मोदीजी की नर्मदा आरती को नर्मदा घाटी से हजारों की चुनौती
सरदार सरोवर पर मनाया जन्मदिन, पर लोकार्पण असफल रहा,क्यों ?
सरदार सरोवर में पानी बड़ने पर लगी रोक से
जल जमीन जीविका हक़ सत्याग्रह फिलहाल स्थगित
लोकार्पण के विरोध में कई राज्यों में हुए विरोध प्रदर्शन, रैली और उपवास
बडवानी, मध्य प्रदेश | 17 सितम्बर 2017: आज गुजरात में सरदार सरोवर बांध को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने पूरा बताते हुए लोकार्पण बड़े जोश से आयोजित किया था| वह एक प्रकार से वैसा ही अधूरा रह गया जैसे सरदार सरोवर परियोजना भी अधूरी रह गयी है| पूरे देश के मुख्यमंत्रियों को उन्होंने बुलावा देने की बात गुजरात से बार-बार जाहिर की थी | लेकिन मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सहित कोई भी मुख्यमंत्री उस कार्यक्रम में नही पहुंचा, यह बात विशेष हैं| वाराणसी से दो हजार साधुओं की महाआरती में सहभागिता होनी थी,लेकिन उनके आने की कोई खबर नही हैं, उसके विपरीत देश कई हिस्सों जिसमें भोपाल, इंदौर, वाराणसी, गुना, जबलपुर. लखनऊ, वाराणसी, पुणे, मुंबई, जयपुर, तेलंगाना, हैदराबाद और गुजरात के केवड़िया कॉलोनी तथा वडोदरा सहित कई शहरों में नर्मदा बचाओ आन्दोलन के समर्थकों ने आवाज़ उठाई तथा इस लोकार्पण के विरोध में धरना, रैली तथा उपवास किया गया। विकास के मुद्दे पर, समता और न्याय के पक्ष में रहने वाले इस देश के नागरिक नर्मदा बचाओ आन्दोलन के विचार और सत्याग्रह के साथ खड़े हैं| दिल्ली में भूमि अधिकार आन्दोलन के बैनर तले प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गयी जिसे अखिल भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हन्नन मोल्ला, अखिल भारतीय महिला परिषद् की अध्यक्ष एनी राजा, अन्तराष्ट्रीय पर्यावरण विशेषज्ञ सौम्या दत्ता तथा जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक मधुरेश कुमार द्वारा संबोधित किया गया| SUCI, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस तथा वामपंथी पार्टियों ने भी इस लोकार्पण का विरोध करते हुए प्रदर्शन किये| गुजरात में कई संगठनो ने मिलकर नर्मदा किनारे हवन कर सरकार को सद्बुद्धि देने की कामना की|
आज उसी वक्त जबकि वहां महा आरती का एलान था नर्मदा घाटी की हजारों महिलाएं तथा भाई बच्चो ने चुनौती दी कि इस बाँध को नर्मदा घाटी के लोग सामाजिक, पर्यावरणीय दृष्टि से तथा लाभों के न्यायपूर्ण बटवारे की दृष्टि से भी असफल मानते हैं| प्रधानमंत्री जी का हेलीकाप्टर प्राकृतिक अवरोध के कारण शुभ मुहूरुत पर से सरदार सरोवर पर नहीं पहुच पाया तो उन्होंने अपना शुभ मुहुरत टलने के बाद बाँध का लोकार्पण जारी किया|
मोदी जी ने सरदार सरोवर को सिविल इंजीनियरिंग का एक दुनिया का चमत्कार बताया है | इस बाँध और नहरो के जाल को प्रत्यक्ष में मोदी जी और उनकी पार्टी गुजरात की सत्ता पर सालों तक रहने के बावजूद आज भी करीब 41 हज़ार किलोमीटर का नहर निर्माण जिसके बिना गुजरात के खेतों में पानी जाना नहीं हो सकता, अभी बाकी है |नहरों के जाल की लम्बाई के आधार पर सरदार सरोवर को एक ओर दुनिया का दूसरे नंबर का बाँध घोषित कर रहे हैं और दूसरी ओर कम से कम 3 दशकों के बाद नहर जाल पूरा हुआ है यह सबसे बड़ा विरोधाभास है |
मोदी जी ने लाभों का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन करते हुए मध्यप्रदेश को सरदार सरोवर से 56% बिजली देने की बात का वर्णन किया प्रत्यक्ष में मध्यप्रदेश को आज बिजली की ज़रूरत न होते हुए और अधिक बिजली देना, इस बात का महत्त्व नहीं है| महत्त्व इस बात है कि मध्यप्रदेश के 192 गाँव व 1 नगर के लोगों की जल- जंगल आबादी व आजीविका भी छिनने के बाद एक बूंद पानी पर भी मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र को इस बाँध से अधिकार नहीं मिला| मोदी जी नहीं जानते होंगे कि मध्यप्रदेश के जनसंघ व कांग्रेस ने मिल कर इस योजना को राज्य के अहित की बता कर विरोध किया था| मोदी जी ने याद नहीं किया कि कैसे मोरारजी देसाईं ने ही ट्रिब्यूनल का फैसला गुजरात की तरफ मोड़ा था| वह साल था 1979, इसलिए मोदी जी का यह कहना कि 1961 से 56 साल पूरे होने तक यह बाँध रुका, या उसे रोका गया, यह भी सही नहीं है क्योंकि 1961 जिसका शिलान्यास किया गया था वह बाँध सिर्फ 162 फीट उचाई का था| 1979 के निर्णय पर ही ट्रिब्यूनल से आज का 455 फीट बाँध की शुरुआत हुई और 1987 तक इस बाँध को पर्यावरणीय मंजूरी दी गई जो भी सशर्त रही| मोदी जी के नुमाइंदे, गुजरात के मुख्यमंत्री के बयान में जो गलतियां हैं उनके बारे में भी मोदी जी ने जनता से मांफी नहीं मांगी, यह विशेष है |
आज ही मोदी जी की महा आरती वह लोकार्पण को जबकि हजारों मध्यप्रदेश के विस्थपितों व समर्थकों ने मिल कर चुनौती दी तब हम विस्थापितों को भी परियोजना का बिना कारण विरोध करने वाले या उसमे अवरोध डालने वाले मन्ना मोदी जी की असंवेदना दिखाती है |आदिवासियों ने इस योजना के लिए ख़ुशी से अपने जल-जंगल नही मछली त्याग कर दी है यह बयान उनके संघर्ष की तथा आज तक चल रही समस्या के बारे में अज्ञान दिखता है| आदिवासियों ने संघर्ष के द्वारा ही अपना कुछ हक पाया है लेकिन आज भी सरदार सरोवर को 214 किलोमीटर फैला, 40 हज़ार हेक्टेयर का डूब क्षेत्र अनुसूचित जनजाति यानि आदिवासी क्षेत्र है | और इसी क्षेत्र में आज तक आदिवासी व अन्य समाजों के हजारों को पुनर्वास मिलना बाकी है| सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की तथा कानून की भी अवहेलना हुई है, और हो रही है | मध्यप्रदेश में ही पुनर्वास के लिए गुजरात में दिए हुए करोड़ों रूपए का भ्रष्टाचार हुआ है और हो रहा है| मोदी जी तथा केंद्र प्राधिकरण इस सबकी दखल न लेते हुए मध्यप्रदेश सरकार के साथ जुड़कर इसे मंज़ूर कर रहे हैं| क्या ये अब भ्रष्टाचार विरोध का नमूना है?
बिना पुनर्वास डूब लाने की बात पर आज जबकि मध्यप्रदेश के निमाड़ के मैदानी क्षेत्र के बड़े बड़े गाँव में भी आक्रोश है जब यहाँ के हज़ार मंदिर-मस्जिदे, सांस्कृतिक व प्राकृतिक धरोहर, पुरातात्विक अवशेष ख़त्म होने जा रहे है जब मोदी जी इस पर कोई लव्ज़ नहीं निकालते यह उनकी विकास की अवधारणा की मर्यादा ही नहीं, विकृति दिखने वाली बात है|
गुजरात के सेकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर गाड़ियों में भरकर उन्हें जगह जगह छोड़ा गया तथा महाराष्ट्र के मनिबेली में जीवनशाला जो कि डूबने जा रही उसी जगह इक्कठे हुए महाराष्ट्र के विस्थापित व बच्चो ने मिल कर सरकार मृतवत हो गई है यह कह कर शव यात्रा निकली|
गुजरात में भी कोका-कोला तथा अडानी-अम्बानी कंपनी को और आने वाले औद्योगिक क्षेत्रों जैसे जापान की सुजुकी कंपनी को प्रधानमंत्री ले आये हैं वैसे ही सभी औद्योगिक क्षेत्रो को सरदार सरोवर का पानी बख्शा जा रहा है और जाने वाला है| इस पर भी प्रधानमंत्री चुप क्यों रहे?
सरदार सरोवर की हकीकत नर्मदा घाटी के बड़े क्षेत्र के जीवन के हत्याकांड की हकीकत सामने दिखाई दे रही है | आज भी गुजरात को पानी की ज़रूरत ना होते हुए, मात्र आने वाले चुनाव को मद्दे नज़र न रखते हुए मोदी जी अगर पुनर्वास होते तक रुक जाते तो कोई मान्यता होती लेकिन इसके पहले ही सत्ता पर आते ही अमित शाह के कहे अनुसार गुजरात का शेर बनकर उन्होंने कानून की अवहेलना करते हुए बाँध का लोकार्पण किया जिसका विरोध हजारों विस्थापित परिवारों ने किया है| क्या मोदी जी उनका भी सवाल पूछने का अधिकार मंज़ूर नहीं करते?
अंतर्राष्ट्रीय मंच की बात करते समय मोदी जी यह बात भूल गए कि विश्व बैंक ने बहुत ही ऊँचे स्तर के विशेषज्ञों द्वारा इस परियोजना का पुनर्मूल्यांकन करने के बाद इस योजना की आर्थिक सहायता रोक दी थी |
आज के लोकार्पण के बाद नहीं बल्कि बाँध में पानी भरना फिलहाल रोक दिये जाने की बात पर, 11.09.2017 का आदेश तथा प्राकृतिक वर्षा का पानी सरदार सरोवर में आने की बात ख़त्म होने से ग्राम छोटा बडदा, बडवानी जिले में पिछले 3 दिनों से नर्मदा किनारे चल रहा जल, ज़मीन, जीविका हक सत्याग्रह हम फ़िलहाल स्थगित करते हैं| बिना पुनर्वास डूब लाने की साजिश अन्यायपूर्ण व अमानवीय दृष्टि से अगर आगे बढाई गई तो हम फिर से किसी भी प्रकार के सत्याग्रह पर उतरे बिना नहीं रहेगे,यह हमारा संकल्प है|
आज मध्यप्रदेश के हजारों विस्थापितों के द्वारा विभिन्न जन संगठनो के समर्थकों की उपस्थिति में नावडियों पर उतर कर संकल्प के साथ यह सत्याग्रह स्थगित किया जाता है| हमारी चुनौती केंद्र, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात के सामने अंतिम समय तक जारी रहेगी |
पुनर्वास अधूरा और बाँध पूरा कैसे? – सार्वजनिक बहस की चुनौती
नर्मदा बचाओ आन्दोलन आज यह आवाहन करता है कि घाटी में तथा देश भर में सरदार सरोवर के मुद्दे पर तथा विकास की अवधारणा पर जगह- जगह सार्वजनिक मंच खड़ा करके एक गहरी सार्वजनिक बहस हो जाए | इस बहस में आयोजक दोनों पक्षों को ज़रूर बुलाये, हम नर्मदा घाटी के आन्दोलनकारी बिलकुल तैयार हैं|
नर्मदा से सही विकास, समर्पितों की यही है आस।
मेधा पाटकर और नर्मदा के साथी
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