मध्य प्रदेश शासन को सर्वोच्च अदालत ने रिपोर्ट सौंपते हुए ३०.३.२०१६ के रोज आदेश दिया था कि वह रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करे और Action Taken Report सर्वोच्च अदालत के समक्ष पेश करे। राज्य शासन ने ५ अगस्त, २०१६ का एक आदेश नर्मदा विकास विभाग से निकलवा कर यह तय किया कि फर्जी रजिस्ट्रियों के मामले में वह क्रेता (विस्थापित), विक्रेता, दलालों पर अपराधिक प्रकरण दर्ज करेंगे। यह दर्ज करने वाले भूअर्जन व पुनर्वास अधिकारीही होंगे। साथ ही जिन पटवारियों के खिलाफ प्रथमदर्शनी भी अपराध होगा, उन की जाँच संभागायुक्त, इन्दौर ने करने के बाद ही, ६ महीनों के भीतर उनमें से दोषी पाए गए व्यक्तियों पर कार्रवाई होगी। आजीविका अनुदान के मुद्दे पर इस आदेश/निर्णय में कोई उल्लेख नहीं है।
इस कार्रवाई को झा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर करने की कार्रवाई बताकर मध्य प्रदेश शासन ने, विस्थापितों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने वाले ३.३.२००८ के आदेश को खारिज करने की अर्जी याचिका जबलपुर हायकोर्ट में दाखिल करने पर आज सुनवाई हुई। मध्य प्रदेश हायकोर्ट ने अपना अंतरिम आदेश रद्द करना नामंजूर किया। उच्च न्यायालय ने अपने आज के, २४.८.२०१६ के आदेश में कहा है कि “झा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई राज्य शासन करना चाहे तो सर्वोच्च अदालत ने आदेश किए अनुसार करे और कार्रवाई-रिपोर्ट (Action Taken Report) उनके सामने पेश करे। इस में उच्च न्यायालय के किसी आदेश से अवरोध नहीं होगा।”
आंदोलन का कहना है कि उच्च न्यायालय ने ३.३.२००८ का अंतरिम आदेश खारिज न करना सही है। लेकिन ५.८.२०१६ को नर्मदा विकास विभाग ने जो निर्णय लिया है और क्रेता-विक्रेताओं के खिलाफ २००८ में दर्ज किये २८८ प्रकरण तथा अन्य ७०५ व्यक्तियों पर गुनाह दाखिल कर रहे हैं, यह झा आयोग की रिपोर्ट अनुसार करने की कार्रवाई नहीं है। आयोग ने क्रेता-विक्रेताओं को दोषी नहीं ठहराया है तो उनके खिलाफ कार्रवाई कैसी?
नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण अपने अधिकारियों को बताने की खूब कोशिश कर रहा है, लेकिन आयोग की लम्बी, गहरी जाँच और रिपोर्ट से ही साबित हुआ है कि दोषी शासन की गलत नीति, अंधाधुंध या बिना नियोजन से किया गया कार्य, बिना जाँच किया भुगतान इ. के लिए जो जिम्मेदार है, वह दोषी हैं। विस्थापितों को जेल दिखानेवालों को एक दिन निश्चित ही उनकी जगह दिखाएँगे।
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