प्रेस-नोट | दिनांक 07/09/2016 
बिजली के नाम अंधेरा: पुनर्वसाहटों में न.घा.वि.प्रा. का घोटाला
519 ट्रान्सफाॅर्मर्स रिकॉर्ड पर: प्रत्यक्ष में 180 उत्पादक कंपनी के प्रमाण पत्र। 
खरीदी का भुगतान करने वाली न.घा.वि.प्रा. से विद्युत कंपनी पर दोषारोप निराधार।  
 
        सरदार सरोवर विस्थापितों के पुनर्वास के एक-एक कार्य में जबकि भ्रष्टाचार हुआ है, तब विद्युतीकरण का मामला तो साफ रूप से घोटाला साबित हुआ है। मौलाना आजाद राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, भोपाल व आई. आई. टी, मुम्बई के द्वारा 88 पुनर्वास स्थलों की जो जांच, न्या. झा आयोग के कार्य दौरान करवायी गयी, उसमें एक विशेष घोटाला सामने लाया गया है, जो कि ट्रान्सफाॅर्मर्स की खरीदी का है। 
 
        नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का दावा रहा है कि सभी पुनर्वास स्थलों के लिए कुल 519 ट्रान्सफाॅर्मर्स  खरीदे गये। जबकि जांच रिपोर्ट के अनुसार, हर ट्रान्सफाॅर्मर्स की खरीदी के वक्त, उत्पादक कंपनी के द्वारा अेक जांच सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसे कि उसकी गुणवत्ता निश्चित होती है। जांच में पाया गया कि 519 के बदले 180 सर्टिफिकेटस् जांच दल को दिखा पाया और उनमें से भी 96 सर्टिफिकेटस् पर ठेकदारों की हस्ताक्षर नहीं थी। 
 
       क्या ठेकेदारों के हाथ सभी ट्रान्सफाॅर्मर्स पहुॅचे भी थे या नहीं? जांच दल की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से यह भी बताती है कि ट्रान्सफाॅर्मर्स की गुणवत्ता के लिए सर्टिफिकेट, केन्द्रीय विद्युत् अधिनियम, 2003 के तहत जो ‘‘ स्वतंत्र विद्युत निगरानी मंडल ‘‘ होंता है, उससे इलेक्ट्रिकल इन्स्पेक्टर्स तथा विभागीय इलेक्ट्रिकल इन्स्पेेक्टर्स ने तपास करके हाय और एक्स्ट्रा हाय व्होल्टेज (उच्च दाब) के लिए प्रमाण पत्र देना और वह प्रमाण पत्र ट्रान्सफाॅर्मर्स के साथ जोड़ना जरूरी होता है। 
 
        जाँच में यह पाया गया कि 425 ट्रान्सफाॅर्मर्स  के नाम से 102 सर्टिफिकेटस् पाये गये जो कि कार्यकारी अभियंता, विद्युत सुरक्षा और विभागीय विद्युत इन्स्पेक्टर्स से प्राप्त किये गये थे। यानि कि 94 (519 – 425) ट्रान्सफाॅर्मर्स  विभागीय विद्युत इन्स्पेक्टर से, तपास किये बिना ही पाये गये, जबकि ऐसा प्रामण पत्र विद्युत सुरक्षा नियम, 1956 के अनुसार भी बंधन कारक है।  
 
        तो आखिर कितने ट्रान्सफाॅर्मर्स कौन सी वसाहटों में बिठाये गये? जांच दल ने एक ही नंबर के तथा एक ही प्रमाण पत्र के ट्रान्सफाॅर्मर्स  एक से अधिक वसाहटों में बिठाये जाने की हकीकत रिपोर्ट में एक तक्ते के रूप में सामने लायी है, जो कि झा आयोग की रिपोर्ट में भी उदृधृत की गयी है। 
 
        विभागीय विद्युत इन्स्पेक्टर्स ने दिये गये प्रमाणपत्रों की सत्यता पर भी जांच दल ने सवाल खडे किये है। कई प्रमाण पत्र, स्वीचेस् न होते हुए भी यह बाद में, महिना भर में बिठायेे जाएंगे, ऐसी शर्त के साथ जारी किये गये है। एक प्रमाण पत्र, जो उज्जैन विभाग के विद्युत पर्यवेक्षक (इन्स्पेक्टर) से दिया गया है, वह तो कायम फाॅर्मेट छोडकर टाइपिंग करके बनाया गया है। इस पर निश्चित ही संदेह है, यह कहना जांच दल का है। यह बात रिपोर्ट में नोट की गई है कि उज्जैन विभाग से धार जिले के 11 पुनर्वसाहटों की जांच एक ही दिन, 27/9/2003 के रोज होकर प्रमाण पत्र दिया जाने का रिकार्ड है, जो कि संदेहास्पद लगता है क्योकि एक ही दिन में यह होना असंभव सा है। रिपोर्ट भी एक ही दिन में टाइप की जाना संभव नहीं, इसलिए इसकी जांच जरूरी है। 
 
      विद्युत पर्यवेक्षक प्रमाण पत्रों पर शुरुआत के इलेक्ट्रिकल इन्स्पेकटर से चार्जिंग के लिए ‘‘मंजूरी‘‘  यह लिखकर प्रमाणपत्र दिया जाता था, लेकिन बाद में कई प्रमाणपत्र मात्र ‘‘ हस्तांतरण प्रमाण पत्र ’’ के रूप में ही बनाकर म.प्र. राज्य विद्युत मंडल को दिये गये, यह बात रिकॉर्ड पर है, जबकि यह निश्चित कि इससे अनेक अधिकृत संस्थाओं गठजोड स्पष्ट है। गडबडी तो इससे भी बतायी गयी है कि सेमल्दा वसाहट के लिए 2 प्रमाण पत्रों द्वारा 3 ट्रान्सफाॅर्मर्स  मंजूर किये बताये है, प्रत्यक्ष में 8 ट्रान्सफाॅर्मर्स  बिठाये गये, यह रिकॉर्ड पर है। हस्तांरण का रिकॉर्ड, उसमें दिये हस्तांतरित किये व नंबर्स एवम् विद्युत पर्यवेक्षकों का रिकाॅर्ड में कोई तालमेल नहीं पाया गया। प्रमाण पत्रों के फाॅर्मेट से कुछ जानकारी हटायी भी गई है, यह हकीकत जांच में पकड़ में आयी है। 
 
      जांच दल की गहरी जांच इस स्तर तक होकर रिपोर्ट में सच्चाई उजागर हुई है कि एक ही सरल क्रमाक का ट्रान्सफाॅर्मर्स  एक से अधिक पुनर्वास स्थलों के लिए हस्तांतरित किये जाने की बात साबित हुई है। उदाहरण रूप में, ज्ज्स्ध् च्च्ध् 27096 नं. का ट्रान्सफाॅर्मर्स , प्रमाण पत्र नं. 1527, दिनांक 13/12/2005 का प्राप्त करते हुए पहले मेहगांव के लिए, फिर वही 15/12/2005 के रोज और फिर अवल्दा के लिए 28/2/2007 को भी हस्तांतरित किया हुआ, शासकीय रेकाॅर्ड में पाया गया। 
 
       इस तरह का फर्जीवाडा तक्ता क्रं. 4.2 और 4.3 से मानित के रिपोर्ट में (आयोग रिपोर्ट का जोडपत्र नं. 12) यह भी जानकारी प्राप्त होती है कि एक ही ट्रान्सफाॅर्मर्स एक ही क्रमांक के एक से अनेक वसाहटों में स्थापित किये जाने का दावा न.घा.वि.प्रा. ने किया है। इसमें जांच दल का निष्कर्ष है कि राज्य विद्युत मंझल, न.घा.वि.प्रा. एवं प. क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी व ठेकेदारों का गठजोड दिखाई देता है। 
 
       विशेष बात यह है कि जब झा आयोग के रिपोर्ट के द्वारा पुनर्वसाहटों के निर्माण कार्य में धांधली व घोटाला सामने आया तब न.घा.वि.प्रा. ने इसे विद्युत वितरण कंपनी की जिम्मेदारी जाहिर की है और जांच भी न.घा.वि.प्रा. एवम् प. क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के मुख्य अभियंता मिलकर ही संयुक्त जांच करने की कार्यवाही प्रस्तावित की है। यह तो इतना बड़ा घोटाला दबाने की साजिश है। 
 
       नर्मदा बचाओ आंदोलन का स्पष्ट मानना है कि इस करोड़ो के घोटाले में न ही केवल ठेकेदारों इजिनीयरों को बल्कि शासन के उच्च अधिकारीयों जिन्होने न ही निगरानी की बल्कि ट्रान्सफाॅर्मर्स  की खरीदी में भुगतान किया, उन्हें भी दोषी ठहराना जरूरी है। 
 
 
राहुल यादव                  देवेन्द्र तोमर                    मेधा पाटकर  
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