नर्मदा और किसानी बचाओ जंग यात्रा का दूसरा दिन
अंजड, दवाना, मंडवाना, धामनोद, और गुजरी से होते हुए महू और पीथमपुर से लिए प्रस्थान
प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण विकृत हो रही है विस्थापितों की कानूनी लड़ाई
भ्रष्टाचार, अन्याय, रेत खनन और पुनर्वास की समस्याओं को छोड़कर, सरकार कर रही है परिक्रमाएं
30 मई 2018, धामनोद : नर्मदा और किसानी बचाओ जंग के पहले दिन बड़वानी से निकलने के बाद अंजड़ में सभी पार्षदों ने जंग में निकले आदिवासी किसान मज़दूरों का स्वागत किया। पुरुषोत्तम भाई तथा नगराध्यक्ष श्रीमती पटनी जी के पति श्री शेखर पटनी जी ने किसानों की ताकत सरकार को हिला सकती है इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि अंजड़ की नगर पालिका तथा नगरवासी नर्मदा घाटी के लोगों के साथ हैं।
दवाना की सभा नुक्कड़ सभा मे दवाना के ही वरिष्ठ किसान तथा शिक्षा संस्थान, व्यापारी संगठन के प्रमुखों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा किसानों के व्यापक मुद्दे उठाने का स्वागत किया। जंग पर निकले लोगों ने बताया कि दवाना में हो रहे भ्रष्टाचार के कारण विस्थापितों की कानूनी लड़ाई विकृत हो गयी और कई किसानों को ज़मीन नही मिल पाई, लेकिन आंदोलन ने कई मुद्दों पर कानूनी सफलता पा कर पुनर्वास के लाभ लोगों को दिलाये।
मंडवाड़ा, दवाना जैसे गांवों में लोगों ने किसानों को सम्पूर्ण कर्जमुक्ति और उपज के सही दाम के मुद्दे पर तथा नर्मदा बचाने के संकल्प पर हस्ताक्षर करते हुए आगे की जंग के लिए अपना समर्थन ज़ाहिर किया। ठीकरी और खलघाट में हुई आम सभाओं में स्थानिकों द्वारा की गई व्यवस्था और सहभाग विशेष रहा। ठीकरी में श्री चम्पालाल पटेल, भूतपूर्व सरपंच व आदि ने नर्मदा घाटी में किसानों का हक़ जताना ज़रूरी माना और कहा कि नर्मदा के पानी पर न केवल यहां की सिंचाई बल्कि किसानी बाज़ार भी निर्भर होते हुए यहां से पानी उठा कर दूर – दूर की नदियों तक ले जाना, आजीविका पर गंभीर असर लाएगा।
श्यामा मछुआरा ने अपनी ज़ोरदार पेशकश में मध्य प्रदेश शासन को चुनौती देते हुए कहा कि आपने बाकी जलाशयों को ठेके पर देकर अपने मछुवारों पर बड़ा अन्याय किया है लेकिन सरदार सरोवर में हम अन्याय नही होने देंगे। सुरेश पाटीदार ने पुनर्वास के नाम पर उजाड़े गए अन्य किसान जिनकी ज़मीन पुनर्वास स्थलों के लिए अर्जित की गई उन्हें भी कानूनी लड़त से हक़ कैसे दिलाया गया है इसकी हकीकत बयान की।
मेधा पाटकर ने ठीकरी के नागरिकों को संबोधित करते हुए कहा कि नर्मदा से कुछ ही दूर पर बसे ठीकरी जैसे नगर को दुर्लक्षित करते हुए दूर के शहरों तक पानी ले जाना कहाँ तक सही है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार की नर्मदा को भी यमुना बनाने की पूरी तैयारी है, नर्मदा-शिप्रा, नर्मदा-कालीसिंध जैसे लिंक परियोजनाओ में नर्मदा का पानी पहुँचाया जा रहा है। नर्मदा का 15000 लीटर प्रति सेकंड पानी भरूच के छोटे और बड़े उद्योगों को दिया जा रहा है। इस तरह नर्मदा कब तक जीवित रहेगी यह भी एक सवाल है।
नर्मदा और किसानी बचाओ जंग के दूसरे दिन बड़ी संख्या में बांध के नीचे के विस्थापित और भरूच के किसान और मछुआरे भी जुड़े। खलघाट में यात्रा की शुरुआत नर्मदा के गीतों और नारों से करते हुए नर्मदा नदी की पूजा कर एक विशाल रैली निकाली। वहां से आगे बढ़ धामनोद में रैली पहुंची और धामनोद के बाज़ार से विशाल रैली निकाल आम सभा का आयोजन किया।
गुजरात से जुड़े हिरल भाई ने भरूच के पास के गांवों से विलुप्त होते मछुआरे समाज की दयनीय स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे नदी में पानी कम होने से मछुआरों की आजीविका खतरे में है और हर गांव से मछुवारों की संख्या भी कम होती जा रही है, नदी में समुद्र का पानी घुस गया है जिससे मछली ही खत्म हो गयी है। नर्मदा के साथ – साथ एक पूरी संस्कृति खत्म होने की कगार पर है। किसानों की खेती पर असर पड़ा है। हमने बहुत बार सरकार को आवेदन दिया लेकिन सरकार चुप बैठी है और उनके पास हमारे सवालों के जवाब नही। अब बहुत जरूरत है – सबको एक होकर लड़ने की। उन्ही के साथ आये वकील कमलेश जी ने कहा कि 32 सालों से चल रही नर्मदा की लड़ाई को समझने में देर हो गयी, हमारी लड़ाई 10 साल से चल रही है और नर्मदा घाटी के संघर्ष से ही हिम्मत ले कर हम आगे बढ़ रहे हैं। गुजरात मे बांध के निचलेवास में नदी, मछली, मछुवारे सब खत्म होते जा रहे हैं।
महाराष्ट्र से आये चेतन भाई ने बताया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन के संघर्ष और आंदोलन से हमने बहुत कुछ पाया है। हर एक विस्थापित को 5 एकड़ जमीन मिली है। हमे अपने इस नर्मदा और किसानी बचाओ आंदोलन को भी उसी दृष्टि से देखना चाहिए और हिम्मत और दृढ निश्चय से संघर्ष की ओर बढ़ना चाहिए।
धामनोद के वल्लभ भाई, किसान संघ के भूतपूर्व अध्यक्ष ने कहा कि किसान इस देश की रीढ़ की हड्डी है जिसे इस देश की सरकार चोट पहुंचा रही है। किसानों को उपज के सही दाम नही मिलते। हर दिन 5 किसान आत्महत्या कर रहे हैं मध्यप्रदेश में। किसान के अपनी अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने से पहले ही उन्हें दबाने की कोशिश की जाती है।
धार के वकील, विजय ने आस्था और अधिकार में भिन्नता को समझाते हुए कहा कि किसान अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं और सरकार अपनी आस्था के लिए। गाय के नाम पर जो सरकार ने राजनीति फैलाई है उसकी सच्चाई ये है कि सिर्फ मध्यप्रदेश में 50 लाख गाय हैं जिन पर 12000 करोड़ का चारा लगता है। चारे की कमी से अभी हाल में ही इन गौशालाओं में 1200 गायों की मौत हो चुकी है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि जब किसी की माँ को कैंसर होता है तो उन्हें डॉक्टर के पास लेके जाया जाता है न कि उनके सामने अगरबत्ती जलाकर आरती उतारी जाती है। ऐसे ही माँ नर्मदा बीमार है,पानी सूखता जा रहा है, निरंतर रेत खनन हो रहा है, ऐसे में इलाज के बारे में सोचा जाए या परिक्रमा की जाए? आम सभा के अंत मे उपस्थित अथितियों और यात्रा में जुड़े लोगों ने मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या पर 2 मिनट का मौन धारण किया और इसी के साथ आम सभा की समाप्ति हुई।
धामनोद से यह यात्रा गुजरी की ओर बढ़ेगी। गुजरी से महू और पीथमपुर पर मुकाम होगा।
डॉo विनोद यादव, भागीरथ धनगर, राहुल यादव, कैलाश अवास्या, हिमशी सिंह, मुकेश भगोरिया, देवीसिंह तोमर, श्यामा भदाने
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