सरदार सरोवर का पानी 139 के बदले 129वों,  मीटर होने पर भी गां
खेतों  व नदी पर गंभीर असर
•             डूब जहां नहीं आयी वहां के भी तुड़वाये घर, बिना संपूर्ण पुनर्वास !
 
•             हजारों एकड़ खेती बन गयी टापू, रास्ते, पुल इत्यादि की योजना तक तैयार नहीं
 
•             नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर के विस्थापितों का संघर्ष चोटी पर पहुंचने पर
 
•             नर्मदा, सरदार सरोवर के उपर वास में तथा नीचेवास में हुई मृतवत !


भोपाल | 16 अक्टूबर, 2017: सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण फर्जी व खोखला सा साबित हुआ। न ही 2000 साधुओं का वाराणसी से पधारना हुआ न ही महाआरती हुई। गुजरात छोड़कर किसी भी राज्‍य के मुख्यमंत्री निमंत्रण मिलने पर भी वहां नहीं पहुंचे, जिसका हमने स्वागत किया। बांध स्थल पर पहुंचने के पहले गुजरात के ही 1100 से अधिक विस्थापितों को गिरफ्तार करने बाद ही मोदीजी बांधस्थल पर रोड से पहुंचे।

आज बांध में 138.68 मीटर के बदले 129 मीटर पर ही पानी भरा और रुका है तो निमाड़ के बड़े—बड़े गांव, घर, हजारों हेक्टेयर जमीनी खेती,  मंदिर, मस्जिद, लाखों पेड़, शासकीय भवन बचे हैं और हजारों परिवारों का पुनर्वास कुछ न कुछ कार्य आगे बढ़ते हुए भी बाकी है, लेकिन इसी उंचाई तक भरे पानी से गंभीर असर के कारण कई गांवों के निचले मोहल्लों, घरों, दुकानों का डूबना हुआ है तो कुछ पहाड़ी और निमाड़ गांवों में शासकीय अधिकारियों ने दबाव डाल डालकर आदिवासियों, मछुआरों के घर तोड़े हैं जिनमें से कईयों को या तो पुनर्वास के पूरे लाभ नहीं मिले हैं तो अन्यों को पुनर्वास स्थल पर वैकल्पिक स्थान एवं सुविधाएं उपलब्ध न होते हुए खुले में सामान रखने या किरायेदार के रूप में रहने मजबूर किया गया है।

यह हकीकत भिताड़ा में नरसिंग बाबा, भंगडया, जैसे आदिवासियों के पहाड़ पर बसे घर तुड़वाने की है। वैसे ही अलीराजपुर जिले के रोलीगांव के शक्तिसिंह भिलाला के साथ घटी है जहां डूब नहीं आयी, वहां के भी घर तुड़वाकर गुजरात में जमीन व घर के लिए भूखंड मिला तो मात्र शिफटिंग करके सामान हटाने के बदले दो वृद्ध माता पिता का आधार बना,  भायरा भिलाला का घर भी ग्राम झंडाना में तोड़ दिया।

निसरपुर में जिन्हें आज तक वैकल्पिक भूखंड, घर या दुकान के लिए या तो मिला ही नहीं था या तो कागज पर मात्र मिला, उनके परिवारों को हर पात्र या अपात्र व्यक्तियों को मुख्यमंत्रीजी ने हमारे आंदोलन उपवास के दौरान घोषित किए नए कुल 900 करोड़ के बताये गए पैकेज का लाभ मिला नहीं और कई गुजरात में पुर्नवर्सित परिवारों को भी भुगतान कर दिया गया। पैसा और भूखंड के आवंटन से जाहिर है कि हजारों परिवारों का पुनर्वास बाकी था और शासन का सर्वोच्च अदालत में दिए गए 2015 तक दिए गए हलफनामे सत्यवादी नहीं थे। इस तरह पैकेज व भूखंड की धांधली अधिकारी, कर्मचारी व दलालों के गठजोड़ के माध्यम से की गई।

अस्थायी पुनर्वास में करोड़ों रुपयों का खर्च बेकार: अनोखा भ्रष्टाचार

स्थायी पुनर्वास हजारों परिवारों का बाकी होते हुए टिब्यूनल फैसला, जो कानून है, सर्वोच्च अदालत के 1992 से 2017 तक के फैसलों के पुनर्वास संबंधी आदेशों का उल्लंघन करते हुए गांव खाली करवाने के लिए मध्यप्रदेश शासन ने जो अस्थायी पुनर्वास का खेल खेला वह भी बेकार गया। 150 वर्ग फीट से 200 वर्ग फिट तक के टीन शेड बनाए गए जिनपर सैकड़ों करोड़ रुपयों के ठेेके दिए गए। मात्र 8 गांवों में 13 करोड़ और अकेले निसरपुर में 8 करोड़ 86 लाख रुपए ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए टीन शेड्स पर खर्च हुए। लेकिन एक भी टीन शेड में एक भी परिवार रहने नहीं गया, क्योंकि न केवल वह दूर थे, वह बहुत छोटे थे, और लोहे के होने कारण उनमें बिजली के करंट का खतरा था और गर्मी में भट्टी की तरह गरम होते हैं। उनमें मात्र पुलिस और मजदूरों को रखा गया। वैसे ही करोड़ों रुपए के ठेके भोजन के लिए दे दिए गए।

टांसफार्मर उठाकर ले गए, दीवाली में अंधेरा, व फसल की बर्बादी

नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण और राज्य शासन ने मप्र विद्युत मंडल पर दबाव डालकर गांवों से टांसफार्मर उठाकर ले गए, इससे पूरे इलाके में खेती पर संकट आ गया है। घाटी के एकत्रित लोगों ने इकट्ठे होकर कार्यालयों के सामने आवाज उठाई तो उसे भी नहीं सुना गया। आज भी निसरपुर में बिजली के कनेक्शन काट दिए गए हैं जिससे इस दीवाली में लगभग 200 घरों में अंधेरा रहेगा।

टापू बन गए हजारों एकड़ खेत

कुक्षी तहसील के करोंदिया, खापरखेड़ा, निसरपुर, कोठडा, चंदनखेड़ी गांवों के तथा मनावर तहसील के कई गांवों में रास्ते एकलबारा, उरधना जैसे कई गांवों में रास्ते डूब गए हैं, जिससे आस पास के सभी खेत टापू में तब्दील हो गए हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथी भ्रष्टाचार और अत्याचार को उजागर करके बिना पुनर्वास डूब का विरोध करते रहेंगे। हमारी मांग है कि आज की स्थिति में बांध के गेट खोलकर जलाशय का स्तर 122 मीटर पर लाया जाए।


मेधा पाटकर, देवराम भाई, राहुल यादव और साथी
नर्मदा बचाओ आंदोलन
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