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‘नर्मदा सेवा यात्रा’ से सेवा किसकी, मेवा किसे?

 

‘नर्मदा सेवा यात्रा’ निकाल कर नर्मदा को बर्बाद करने के लिये जिम्मेदार सरकार अब कौन सा मेवा पाने की चाहत रखती है, यह सवाल पूछ रहे हैं, लाखों मजदूर, किसान, मछुआरे भी।नर्मदा पर तीस बड़े और 135 मझौले बाँधों से उसे बांधकर तालाबों में परिवर्तित करने वाली सरकार नदी रुप को समाप्त करने पर आमादा है। नर्मदा के पानी को सबसे अधिक प्रदूषित करने वाली इन बाँध परियोजनाओं के अति गंभीर प्रभावों के प्रति एक शब्द भी कहे बगैर नमामि नर्मदा सेवा यात्रा क्या एक दिखावा सी बन कर नहीं रह जाएगी? नर्मदा कछार के जल, जंगल, और जमीन पर निर्भर है, नर्मदा का आज का अस्तित्व और कल का भविष्य भी। इन प्राकृतिक संसाधनों से बनी हुई नर्मदा के पर्यावरणीय हालात किसी गाँव में मात्र एक-दो घंटे बिता कर नहीं जाने जा सकते हैं। मुख्यमंत्री तो यात्रा में अपने ताम झाम के साथ थोड़ा सा पैदल और हेलीकाॅप्टर से लेकर या अन्य वाहनों का प्रयोग करते हुए नर्मदा कछार के कुछ विशेष गाँवों तक ही पहुँच रहे है। आज तक नर्मदा कछार के हर बाँध से उजड़े या उजड़ने वाले किसी बाँध क्षेत्र में उनके पाँव शायद ही पड़े होंगे। वे यात्रा के पूरे आयोजन मेें तथा इस दौरान विस्थापन या विस्थपितों के पुनर्वास की बात तक नहीं करते हैं तो उनसे बांधों के लाभ-हानि के ब्योरे या बहस की अपेक्षा ही व्यर्थ है। क्या मुख्यमंत्री इस बात का जवाब देगें कि विस्थापितों के कानूनन या नीति अनुसार पुर्नवास के बिना नर्मदा का विकास उन्हे मंजूर है? बरगी से लेकर सरदार सरोवर तक हर बाँध के विस्थापितों को डुबाकर उन्हे परियोजना के लाभों का जायज हक देने के बारे में कभी उन्होंने सोचा है? क्या सभी बाँधों के विस्थापित किसानों को बसाने के लिये आपके पास पर्याप्त जमीन है? (जैसे नर्मदा क्षिप्रा या नर्मदा-गंभीर पाइपलाइन)

नर्मदा को प्रदूषण से बचाने की बात तो सराहनीय है। लेकिन जो सरकार नर्मदा के हर जलाशय के इर्द गिर्द ही कई ताप या परमाणु विद्युत परियोजनाएँ बना रही है वह क्या सचमुच नर्मदा को बचाना चाहती है? हर परियोजना के लिये नर्मदा का पानी लेने से क्या नर्मदा को प्रदूषण मुक्त हो जाएगी? नर्मदा सेवा यात्री इस पर चुप क्यों है? नरसिंहपुर, कटनी, और अनूपपुर तक लोंगों का आक्रोश जारी है। उसे सुने बिना तथा उनके सवालों के जवाब दिये बिना आगे बढ़ना क्या बेरहमी नहीं है? नर्मदा के घने जंगलों को समाप्त कर योजना बनाने के कारण ही नर्मदा सालों साल सूखती जा रही है। लेकिन उससे भी आगे बढ़कर अब हर सेकंड हजारों लीटर पानी उठाने की योजना क्या नर्मदा की सेवा मानी जायेगी? या नर्मदा से बडे पूंजीपति उद्योगपति तथा शहरों को मेवा बाँटना मानी जायेगी?

नर्मदा सेवा यात्रा में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान ने कहा कि अमरकंटक क्षेत्र में अगर सोना निकला तो भी खनन नहीं होने दूंगा। जबकि वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद भी सरकार खनन रोक नहीं पायी है। 2 घण्टे में गांव में जाकर वे रेत खनन कैसे रोक पायेंगें। यह बात अलग है कि 23 नवंबर 2016 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय नर्मदा में प्रदूषण रोकने संबंधी अपने पूर्व आदेश का पालन नहीं करने के कारण मध्यप्रदेश सरकार को लताड़ लगा चुकी है। उच्च न्यायालय ने इसके लिए स्वयं एक न्यायिक आयोग गठित करने की भी चेतावनी दी है।

नर्मदा नदी को आंदोलन बनाने की बात कही जबकि नर्मदा किनारे रहने वाले विस्थापित शांति से समृध्द जीवन जीने और नर्मदा घाटी को समृद्ध रखने का आंदोलन तीन दशकों से भी अधिक समय से चला रहे हैं।

फलदार पौधे लगाने से भूमि का कटाव रोकने की बात कही जा रही है। जबकि एनजीटी के अनुभवी सदस्य ने पूछा कि कौन से पेड़ लगाने वाले हो उसका जवाब कलेक्टर के पास नहीं था। स्थानीय प्रजाति के पेड़ व बड़े पेड़ लगाना चाहिए। साथ ही सबसे अधिक नदी तट का कटाव रेत खनन से हो रहा है। नर्मदा कच्छ अधिकांश रेत खनन अवैध है, म.प्र. उच्च न्यायालय ने तथा एनजीटी ने एवं सर्वोच्च न्यायालय ने कई आदेश दिये हैं फिर भी उसका पालन ना करते हुए बडवानी, धार, अलीराजपुर, खरगोन से लेकर होशंगाबाद, अनूपपुर तक बेहद रेत खनन जारी क्यों हैं? या नर्मदा सेवा यात्रा बगैर कानून व सत्ता के आधार पर मुख्यमंत्री जी व सरकार इसे रोकने में सक्षम नहीं है? नर्मदा सेवा यात्रा के प्रचार पत्रक से साफ है, अवैध रेत खनन रोकने का इरादा है ना ही। यात्रा के उद्देश्य में रेत खनन का संचालन यही उद्देश्य बताया गया है। तो अमरकंटक से की गई मुख्यमंत्री जी घोषणा मात्र भ्रमित करने वाली हीं है। नर्मदा कच्छर की धरती ही सोना है और जल जलसंप्रदा चांदी है, इसे किसी भी जिले में, पूरी नर्मदा घाटी में बरबाद नहीं करना चाहिए। पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दबे जी क्या इसमें जिम्मेदारी ले सकते है या नहीं।

जैविक खेती की बात कही जा रही है जबकि इसके विपरीत केन्द्र/राज्य सरकारे जी.डी.पी. को बढाने के लिए रासायनिक खेती को बढ़ावा दे रहा है।
सबसे बडी बात है 8 मीटर चौड़ा वाहन परिक्रमा पद बनाकर अंबानी को पर्यटन का पूरा ठेका देकर नर्मदा के सभी संसाधनों को मेवा के रूप में कंपनियों को देने के लिए यह यात्रा तथा आज शुरू हो रहा जन्ममहोत्सव आयोजित है।

लघु उद्योगों को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है जबकि इसके विपरीत इंदौर में इन्वेस्टर्स मीट कर सरकार जनता के संसाधन विदेशी कंपनियों पर लुटा रही हैं। अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले सरदार सरोवर के हजारों प्रभावितों के लिए सरकार 30 सालों में 200 एकड़ जमीन नहीं उपलब्ध करा पाई जबकि विदेशी कंपनियों के लिए 1 लाख 50 हजार हेक्टर जमीन आरक्षित कर ली गई है।

म.प्र. शासन यहां के हजारों लोगों को उजाड़ कर भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियो/दलालों को बचा रही है, इस मुददे पर मुख्यमंत्री चुप है।

राजकुमार सिन्हा, अमूल्य निधी, राहुल यादव, मेधा पाटकर
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