
क्रमांक | जिला | फर्जी रजिस्ट्रिी की संख्या |
1 | अलीराजपुर | 35 |
2 | बड़वानी | 153 |
3 | धार | 260 |
4 | खरगोन | 437 |
5 | देवास | 143 |
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