प्रति,
अनुविभागीय अधिकारी,
तहसिल मनावर,
जिला धार, मध्य प्रदेश
प्रति,
तहसिलदार,
तहसिल मनावर,
जिला धार, मध्य प्रदेश
प्रति,
पुनर्वास अधिकारी,
सरदार सरोवर परियोजना,
तहसिल मनावर,
जिला धार, मध्य प्रदेश
महाशयगण,
आप जानते ही हांेगे कि 22-23 अगस्त, 2013 के दिन उपरी क्षेत्र में भारी वर्षा के बाद, ओंकारेश्वर बांध से आई डूब के साथ, सरदार सरोवर (वर्तमान उॅचाई 122 मी.) के अवरोध से हुई तबाही से बडवानी और अलिराजपुर जिलों के साथ, धार जिले के सेकडों परिवार बेघर-बार, कई बेराजगार हुए। मनावर तहसिल के भी एकलवारा, सेमल्दा, कवठी, पेरखड, गांगली, कोठडा सहित कई गावों में कुछ सेकडों के घर धराशाही हो गए, खडी फसल के साथ, जमीन बर्बाद हुआ। कइयों के घर जल-मग्न हो गए, घरों की दीवारे धस गई, चददर बह गई, काफी अनाज, सामान, मवेशियों का चारा बह जाकर, आज तक चूल्हा भी नही जल रहा है। यह डूब और घर-खेतों की बरबादी पूर्ण रूप से गैर-कानूनी हैं। यह प्राकृतिक नही, यह बांध निर्मित हैं। इसके पूर्व 2 अगस्त, 2013 को आई डूब भी पूर्ण रूप से गैर-कानूनी हैं।
इन सेकडों परिवारों का कानूनन और नीतिअनुसार पुनर्वास नही हुआ हैं और ऐसी स्थिति में उनकी संपŸिा (खेती, मकान, दुकान, कुए, मछली जाल आदि) तथा सार्वजनिक संपŸिा (मंदिर, धर्मशाला, पंचायत, आदि) का नुकसान नर्मदा ट्रिब्यूनल का फैसला, तथा सर्वोच्च अदालत के सभी फैसलों के अनुसार गैरकानूनी हैं।
आपको ज्ञात हैं कि नर्मदा घाटी में बन चुके या बन रहें सभी बडें बांधों के कारण एक साथ पानी बरसनें पर, पानी छोडने की नौबत और पूरी घाटी के लिए (तमहनसंजपवद ंदक उवदपजवतपदह) नियमन और निगरानी का अभाव, इस अप्राकृतिक बाढ का कारण हैं। सरदार सरोवर के क्षेत्र में नर्मदा और उपनदीयों के किनारे के गाॅवों में आई डूब, बरगी से लेकर आंेकारेश्वर तक का पानी छोडने से तथा वह 122 मी. सरदार सरोवर बांध से रोकने पर आयी हैं। ट्रिब्यूनल फैसले के 30 साल बाद, बेक वाटर लेवल कम होने का निष्कर्ष जिस रिपोर्ट के द्वारा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने निकाला, वह अवैज्ञानिक व अवास्तविक है। यह बात भी इस बार की डूब से कई गांवों में साबित हो रही है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय पर्यावरण विशेषज्ञ समिति ने इस रिपोर्ट को नकारी है।
नर्मदा किनार,े जिन अधिकतर गरीब परिवारों के घर बार डुबाये गयें हैं, उन्हें तत्काल पर्याप्त राहत और उनके नुकसान की भरपाई मिलना जरुरी हैंै। ये गरीब परिवार घर कब, कैसे बना पाएंगें, इसका अंदाजा तक नही। सिर्फ पांच पूरी और मिर्ची की पेकेट, वह भी कई जगहों में आवश्यक्ता के 50: से कम संख्या में, राहत के नाम पर खिलवाड है। सेमल्दा जैसे कुछ गांवों में ये भी नही पहुंचा। आपने यह जानना जरुरी हैं कि इस तरह बिना पुनर्वास लोगों को डूबाना अन्याय पूर्ण और अमानवीय ह,ैं साथ ही यह सर्वोच्च अदालत की अवमानना भी हैं।
कुछ गाॅव-गाॅव में आज तक राजस्व कर्मचारी केवल प्रभावित घरों की सूची बनाने के लिए ही पहुचें, पंचनामा करने नही। त्ठब् 25/11/2006 के तहत हर अनुविभागीय अधिकारी ;ैक्डद्ध का यह दायित्व था, जिलाधिकारी की जिम्मेदारी थी, कि वे पटवारीयों के द्वारा हर परिवार के नुकसान का पंचनामा करवाएं, लेकिन यह नही हुआ हैं। आप भी मानेंगे कि पंचनामा त्ठब् के तहत होकर भी, नुकसान की पूरी भरपाई की जिम्मेदारी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की होनी चाहिए। हमारा आग्रह हैं कि प्रभावित परिवार की सहभागिता से, जाॅच होकर, उन्हें संपूर्ण नुकसान भरपाई मिलें, इस संबंध में राजस्व विभाग और न.घा.वि.प्रा. संयुक्त रूप से तत्काल कार्यवाही करें।
इस डूब के पहले सही समय पर न हि मुनादी दी गयी, न हि तत्काल पर्याप्त राहत। 122 मी. की उॅचाई होते हुए बांध से तबाही काी सोचकर न कोई आपदा प्रबंधन या प्रतिबंधन की योजना बनायी गयी, न हि न.घा.वि.प्रा.ने पुनर्वास के बिना, गाॅव-गाॅव में सरदार सरोवर क्षेत्र में आज भी निवासरत हजारों परिवारों की कभी चिंता की। इसी का नतीजा हैं कि हजारों परिवार और हजारों हेक्टर खेती बरबादी लायी गयी और मंजूर भी की गई हैं। इस बांध के डूब क्षेत्र में म.प्र. में ही केवल करीबन 45,000 तक परिवारों (2011 की जनगणना के अनुसार) का पुनर्वास बाकी है।
इनमें शमिल ऐसे परिवार है, जिन्हें पात्रता होकर भी, वैकल्पिक खेती नहीं मिली, घर प्लाट नही मिला या मिलने पर भी घर बांधने की स्थिति में नही हैं। घर का मुआवजा अपर्यापत है या सालों पहले मिला, जिससें घर ही क्या, नीव भी नही बन सकती हैं। जिन्हें मुआवजा मिला ही नही या घर प्लाट मिला ही नही, जिन मजदूरों, मछुआरों, कुम्हारों, दुकानदारों या कारीगरों को वैकल्पिक आजिविका मिली ही नही, ऐसे कुछ हजार परिवार इन गाॅवों में बसें हैं।
आज तक, न.घा.वि.प्रा की झूठी रिर्पोट के अनुसार, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण भी सरदार सरोवर के सभी विस्थापितों का पुनर्वास हुआ और बेलेंस 0, यही अपने वार्षिक रिर्पोट में प्रकाशित करती गई। इसी आधार पर सरदार सरोवर की ऊंचाई 122 से 138.68 मी. तक आगे बढाने की मंजूरी की मांग की जा रही है, मानो गांव खाली हो गए है। हजारों की पुनर्वास के बिना, बांध की पूरी ऊंचाई तक पानी भरना, (याने आज से 17 मीटर अधिक ऊंचाई) यह अघोरी बात राज्य शासन मंजूर करता गया, इस सबकी पोल खोल हो चुकी है।
वैकल्पिक आजिविका – खेती या अन्य, पात्रता अनुसार, जो कि ट्रिब्युनल फैसला एवं राज्य कि पुनर्वास निती और 1993 के ऐक्शन-प्लान के तहत प्राप्त होना हैं, आज तक नही मिली हैं। जो एक किश्त ैत्च् पैकेज लेकर, जमीन नही खरीद पाए या जो फर्जी रजिस्ट्री कान्ड के भुक्त भोगी है, उन्हे कानूनन जमीन मिलना जरुरी है। ऐसे मनावर में भी सेकडों परिवार है, जिनकी सहीे संख्या, मा. उच्च न्यायालय द्वारा गठित झा आयोग की जाॅच रिपोर्ट से निश्चित होगी।
पुनर्वास स्थलों की हालात, सुविधाओं का अभाव, त्रुटिपूर्ण और क्षतिपूर्ण निर्माण कार्य सबंधीं, आप जानते होगें। ब्।ळ के रिपोर्ट के आधार पर, सालों की जाॅच के बाद, न.घा.वि.प्रा. के करीबन 27 कर्मचारियों का नौकरी से हटाया जाना इसी की गवाही देते हैं। वहाॅ न हि निकास की पर्याप्त व्यवस्था हैं, न हि पानी की। काली कपास की मिट्टी में बसाहटें बनायी गयी हैं, जहां पक्कें मकान या अन्य निर्मित इमारतें धस रही हैं। ऐसी स्थिति में वहाॅ रहना असंभव सा हैं।
घर प्लॅाट को नगद मुआवजें में परिवर्तित करने का तथा 5 या 10 सालों में कुछ गाॅवों में घर प्लाट बेचने की मंजूरी देने का गैर-कानूनी कार्य न.घा. वि.प्रा./म.प्र. शासन ने किया हैं, इससें/कई हजारों विस्थापिंतों के पास न घर हैं, न बसाहट। बसाहटों में घर प्लाट बेचे गए हैं, जा रहें हैं जो कि गरीबों की मजबूरी और कुछ अधिकारियों के साथ जुडे दलालों की चाल होती हैं। यह तत्काल रोककर, पुनर्वास कार्य विफल बनाना बंद करें, विस्थापित मछुआरों को मछली पर हक, प्रस्तावित समितियों का पंजीयन, कुम्हारों को जलाशय के किनारे भू-खण्ड, दुकानदार, कारीगरों को वैकल्पिक आजिविका के लिए मदद एवं पर्याप्त राशी की पूरी योजना बनाना आवश्यक हैं।
आप मानेंगे कि न.घा.वि. प्रा. के पास पूरी नर्मदा घाटी में, बर्गी से लेकर सरदार सरोवर तक प्रभावित डूब क्षेत्र में ही बसे लाखों लोगों के लिए आज तक पर्याप्त पुनर्वास योजना, जो नीती एवं ट्रिब्यूनल और अदालतों के फैसले, शिकायत निवारण प्राधिकरण (ळत्।ं) के आदेशों के अनुसार हो, न ही बनी और उसके लिए, अनुरुप साधन-संसाधन उपलब्ध नही हैं। बांध को आगे बढातें हुए, उसके बारें में कोई चिंता भी नही जताई गई। न हि योजना के अमल में हमारे जैसेे जन संगठनों की सहभागिता लेने की कोई मनीषा रखी गई। शासन का यह रवैया अतिगंभीर, अन्यायपूर्ण हैं। मुख्य मंत्री के हवाई दौरे से ये सब समझना संभव नही है।
इस पूरी परिस्थ्तिि में आपसे हम मांग करते हैं कि ……..
ऽ 22-23 अगस्त, 2013 को बाधों से निर्मित बाढ-प्रभावित परिवारों का तत्काल पूर्ण पंचनामा करवायें ओर न.घा.वि. प्रा. से संपूर्ण नुकसान भरपाई दी जावें, न केवल राहत।
ऽ राहत में हर मकान, सामान प्रभावित परिवार को कम से कम 5 क्विंटल अनाज, 5 टिनशीट, 5 ताडपत्री तथा 8 बांस / लकडी तत्काल दी जाए ।
ऽ गाॅव में ही नजदीक, उॅचाई पर पत्रे के शेड बांध कर (सीमेंट का कोबा के साथ), बेघर हुए परिवारों को घर उपलब्ध करवायें। यह युद्ध-स्तर पर हो।
ऽ हर प्रभावित परिवार को अंत्योदय के दाम से अनाज उपलब्ध करें।
ऽ खेती के, घर संपत्ति के नुकसान की भरपाई दिलवायें और पिछलें साल की डूब के संबंध में भी भरपाई दी जावें और उस संबंधी प्रस्तुत आवेदानों पर कार्यवाही हो।
ऽ हर परिवार का संपूर्ण पुनर्वास, ऐक्श्न प्लान, 1993, राज्य नीति, ट्रिब्युनल, अदालत और ळत्। के फैसलों के अनुसार वैकल्पिक जमीन, आजिविका और वसाहटों में सुविधाओं के साथ किया जावें।
तुरंत लिखित जवाब और कार्यवाही की अपेक्षा में……
धन्यवाद सहित….
कमला यादव देवेन तोमर सुंदरबाई सूरिया टंटिया अयुबखंा
मोहन दयाराम धनुबाई पि. कोलू देवीसिंह तोमर मंगल लक्ष्मण
मुकेश भगोरिया मंसाराम जाट मीरा मेधा पाटकर
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