17 सितम्बर को प्रधानमंत्री द्वारा सरदार सरोवर का लोकार्पण किस स्थिति में?

सरदार सरोवर में भ्रष्टाचार का दूसरा दौर: गुजरात व मध्यप्रदेश के बीच लूट!

बिना लाभ की मध्यप्रदेश के किसानो की आहुति, बर्बाद प्रकृति, क्या लाएगी विकास रंग?

13 सितम्बर 2017 | भोपाल: सरदार सरोवर के विस्थापितों के लिए ज़मीन, घर प्लाट व सभी नगरी सुविधाओं के साथ पुनर्वास स्थल पाना, पुनर्वास की परिभाषा व ट्रिब्यूनल फैसला (जो क़ानून माना गया है) पुनर्वास की राज्य स्तरीय नीति व सर्वोच्च अदालत के फैसले अनुसार होना था| इस क़ानूनी दायरे में म.प्र राज्य शासन ने कृति योजनाएँ और अंतर्राज्यीय परियोजना की निगरानी और कानून पालन की ज़िम्मेदारी जिन पर है, उस नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने तीनों राज्यों की जानकारी एकत्रित करके, अदालत में पेश भी की | इन तमाम क़ानूनी आधारों पर पूरे अमल के साथ ही पुनर्वास होना चाहिए और जब तक वह नहीं होता, तब तक बाँध का ऐसा कोई निर्माण कार्य, जिससे बिना पुनर्वास कोई संपत्ति (भूमि, आबादी अन्य) डूब में आये, आगे नहीं बढ़ना चाहिए यह फैसला सर्वोच्च अदालत, एक नहीं,  चार दिया हैं|

विस्थापितों के 32 सालों के कठोर संघर्ष के दौरान ही 14,500 से 15,000 परिवारों को गुजरात, महाराष्ट्र में ज़मीन के साथ इस एक मात्र बाँध में पुनर्वास मिला, लेकिन मध्यप्रदेश में मात्र 53 परिवारों को खेत- ज़मीन दी तो उसमे कहीं अतिक्रमण, कहीं खराबी तो कहीं बिना मकान के लिए भूखंड और बिना सुविधाएँ| कानून नीति का पालन न होने का मुख्य कारण रहा, प्रावधानों के बदले, नगदीकरण और भ्रष्टाचार !

पुनर्वास न्यायपूर्ण ना होने के कारण, वंचित रहे हजारों परिवारों ने भ्रष्टाचार का एक दौर भुगत कर, फर्जी रजिस्ट्रियां, घर प्लाट के आबंटन में विवाद से वंचना, पुनर्वास स्थलों की दुर्दशा व किसानों के अलावा अन्य व्यवसायियों को आजीविका या न्यूनतम अनुदान की भी पूरी राशि (मात्र 49,000 तक) न पाना नसीबी आया| इसके बिना अब सर्वोच्च अदालत तक के आदेश से कम से कम डूब क्षेत्र के गाँवों को यानि शासन के ही 25 मई 2017 के राजपत्र अनुसार मात्र मध्यप्रदेश के 141 गाँव के 18,386 परिवारों को घर – द्वार सब कुछ छोड़ कर खाली करने की स्थिति आई तब आन्दोलन का संघर्ष, महिला- बच्चों के साथ चोटी पर पहुचा और भोपाल, इंदौर, चिखल्दा, निसरपुर जैसे केंद्र केंद्र में हजारों लोग मैदान में उतरे, आक्रोशित हुए|

इस स्थिति में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आन्दोलन के साथ कोई बात चीत, कोई निर्णायक संवाद ना करने में अपनी संवादहीनता पिछले 13 सालों की तरह फिर से साबित की| फिर भी आन्दोलन, अधिकारियों से हुई 4 मई के रोज़, उसके पहले और बाद में बातचीत, आवेदनों से अपने मुद्दे रखता गया |पुनर्वास में प्रावधान और अमल को मांग का दायरा पुर्णतः क़ानूनी व जन आन्दोलनों का तरीका अहिंसक ही रहा| इस दौर में मुख्यमंत्री जी ने 2 बार, 24 मई 2017 और 29 जुलाई 2017 के रोज़ पुनर्वास के नये प्रावधानों की नयी घोषणाए की और उन सम्बन्धी अधिकतर आदेश क्रमशः 5 जून 2017 से 1 अगस्त 2017 के रोज़ पारित हुए| 900 करोड़ रूपए के पैकेज के विज्ञापन एवं डूब क्षेत्र और शहरो- बाज़ारों में भी बड़े बड़े बैनर्स लगवाए गए | मध्यप्रदेश के बुद्धिजीवियों या आम जनता, कई जन समुदायों को भले ही अन्डों की जीत के बावजूद इसमें शासन की उदारता दिखाई दी हो, प्रत्यक्ष में राज्य शासन ने, सही, न्यायपूर्ण पुनर्वास के बदले अपनी तिजोरी के करोड़ों रूपए व्यर्थ गवाने का ही नहीं, भ्रष्टाचार का एक नया दौर खोलने का काम किया है, जिसमें नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के साथ अब राजस्व विभाग के कई कर्मचारी- अधिकारी ही नहीं, ठेकेदारों की लूट भी शामिल है | विस्थापितों के नाम पर यह हर बड़े बाँध और कई परियोजनाओ में होती आई है | लेकिन यहाँ, एक बड़ा इमला, निगरानी के लिए होते हुए भी जो धांधली और घोटाला मचा है, उससे ऊपर से नीचे तक मध्यप्रदेश शासन के सभी सम्बंधित अधिकारी, मंत्री और मुख्यमंत्री का आशीर्वाद निश्चित है और इसका कारण मात्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के जन्मदिन पर बाँध परियोजना पूरी होने का दावा साबित करके दिखाना और इस परियोजना के आधार पर ही गुजरात और सत्ताधारी भाजपा के चुनाव प्रचार में एक जीत का मुद्दा बनाने में सहयोग देना है| ना ही विस्थापितों की स्थिति का कोई अंदाज़ा, उस पर संवेदना, ना दर्द की पहचान, ना ही क़ानूनी बंधन… ऐसी स्थिति में मनमानी के साथ राज्य की तिजोरी ही नहीं, जनता की भी लूट जारी है|

भ्रष्टाचार में सबसे बड़े मुद्दे तीन है:

बाँध प्रभावित कितने परिवार, आज सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में है जिनका पुनर्वास बाकी है और करना होगा इसका आंकड़ा बदल आकर 2008-2015 तक सर्वोच्च अदालत में और फिर जून 2017 में मंत्री लाल सिंह आर्य के द्वारा कोई बाकी नहीं, सभी पुनर्वसित हो चुके हैं यह दावा लगाने के बाद, फिर जुलाई 2017 में मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय में प्रस्तुत किये कार्यपूर्ति रिपोर्ट में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने संख्या को गोल माल करके बताया है की डूब क्षेत्र में मात्र 8,821 परिवार है, जो कि बाँध प्रभावितों की सूचि में घोषित है| लेकिन 8000 अन्य और पुनर्वास के लिए अपात्र परिवार है | इन पात्र व अपात्र परिवारों का भी मकान बाँधने के लिए कानून अनुसार 60X90 का नहीं किन्तु 20X60 या 20X90 का प्लाट/ भूखंड दिया जायेगा और 5.80 लाख रूपए का अनुदान ! डूब क्षेत्र में है, विस्थापित होने है तो ‘अपात्र’ परिवारों को पात्र मान कर, उनके मकानों का अधिग्रहण करने पर, मुआवजा देकर ही पुनर्वास के लाभ कानूनन दे सकते हैं, लेकिन उसके बदले, अपात्र होने पर भी, मुआवजा हाल भर मात्र ये नये लाभ देने में, कौन अपात्र लाभार्थी होंगे, इसपर धूम मचाई गयी है | सालों पहले गाँव छोड़ कर गए परिवारों को भी बुला कर उनके इन ‘घर बैठे’ लिए जा रहे लाभों में अपना हिस्सा, वही पूर्व के दौर का (कुछ नए भी शामिल) अधिकारी- दलालों का गठजोड़, पा रहा है|

नए 5.80 लाख के पैकेज में लाभार्थियों में सभी घर-प्लाट मिला है, ऐसी लोग शामिल होंगे, यह घोषणा मुख्यमंत्री ने की, विज्ञापन भी दिए गये लेकिन आदेश में अलग अलग प्रावधानो से घोटाला और गहरा हुआ | कहीं कहा गया की मात्र प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों को ही, निकर्शो के आधार पर 5.80 लाख रूपए मिलंगे, कहीं आदेश में आया की अन्य परिवारों को सरदार सरोवर (नर्मदा) के मद से मिलेंगे | फिर ‘अन्य पात्र’ को रोका भी गया | तिजोरी खुली रख कर अभी भी सूची बनाने, बदलने में लूट जारी है लेकिन रोकेगा कौन ?

पूर्ण भूखंड के बदले 1/3 भूखंड/प्लाट देने में, “मुफ्त में मिल रहा है तो हमें भी 1 लाख तक का हिस्सा चाहिए” यह कहने तक दलालों की मजाल पहुची है | 5.80 लाख रूपए भी दो किश्तों में दी जाने की योजना, ज़मीन के बदले 2005 से दिए गये पैकेज में हुए फर्जीवाडे के ही जैसे, एक किश्त के बाद या घर खाली करने की शर्त के साथ शपथपत्र भरने के बाद, लाभ राशि देने से रोकने पर दलालों- कर्मचारियों की गुलामी और उनकी जेबों में नगद भराई हो रही है |

अस्थायी पुनर्वास भी भ्रष्टाचार और गैरकानूनी अपव्यय!

900 करोड़ रूपए के लाभों की जो प्रचार, मध्यप्रदेश शासन कर रही है, उसमे बड़ी राशि विविध प्रकार के अस्थायी पुनर्वास के कार्य के लिए ठेकेदारों को देने की राशि है| इनमे शामिल कार्य, अस्थायी (4 महीनो के लिए टिन शेड;अस्थायी बरसात भर के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 66 रूपए के ठेके द्वारा) हजारों परिवारों को भोजन, हजारों मवेशियों के लिए मात्र 4 माह के लिए चारों ओर टैंकर द्वारा सिंटेक्स की टंकियों में या परिवारों के घर पानी देना ये है | शासकीय भवन, रास्ते भी कई सारे अनुपयोगी ठहर चुके, उसमे भ्रष्टाचार जांच आयोग की रिपोर्ट में उजागर हुआ, तो उसमे बुनियादी पुननिर्माण या सुधार के बदले, मात्र 2- 3 महीने चले ऐसी चूरी डालने का ठेका दिया गया| आज ही रास्ते उखड़ना शुरू हुआ है और बाहर से रंगरंगोरी किये भवन अंदर से जर्जर और नीव में कमज़ोर ही है |

इनमे से हर कार्य का ठेका करोड़ों रूपए का है, अर्थात सत्ताधारियों के ही पदाधिकारी या परिवारजानो को दिया गया है | उसमे भी शुरुआत के कुछ ठेकों के बाद, शासकीय नियम के पूर्ण उल्लंघन के साथ, बिना टेंडर के ठेके देने का आदेश निकाल कर, पूरी मनमानी हुई है और जारी है |

कई पुनर्वास स्थलों पर आज भी पर्याप्त पीने के पानी की कायमी व्यवस्था नहीं, किसी भी पुनर्वास स्थल पर हजारों मवेशी होते हुए भी चारागाह: नहीं, वैकल्पिक आजीविका न देने से विस्थापित परिवारों को सही, ज़िन्दगी भर का पुनर्वास नहीं मूलतः अर्जित घरों का मुआवजा, पुनर्वास नीति अनुसार पर्याप्त न दिया जाने से ही, नया अनुदान दिए बिना रास्ता नहीं…इस स्थिति में हजारों परिवार गाँव-घर-सुविधा-आजीविका छोड़ कर जाए, क्या यह न्याय होगा ?

कुल भ्रष्टाचार करोड़ों का होते हुए गाढ़कर, ‘बाँध पूरा हुआ’ यह घोषित करने, प्रधानमंत्री जी के साथ मुख्यमंत्री जी भी सरदार सरोवर बाँध स्थल पर जाकर 17 सितम्बर को जश्न मनाने न जाये, इस चेतावनी के साथ नर्मदा घाटी का प्रतिनिधि समूह ने आज मशाल जलाए जिसमे म.प्र के विस्थपितों के साथ कई संगठन और जिलों से आये समर्थक शामिल हुए!

मेधा पाटकरमुकेश भगोरियाकमल यादवश्यामा मछुआरापेमा भाईमंजू बहन

नर्मदा बचाओ आंदोलन

संपर्क: 9179617513  9867348307