सरदार सरोवर परियोजना की हकीकत
सरदार सरोवर बाँध का हो रहा फर्जी लोकार्पण इस आधार पर हो रहा है कि परियोजना पूरी हुई है और अभी बस लाभ ही लाभ लेना बाकी है| लेकिन सच्चाई तो यह है कि इस बाँध के बारे में जो घोषणाएं और वक्तव्य दिए जा रहे हैं उसमे गंभीर त्रुटियाँ और असत्य है| उसमे सरदार सरोवर की सत्य हकीकत निम्नलिखित है:-
- सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई 138.68 मीटर है और वह 1979 में नर्मदा ट्रिब्यूनल में दिए गए फैसले के अनुसार तय हुई| 1961 में पंडित नेहरु ने जो शिलान्यास किया था वो मात्र 162 फीट उचाई बाँध का था जिसमे मध्यप्रदेश का कोई डूब क्षेत्र नहीं होना था इसलिए आज सरदार सरोवर को 56 साल पुराना नहीं कह सकते, 38 साल पुराना कह सकते हैं|
- इस बाँध को पर्यावरणीय मंजूरी, बुनियादी अभ्यास और नियोजन अधूरा होते हुए तमाम शर्तों के साथ 1987 में दी गयी| लेकिन आज तक उन शर्तों की पूर्ति भी नहीं हुई है | सन 2000 तथा 2005 के सर्वोच्च अदालत के फैसले से भी यह बात साबित होती है क्योंकि पुनर्वास और अन्य मुद्दों पर भी बाँध का कार्य आगे बढाने की मंजूरी सशर्त ही दी गई है|
- सरदार सरोवर से 214 किलोमीटर तक फैला 40 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र के जलाशय मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के 244 गाँव और 1 नगर धरमपुरी प्रभावित हैं जिसकी बात सालों से चलती आई है | इसमें मध्यप्रदेश के 192 गाँव और 1 नगर है | कुल प्रभावित परिवारों की संख्या बार बार बदली गयी है जिसे गेम ऑफ़ नंबर (संख्या का खेल) उच्चतम न्यायालय ने भी (2005) उजागर किया है |
- 2008- 2010 के दौरान अवैज्ञानिक रूप से एक तकनीकी समिति द्वारा ना ही केन्द्रीय जल आयोग द्वारा, बैक वाटर लेवल कम करने के सम्बन्ध में जो निर्णय लिया गया उसे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ कमिटी ने नकारा फिर भी मध्यप्रदेश और केंद्र शासन ने मिलकर 15,946 परिवारों को उनके मकानों का भूअर्जन हो कर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के नाम नामांतरण होने के बावजूद डूब के बाहर घोषित किया और उन्हें आधे अधूरे पुनर्वास के लाभ देकर छोड़ दिया | आज भी इनका भविष्य अनिश्चित है जबकि कईयों के द्वार से 129 मीटर पानी आ चुका है |
- आज भी डूब क्षेत्र में करीबन 40 हज़ार परिवार निवासरत हैं जबकि 2008 से मध्यप्रदेश एवं केंद्र के प्राधिकरणों ने सभी का पुनर्वास पूरा हुआ यानि जीरो बैलेंस का झूठा दावा उच्चतम न्यायालय तक अपने शपथ पत्रों में एवं वार्षिक रिपोर्ट में किया गया |
- आज के रोज़ उच्चतम न्यायलय के 1992 , 2000, 2005 के फैसले और ट्रिब्यूनल के भी फैसले का पुनर्वास पालन आज तक नहीं हुआ है | गुजरात और महाराष्ट्र में ज़मीन के साथ करीबन 15 हज़ार परिवारों का पुनर्वास किया जिसमे भी तृटीयाँ है और सैकड़ो परिवारों का पुनर्वास बाकी है इसलिए संघर्ष जरी है| गुजरात के सैकड़ो विस्थापित आज भी केवड़िया कॉलोनी में बाँध के पास 1 साल तक क्रमिक अनशन करने के बाद धरना कार्यक्रम चला रहे हैं|
- मध्यप्रदेश में उच्चतम न्यायालय ने ज़मीन की पात्रता के अनुसार 2 हेक्टेयर खरीदने के लिए 60 लाख और 15 लाख रूपए के जो पैकेज फरवरी 2017 में आदेशित किये उसका लाभ आधे लाभार्थियों को नहीं मिला है तथा 88 पुनर्वास स्थलों पर बुनियादी सुविधाए भी तैयार नहीं हैं| सैलून से भ्रष्टाचार हुआ है और शुरू हुआ कार्य भी अधिकांश अस्थायी पुनर्वास का है, स्थायी का नहीं| जैसे टिन शेड, चारा भोजन इत्यादि देने की बात है| करोड़ों रूपए के कार्य अभी -अभी नियोजित हो रहे हैं और होने वाले हैं|
- गाँव भरे पूरे हैं, उपजाऊ खेती, हजारों घर, हजारों पेड़, दसो धार्मिक स्थल, हजारो मवेशी , तमाम सुविधाए होते हुए कम से कम निमाड़ मध्यप्रदेश के 192 गाँव और धरमपुरी नगर जीवित है जिसे उखाड़ने की बात 139 मीटर पानी भरने से होगी इसलिए संघर्ष जारी है| आज के रोज़ कई महीनो से सशक्त संघर्ष, दमन, जेल इत्यादि भुगतने के बावजूद हजारों महिला- पुरुषों के संघर्ष करने पर 900 करोड़ का पैकेज घोषित हो चुका है लेकिन उसमें भी भ्रष्टाचार है और अमल नहीं के बराबर|
पर्यावरणीय
- 1987 में दी गयी पर्यावरणीय मंजूरी में अमल बाकी है जिसमे बाँध के निचले वास पर असर, घाटी में स्वस्थ पर असर, बाँध में गाद न भरने के लिए जलग्रहण क्षेत्र का उपचार, भूकंप का खतरा व पुनर्वास योजना आदि शामिल हैं|
- पर्यावरणीय कार्यपूर्ति के दावे झूठे साबित हो चुके हैं लेकिन सरकार झूठी रिपोर्ट के आधार पर बाँध की ऊँचाई हर बार बढ़ाते हुए पूरी की गयी है| उदाहरणत: मध्यप्रदेश के डूब क्षेत्र में कुछ हज़ार मंदिर, धार्मिक स्थल होते हुए सरकार ने सिर्फ तीन ही मंदिर के स्थानांतरण होने का झूठा आधार लिया गया है | कुछ दस लक्ष पेड़ो की कटाई नहीं हुई न ही वैकल्पिक वनीकरण |
- दुनिया की सबसे पुरानी घाटी होते हुए नर्मदा घाटी के डूब क्षेत्र में सभी युगों के अवशेष उत्खनन करना बाकी होते हुए मानवीय इतिहास डुबाया जायेगा |
सरदार सरोवर के लाभों में विकृति
- मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र राज्य पानी के लाभ बिलकुल न पाते हुए मात्र 56% और 27% (अनुक्रमिक) बिजली का हिस्सा उन्हें मिलना है लेकिन महाराष्ट्र ने भी 1800 करोड़ की नुक्सान भरपाई मांगी है|
- गुजरात में पानी कोका-कोला, कार फैक्ट्री इत्यादि अडानी-अम्बानी उद्योग व औद्योगिक गलियारों के क्षेत्रो को प्राथमिकता दी जा रही है| गाँवो को व सुखा ग्रस्तों को नहो | कच्छ और सोराष्ट्र के तालाब इस साल लबालब भरे हुए हैं तो पानी की तत्काल ज़रूरत अभी नहीं है | मध्यप्रदेश में बिजली के प्लांट बने हुए है क्युकी ज़रूरत से अधिक बिजली का निर्माण हो रखा है इसलिए राज्य को बिजली की ज़रूरत इस वक्त नहीं है फिर भी गुजरात के चुनाव के मद्दे नज़र बाँध परियोजना को पूरा घोषित करते हुए उसका उदघाटन कर दिया जायेगा |
आर्थिक लाभ- हानि
- 1983, 4200 करोड़ की लागत बता कर जिसकी लाभ हानि का अभ्यास किया गया था तथा 1988 में 6400 करोड़ रूपए की लागत को योजना आयोग ने मंजूरी दी थी उसके बाद आज की बढती लागत 99000 करोड़ तक पहुच चुकी है| खबर है कि करीबन हज़ार करोड़ रूपए का घाटा हुआ है| आज की लाभ- हानि का निश्चित ब्यौरा भी सामने नहीं है |
- गुजरात में 41,000 किलोमीटर की नहर का निर्माण बाकी है इसलिए सिंचाई का लाभ 20-30 प्रतिशत ही मिल पाया है और पानी उद्योगों को देने के लिए वो पाइपलाइन योजना भी आगे धकेली जा रही है|
इसलिए लोकार्पण फर्जी है !
मेधा पाटकर, कमला यादव, दयाराम यादव, पवन यादव, आनंद तोमर, विनोद भाई, सपना कनहेरा, कमेंद्र मंडलोई, सुमित यादव
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