ands of displaced people coming together in a peaceful protest against gross injustice meted out to them in the name of rehabilitation for construction of the Sardar Sarovar dam in Gujarat.
As soon as the Modi government came to power in 2014, they took a decision to impose illegal submergence by authorizing to complete the dam to its full height of 138.68 meters, denying the Supreme Court’s ruling that any expedition of construction is pre-conditional upon complete rehabilitation of the dam oustees.
The Government of Gujarat has entered into an agreement to supply 30 lakh litres of water per day to Coca Cola and 60 lakh litres to Car industries at Anand, clearly indicating the parties who are the actualbeneficiaries of the Sardar Sarovar dam.
alghat, Dharampuri, Manawar and Badwani.

· 244 villages and 1 township affected at full height of Sardar Sarovar Dam, with 192 of the villages in worst hit Madhya Pradesh
· 50,000 families in Madhya Pradesh affected and 20,822 ha land submerged
· 45000 familes are yet to be rehabilitated.
· 30,000 families continue to live in the submergence affected villages of MP without full rehabilitation as of today
· Madhya Pradesh will have no right to a drop of water from the Sardar Sarovar reservoir and would only get 56% of the total power generated
· original outlay of the dam be increased from 4200 crores to 90,000 crores INR, an increase of cost by about 21 times
· Large scale scam of corruption of 1000-1500 crores INR that took place in the M.P. rehabilitation process, with Jha committee report being withheld by the MP Government
· Government of Gujarat has already de-commanded 4 lakh hectares of land from the Total Command Area of the dam, mostly in favor of Industrial Areas and Investment Regions such as the Delhi-Mumbai Industrial Corridor (DMIC)
Devram Kanera Rahul Yadav (Badwani) – 9179617513 Medha Patkar
नर्मदा किनारे के 40 हजार परिवार बगैर पुनर्वास के डूब की कगार पर
गैर कानूनी डूब को चुनौती देने के लिए बॉंध प्रभावितों का
नर्मदा जल, जंगल, ज़मीन हक सत्याग्रह 30 जुलाई से
नर्मदा जल, जंगल, ज़मीन हक सत्याग्रह 30 जुलाई 2016 से गॉंधी समाधि के सानिंध्य में नर्मदा किनारे स्थित राजघाट (बड़वानी) में प्रारंभ हो रहा है। सत्याग्रह में नर्मदा घाटी के किसान-दलित-आदिवासी-मछुआरों, कुम्हारों आदि के साथ देश भर के समर्थक और गणमान्य व्यक्ति शामिल होकर सरदार सरोवर के नाम पर डूब प्रभावितों के साथ किए जा रहे अन्याय का प्रतिकार करेंगें।
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के साथ ही सरदार सरोवर बॉंध के गेट लगाकर उसे पूर्ण जलाशय स्तर 138.68 मीटर तक भर कर नर्मदा घाटी में गैरकानूनी डूब लाने निर्णय ले लिया था। इस निर्णय से सर्वोच्च न्यायालय के पुनर्वास के बाद ही आगे के बॉंध निर्माण को मंजूरी देने संबंधी आदेश का उल्लंघन किया गया है।
बॉंध के गेट बंद करने से बॉंध पूर्ण स्तर तक भर जाएगा और गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 244 गॉंवों के 40 हजार से अधिक परिवारों, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं, की खेती और घर डूब जायेंगें। डूब में मध्यप्रदेश का धरमपुरी कस्बा भी शामिल हैं।
सत्याग्रह की पूर्व संध्या पर इंदौर के इंडियन कॉफी हाऊस में आयोजित पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए मेजर जनरल (रिटा) एवं जल विशेषज्ञ श्री सुधीर वोंबटकेरे ने कहा कि लम्बे समय तक चलने वाले जन आंदोलन वैधानिक, सरकारी और नौकरशाही के समर्थन से वंचित किए गए हैं। इस संबंध में मैनें प्रधानमंत्री श्री मोदी को लिखा भी है लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया। सारी सरकारें समान रुप से जिम्मेदार हैं और सभी की विकास नीतियॉं शोषण आधारित है।
सिंचाई और पेयजल लाभों के दावे भी खोखले साबित हुए है। नहरों का काम पिछले 30 सालों में मात्र 30-35 प्रतिशत हो पाया है। कार्पोरेट और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध करवाने का सरकारी पैमाना बदलता रहा है। यह जाहिर है कि दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे के तहत आने वाले उद्योगों को पानी देने के लिए गुजरात सरकार सरदार सरोवर के कुल कमाण्ड क्षेत्र में से 4 लाख हेक्टर कम करने का निर्णय ले चुकी है। गुजरात सरकार के इस निर्णय के प्रथम लाभांवितों में अडाणी-अंबानी भी शामिल हैं।
गुजरात सरकार द्वारा सरदार सरोवर की नहर से 30 लाख लीटर /दिन कोका कोला को और 60 लाख लीटर/दिन आणंद स्थित कार कंपनी को दिए जाने का अनुबंध करने से स्पष्ट होता है कि सरदार सरोवर के असली लाभार्थी कौन हैं।
गुजरात के आरटीआई कार्यकर्ता श्री भारतसिंह झाला ने कहा कि ऐसा बताया गया कि गुजरात के सारे गॉंवों को सिंचाई मिलेगी। लेकिन हमने देखा है नर्मदा का पानी किसानों के पहले उद्योगपतियों को दिया जा रहा है। संभव है पानी कच्छ तक भी पहुँच जाए लेकिन ये किसानों और आदिवासियों के लिए नहीं बल्कि उद्योगों के लिए होगा। गुजरात 2 हजार से अधिक गॉंव साल दर साल लगातार पूर्ण या आंशिक सूखे की समस्या से ग्रसित है लेकिन उन तक नर्मदा का पानी नहीं पहुँचाया गया है। अब हम समझ गए है कि मेधाजी गुजरात विरोधी नहीं है बल्कि विकास का सरकारी मॉडल ही गुजरात विरोधी है।
अब यह अधिकृत रुप से स्वीकार किया जा चुका है कि सरदार सरोवर परियोजना की लागत 4 हजार 200 करोड़ से बढ़ कर 90 हजार करोड़ रुपए हो चुकी है यानी लागत में 21 गुना वृध्दि। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को बिजली में उनका उचित हिस्सा नहीं दिया जा रहा है। गुजरात को कहा गया है कि वह विद्युत संयंत्र बंद करने का मुआवजा दे लेकिन मध्यप्रदेश मुआवजा लेने के लिए भी इच्छूक नहीं है। इसके अलावा अपनी प्राकृतिक संपदा डुबाने और लाखों लोगों को विस्थापित करने के बावजूद मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को सरदार सरोवर से एक बूँद पानी लेने का अधिकार नहीं है।
पुनर्वास प्रक्रिया में किए गए भ्रष्टाचार की जॉंच हेतु मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा जस्टिस श्रवण शंकर झा की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया था। सात वर्षों की जॉंच के बाद प्रस्तुत आयोग की रपट से पता चलेगा कि कितने लोगों को फर्जी रजिस्ट्री के माध्यम से खेती की जमीन से वंचित कर दिया गया है, पुनर्वास स्थल निर्माण में कितना और किस तरह से भ्रष्टचार किया गया है, इस भ्रष्टचार में कौन अधिकारी और दलाल शामिल रहे हैं, आदि। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के बजाय मध्यप्रदेश सरकार को सौंप दिया है।
कर्नाटक के पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष एवं निर्दलीय विधायक श्री बीआर पाटील ने कहा कि सरकार अपने साधनों का इस्तेमाल करते हुए जानबूझकर मुद्दों को गलत तरीके से प्रदर्शित करती है। झा आयोग की रिपोर्ट पर विधानसभा में बहस होनी चाहिए। इस पर सार्वजनिक बहस भी जरुरी है। सरकार ऐसा न करके कोन की अनियमितता को छिपाना चाहती है। जनता को चारी, भ्रष्टाचार और बॉंधों के दर्द के बारे जानना चाहिए।
आंदोलन की नेत्री सुश्री मेधा पाटकर ने हमें उमा भारती जी के कार्यालय के माध्यम से प्रधानमंत्री कार्यालय का जवाब मिला है। यह वर्ष 2000 की रिपोर्ट का ही पुनर्प्रेषण है। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि बॉंध का काम वर्ष 2004 में पूरा हो जायेगा जबकि जवाब 2016 में दिया गया है। यह डूब क्षेत्र के 45 हजार परिवारों की पीड़ाओं के प्रति सरकार उपेक्षा के स्तर का उदाहरण है।
सरदार सरोवर जलाशय से मध्यप्रदेश को एक बूँद पानी लेने का हक नहीं होगा। केवल बिजली उत्पादन का 57 प्रतिशत हिस्सा मिलने की संभावना है लेकिन यह जल उपयोग पर निर्भर करेगा। यदि गुजरात सरकार पानी की ज्यादा मात्रा नहरों में छोड़ेगी तो बिजली उत्पादन बहुत कम हो जाएगा।
गुजरात के पुनर्वास स्थलों में स्थानांतरित तथा नर्मदा किनारे मूल गॉंवों में अब तक रह रहे हजारों आदिवासियों ने उनके पुनर्वास में सरकारी विफलता के खिलाफ सरदार सरोवर बॉंध के निकट केवडिया कॉलोनी (गुजरात) में क्रमिक भूख हड़ताल और प्रदर्शन 15 जुलाई से प्रारंभ किया है जो अभी भी जारी है।
राजघाट में 30 जुलाई से प्रारंभ होने वाले सत्याग्रह की प्रमुख मॉंगें बगैर पुनर्वास के सरदार सरोवर के गेट बंद नहीं करने, खेती की जमीन देकर पुनर्वास करने, आवश्यक सुविधायुक्त पुनर्वास स्थलों का निर्माण करने, पुनर्वास स्थलों पर आजीविका के साधन उपलबध करवाने आदि की है। 1000 – 1500 करोड़ रुपए के पुनर्वास घोटाले की जॉंच की झा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने और उसकी सिफारिशों पर कार्रवाई करने की मॉंग भी है।
कर्नाटक, केरल, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उत्तरांचल, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढृ, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत देश के 15 राज्यों के करीब 300 समर्थक आज नर्मदा घाटी के प्रभावितों के समर्थन में आयोजित रैली फॉर दि वैली में शामिल होने इंदौर पहुँचे। इनमें प्रमुख हैं भूमि अधिकार आंदोलन (कर्नाटक) के बिजु कृष्णन, गॉंधी शांति प्रतिष्ठान के कुमार प्रशांत, पूर्व विधायक एवं किसान संघर्ष समिति के डॉक्टर सुनीलम, माटू जन संगठन (उत्तरांखण्ड) के विमल भाई, एनएपीएम राजस्थान के कैलाश मीना, वरिष्ठ ट्रेड यूनियन लीटर डीके प्रजापति आदि प्रमुख हैं। इंदौर से ये समर्थक खलघालट, धरमपुरी, मनावर और बड़वानी होते हुए राजघाट सत्याग्रह में पहुँचेंगें।
तथ्य एक नज़र में
· सरदार सरोवर के गेट बंद करने से 244 गॉंव और 1 कस्बा प्रभावित होगा। इनमें से मध्यप्रदेश के 192 गॉंव और धरमपुरी कस्बा बुरी तरह प्रभावित होगा।
· मध्यप्रदेश के 50 हजार परिवार और 20 हजार 822 हेक्टर जमीन अभी तक प्रभावित हो चुकी है।
· पुनर्वास के अभाव में 30 हजार परिवार अभी भी मध्यप्रदेश के डूब प्रभावित गॉंवों में रह रहे है।
· मध्यप्रदेश को सरदार सरोवर जलाशय से एक बूँद पानी नहीं मिलेगा और उत्पादित बिजली का मात्र 57 प्रतिशत हिस्सा ही प्राप्त होगा।
· मध्यप्रदेश में पुनर्वास प्रक्रिया में 1000 – 1500 करोड़ रुपए का बड़ा घोटाला हुआ है। झा आयोग द्वारा की गई इसकी जॉंच की रिपोर्ट को मध्यप्रदेश सरकार सार्वजनिक नहीं कर रही है।
· गुजरात सरकार उद्योगपतियों को पानी देने के लिए सरदार सरोवर का कमाण्ड क्षेत्र 4 लाख हेक्टर कम कर चुकी है।
Devram Kanera Rahul Yadav (Badwani) – 9179617513 Medha Patkar